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भारत को आगे भी सचेत रहने की जरूरत है

मुचकुंद दूबे पूर्व विदेश सचिव भारत को पाकिस्तान नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए. बदले की नीति पर चलने से पहले यह जान और समझ लेना चाहिए कि इससे किसी का कोई फायदा नहीं होने वाला है. युद्ध के लिहाज से बात करें तो पाकिस्तान ने अपनी कार्रवाईयों के द्वारा पहले दो बार हमें चौंकाया है. […]

मुचकुंद दूबे

पूर्व विदेश सचिव

भारत को पाकिस्तान नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए. बदले की नीति पर चलने से पहले यह जान और समझ लेना चाहिए कि इससे किसी का कोई फायदा नहीं होने वाला है. युद्ध के लिहाज से बात करें तो पाकिस्तान ने अपनी कार्रवाईयों के द्वारा पहले दो बार हमें चौंकाया है. आजादी के ठीक बाद जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में कबायली हमला करवाया था, जिसमें उनकी फौज भी शामिल थी.

इसके बाद हमें उनके साथ युद्ध लड़ना पड़ा और उन्हें भगाया गया. इसके अतिरिक्त, कारगिल युद्ध का उदाहरण भी हमारे सामने है. जाहिर है, पाकिस्तान प्रतिक्रिया में कार्रवाई कर सकता है. और अगर वह प्रतिक्रिया देगा, तो हमें भी उसे जवाब देना ही होगा. यह स्थिति युद्ध के रूप में भी घटित हो सकती है. मैं समझता हूं कि फिर इसके भयावह परिणाम होंगे और इसमें दोनों देशों को महान क्षति होगी.

पाकिस्तान अगर यह कह रहा कि भारत की कार्रवाई से कोई क्षति नहीं पहुंची है, तो यह सच नहीं है. यहां बात यह नहीं है कि क्षति पहुंची या नहीं पहुंची. कोई देश किसी देश की सीमा के भीतर घुसकर कार्रवाई करता है तो यह मामूली बात नहीं होती है. पाकिस्तान की थल सेना भारत से छोटी है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है.

ऐसे में भारत की कार्रवाई मामूली नहीं है. लेकिन हमें सोचना होगा कि ऐसी कार्रवाइयों से क्या हासिल होने वाला है. उन्होंने हमारे लोगों को मारा, तो बदले की भावना के अंतर्गत हमने उनके लोग मारे. यहां तक ठीक है. देश के भीतर एक विक्षोभ था, जिसे शांत करने के लिए यह काम किया गया. लेकिन, इन सबसे इतर कई सवाल खड़े होते हैं.

इतिहास सामने है, हम चाहें जितने आतंकी कैंप बम से उड़ा दें, लेकिन इस तरह के हमलों के बाद फिर से आतंकी संगठन पैदा होते हैं. हम ऐसा कोई अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि हमारी कार्रवाई के बाद जैश-ए-मोहम्मद खत्म हो गया है. फिर से कोई आतंकी घटना होगी, और हम कार्रवाई करेंगे. ऐसे तो यह सिलसिला चलता रहेगा. जैश-ए-मोहम्मद कश्मीर में आकर अपनी गतिविधियां करता है, वहां के लोगों को फंसाता है, प्रशिक्षण देता है. जैश-ए-मोहम्मद ऐसा सालों से करता आ रहा है और करता ही रहेगा.

हमने जो कार्रवाई की है, वह कोई स्थायी समाधान नहीं है, बस हमारे रोष की भावना पर पानी डाल सकती है. इसके अलावा, इस कार्रवाई से राजनीतिक दल राजनीतिक लाभ उठा सकते हैं बस. लेकिन, पाकिस्तान के साथ हमारी जितनी समस्याएं हैं, कैसे वह कश्मीर में हमेशा अस्थिरता पैदा करता है, इन मुद्दों का हल ऐसी सैन्य कार्रवाइयों से नहीं निकल सकता है. इस सारी समस्या का उपाय यही है कि नीति के स्तर पर भारत कश्मीर का भरोसा जीतने की कोशिश करे. हमें ऐसे उपाय ढूंढने होंगे कि अपने कश्मीर के लोगों को कैसे खुश और समृद्ध किया जा सकता है. बिना ऐसा किये हमारी अन्य किसी भी कार्रवाई का कोई मतलब नहीं रह जाता है.

दूसरी तरफ, अमेरिका और चीन की अपनी नीतियां और इंटरेस्ट हैं भारत और पाकिस्तान के साथ.अमेरिका अफगानिस्तान व अन्य मुस्लिम देशों से संबंध के लिहाज से पाकिस्तान को महत्वपूर्ण मानता है. ऐसे में इन दोनों देशों का कोई दबाव भी नहीं काम करेगा, अगर भारत और पाकिस्तान युद्ध करने को तैयार हो जाते हैं. कुल मिलाकर, अब शांति कायम होना तो मुश्किल लगता है, हां, पाकिस्तान अगर प्रतिक्रिया नहीं देता है तो बात अलग है.

बातचीत : देवेश

Prabhat Khabar Digital Desk
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