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खुलते नहीं हैं रोज दरीचे बहार के

इंदर सिंह नामधारी पाक की एक लड़की मलाला ने हिम्मत करके अपना मुंह खोला है कि भारत एवं पाकिस्तान का तनाव अब खत्म होना चाहिए. उसने कहा कि दिसंबर 2014 में उसे जब शांति का नोबेल पुरस्कार मिले तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पाकिस्तान के वजीरे आजम नवाज शरीफ दोनों मौजूद हों. अब […]

इंदर सिंह नामधारी
पाक की एक लड़की मलाला ने हिम्मत करके अपना मुंह खोला है कि भारत एवं पाकिस्तान का तनाव अब खत्म होना चाहिए. उसने कहा कि दिसंबर 2014 में उसे जब शांति का नोबेल पुरस्कार मिले तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पाकिस्तान के वजीरे आजम नवाज शरीफ दोनों मौजूद हों.
अब भारत-पाक सीमा पर गोलियों एवं बमों के धमाके बंद होने चाहिए. दोनों मुल्कों को अमन के साथ अपने-अपने देश की गरीबी को दूर करना चाहिए. उम्र के लिहाज से मलाला भले ही एक किशोरी हो लेकिन उसने बहुत बड़ी बात कह डाली है, क्योंकि आपसी मुहब्बत के दरीचे (खिड़कियां) रोज-रोज नहीं खुला करतीं. किस्मत कभी-कभी ही ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा करती है.
अभी-अभी शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजी गयी पाकिस्तान की एक संघर्षशील किशोरी मलाला युसुफजई के दिल में मौजूद भारत-पाक एकता का जज्बा देखकर मुझे पांच दशक पूर्व साहिर लुधियानवी द्वारा फिल्म ’’आंखें’’ के लिए लिखी गयी उनकी एक नज़्म की कुछ पंक्तियां याद आ गयीं.
खुलते नहीं हैं रोज दरीचे बहार के,
लाती है ऐसी मोड़ पर किस्मत कभी-कभी.
फिर खो न जायें हम कहीं दुनिया की भीड़ में,
मिलती है पास आने की मोहलत कभी-कभी.
पाकिस्तान के वजूद में आए 67 वर्षों के बाद पहली बार पाकिस्तान की एक लड़की मलाला ने हिम्मत करके अपना मुंह खोला है कि भारत एवं पाकिस्तान का तनाव अब खत्म होना चाहिए. उसने कहा कि दिसंबर 2014 में उसे जब शांति का नोबेल पुरस्कार मिले तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पाकिस्तान के वजीरे आजम नवाज शरीफ दोनों मौजूद हों.
अब भारत-पाक सीमा पर गोलियों एवं बमों के धमाके बंद होने चाहिए. दोनों मुल्कों को अमन के साथ अपने-अपने देश की गरीबी को दूर करना चाहिए. उम्र के लिहाज से मलाला भले ही एक किशोरी हो लेकिन उसने बहुत बड़ी बात कह डाली है, क्योंकि आपसी मुहब्बत के दरीचे (खिड़कियां) रोज-रोज नहीं खुला करतीं. किस्मत कभी-कभी ही ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा करती है.
सब जानते हैं कि 67 वर्षो का पिछला अंतराल भारत और पाकिस्तान ने लड़ाई करते हुए ही गुजारा है. पांच बड़े जंग लड़कर अब छठे की तैयारी की जा रही है.
तालिबानियों ने पहले अफगानिस्तान को तहस-नहस किया और अब पाकिस्तान को बर्बादी की ओर ले जा रहे हैं. उन्होंने मलाला को धमकी दी थी कि वह लड़कियों को तालीम देने वाली मुहिम से अलग हो जाये, नहीं तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा. उसे तालिबानियों की गोली का शिकार बनना पड़ा.
उसकी जान तो किसी तरह बच गयी लेकिन उसने नारी-शिक्षा के अभियान को ठंडा नहीं होने दिया. आजकल वह पाकिस्तान छोड़कर पश्चिम के मुल्कों में रह रही है. इसी भावना के चलते मलाला को नोबेल शांति पुरस्कार का सही हकदार माना गया.
नोबेल पुरस्कार देने वाली निर्णायक मंडली ने एक और अजूबा निर्णय किया और शान्ति पुरस्कार को सिर्फ पाकिस्तान की मलाला को न देकर भारत के कैलाश सत्यार्थी को भी इसका हिस्सेदार बना दिया. श्री सत्यार्थी लम्बे से भारत में बाल मजदूरों की मुक्ति के लिए बचपन बचाओ आंदोलन चला रहे हैं.
इसे एक विचित्र संयोग ही कहेंगे कि लगभग सात दशकों तक हिंसा एवं नफरत के दौर से गुजरे भारत और पाकिस्तान शान्ति के नोबेल पुरस्कार के संयुक्त रूप से दावेदार बन कर उभरे हैं. दोनों देशों को इसका फायदा निश्चित रूप से उठाना चाहिए. यह एक अजीबो-गरीब सुखद संयोग है जो अकस्मात दोनों देशों के सामने आ गया है. यदि भारत और पाकिस्तान के रिश्ते नहीं सुधरे और पाकिस्तान यदि इसी तरह चीन का साथ देकर भारत को उलझाता रहा तो किसी भी समय तीसरा विश्व युद्ध भड़क सकता है.
पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि कश्मीर को पाना उसके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. पाकिस्तान को चाहिए कि वह अपने संसाधनों को बर्बाद न करे. अब तो संयुक्त राष्ट्र ने भी पाकिस्तान की उस अर्जी को खारिज कर दिया है जिसमें उसने कश्मीर में जनमत संग्रह करवाने की मांग उठाई थी.
संयुक्त राष्ट्र ने साफ शब्दों में पाकिस्तान को बता दिया है कि कश्मीर का मामला भारत एवं पाकिस्तान दोनों को मिल बैठकर निपटाना चाहिए. भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी संयुक्त राष्ट्र के हालिया अधिवेशन में दो टूक शब्दों में कहा कि कोई भी तीसरा पक्ष कश्मीर समस्या का हल नहीं निकाल सकता.
मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि जो-जो हिस्सा कश्मीर का जिस के पास है उसे अपना मानते हुए आपस का संघर्ष खत्म कर देना चाहिए. जब आधी शताब्दी के बाद बर्लिन की दीवार तोड़कर जर्मनी से कड़वाहट को दूर किया जा सकता है तो नोबेल पुरस्कार से बने इस सकारात्मक वातावरण से दोनों मुल्कों को लाभ उठाना ही चाहिए. काश !
ऐसा हो जाता तो युद्ध के उन्माद में दोनों देशों द्वारा हथियारों में झोंकी जा रही अरबों-खरबों की राशि का उपयोग दोनों देश अपनी जनता के कल्याण के लिए कर पाते.
(लेखक झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं)
Prabhat Khabar Digital Desk
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