27.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

गांधी की बुनियादी शिक्षा-योजना

गांधी जयंती पर विशेष प्रो अनिरुद्ध प्रसाद गांधी जी ने शास्त्रीय ढंग से शिक्षा की कोई योजना नहीं दी, फिर भी भारतीय शिक्षा विचारधारा के प्रथत आधुनिक उन्नायक कहे जाने का अधिकार इन्हें ही है. गांधी जी की शिक्षा का सर्वप्रथम लक्ष्य व्यक्ति का प्रकृति-वैषम्य या उसके स्वभावों की विकृतियों को दूर करना था. उसे […]

गांधी जयंती पर विशेष
प्रो अनिरुद्ध प्रसाद
गांधी जी ने शास्त्रीय ढंग से शिक्षा की कोई योजना नहीं दी, फिर भी भारतीय शिक्षा विचारधारा के प्रथत आधुनिक उन्नायक कहे जाने का अधिकार इन्हें ही है. गांधी जी की शिक्षा का सर्वप्रथम लक्ष्य व्यक्ति का प्रकृति-वैषम्य या उसके स्वभावों की विकृतियों को दूर करना था. उसे मानवीय आचरणों की नयी जीवन-प्रणाली प्रदान करनी थी. इसी को गांधी जी ने चरित्र शिक्षा का नाम दिया. इस व्यापक दृष्टिकोण से गांधी जी ने शिक्षा को व्यक्ति के संपूर्ण संभावित विकास का साधन, माध्यम तथा प्रक्रिया माना.
वह बच्चों के लिए दैहिक, मानसिक तथा नैतिकता का समन्वित विकास चाहते थे. शिक्षा केवल साक्षरता प्रदान करने तथा बहुत से विषयों का ज्ञान दे देने से ही पूरी नहीं हो जाती. ऐसी शिक्षा का जीवन के साथ कोई संबंध नहीं रहता. शिक्षा तभी सफल होती है, जब ज्ञान व्यक्ति के विचारों तथा उसकी कर्मठता को, उसके संपूर्ण आचरणों को, इस प्रकार प्रभावित, परिमाजिर्त तथा संगठित करता रहे, जिससे कि मानव कल्याण की सच्ची उपलब्धि हो सके.
इस तरह महात्मा गांधी ने शिक्षा को केवल आर्थिक उपलब्धि तक ही सीमित मान लेना, एक महान नैतिक भूल समझा. यद्यपि, हस्तशिल्पों की शिक्षा से गांधी जी ने निश्चित आर्थिक लाभ की भी कामना की थी. उन्होंने ‘आर्थिक-शिक्षण’ को ‘जीवन-शिक्षण’ का एक अनिवार्य अंग माना था. आर्थिक उपयोगिता के प्रति उनके दो दृष्टिकोण थे – ‘
आर्थिक दृष्टिकोण’ तथा ‘चारित्रिक दृष्टिकोण’. आर्थिक रूप से गांधी जी ने विद्यार्थी को, विद्यालय को, समाज को, तथा पूरे राष्ट्र को आत्मनिर्भरता की दृढ़ पृष्ठभूमि प्रदान करने की बात सोची थी. भारत जैसे अभावग्रस्त देश में शिक्षा की यह परिकल्पना, निश्चित रूप से एक महानतम राष्ट्रीय परिकल्पना है. चरित्र की दृष्टि से, महात्मा गांधी ने बच्चों एवं अभिभावकों को आस्थावान, कर्मठ, आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर, सहयोगशील, सत्यनिष्ठ, अहिंसक तथा प्रिय-आचरणशील बनाने की बात सोची थी.
गांधी जी के निम्न सुझाव महत्वपूर्ण हैं
शिक्षा, रचना, व्यवस्था और विकास के लिए गांव को इकाई माना जाये. इस दृष्टि से योजना बनायी जाये कि उस पर अमल करने के लिए गांव, परिवार को जिम्मेदार माना जाये. लक्ष्य यह हो कि हर परिवार के पास खेती, पशुपालन, उद्योग या अन्य कोई जीविका का स्थायी साधन उपलब्ध हो; ताकि बेरोजगारी और भुखमरी की स्थिति न रह जाये. इसमें सरकार मदद देने का काम करे.
लोक शिक्षण, जीवन और विकास से संबंधित पाठ्यक्रम तैयार करने का कार्यक्रम भारत के प्रत्येक गांव और कस्बों में बने.
शिक्षा सबके लिए लाजिमी होगी. नौ वर्ष के बाद आरंभ होनेवाली शिक्षा स्वावलंबी होनी चाहिए. यानी विद्यार्थी पढ़ते हुए ऐसे उद्योगों में लगा रहे, जिसकी आमदनी से उसका खर्च चले. यह संस्कार उसमें पैदा करना होगा.
जन जीवन के बुनियादी मुद्दों पर आम सहमति तथा प्रबल लोकमत तैयार करना. यह भारत के हर गांव/ कार्य क्षेत्र में होना चाहिए.
महात्मा गांधी की शिक्षा-योजना को प्रयोगशील बनाने का दायित्व सरल नहीं है. यह एक ‘जटिल-जीवन समन्वय’ का प्रश्न है. फिर भी, यह प्रश्न आज भी प्रासंगिक है.
(लेखक जेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची में कार्यरत हैं)
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel