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कोरिया से मेक इन इंडिया की उम्मीद

सेंट्रल डेस्क पूर्वी एशिया में स्थित दक्षिण कोरिया, कोरियाई प्रायद्वीप के दक्षिणी अर्धभाग को घेरे हुए है. ‘शांत सुबह की भूमि’ के रूप में प्रसिद्ध इस देश के पश्चिम में चीन, पूर्व में जापान और उत्तर में उत्तर कोरिया है. इसकी राजधानी सियोल दुनिया के सबसे बड़े महानगरों में शामिल है. एक लाख वर्ग किलोमीटर […]

सेंट्रल डेस्क

पूर्वी एशिया में स्थित दक्षिण कोरिया, कोरियाई प्रायद्वीप के दक्षिणी अर्धभाग को घेरे हुए है. ‘शांत सुबह की भूमि’ के रूप में प्रसिद्ध इस देश के पश्चिम में चीन, पूर्व में जापान और उत्तर में उत्तर कोरिया है. इसकी राजधानी सियोल दुनिया के सबसे बड़े महानगरों में शामिल है. एक लाख वर्ग किलोमीटर में फैला यह देश आकार में भले छोटा हो, लेकिन इसकी तकनीक का दुनिया लोहा मानती है. सैमसंग, एलजी, पॉस्को, देवू, हुंडई जैसी कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद पूरी दुनिया में पहुंचते हैं. कोरिया के पास तकनीक के क्षेत्र में माहिर कंपनियों की जो ताकत है, वह भारत के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में बड़ी मददगार हो सकती है.

भारत और कोरिया के बीच एक साझी सांस्कृतिक एवं धार्मिक पृष्ठभूमि है. कोरिया के प्राचीन इतिहास में कहा गया है कि अयोध्या से दो हजार साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक अयुता (अयोध्या) से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत के किमहये शहर आयी थीं. ये राजकुमारी कभी अयोध्या नहीं लौटीं. चीनी भाषा में दर्ज दस्तावेज सामगुक युसा में कहा गया है कि ईश्वर ने अयोध्या की राजकुमारी के पिता को स्वप्न में आकर ये निर्देश दिया था कि वह अपनी बेटी को उनके भाई के साथ राजा सुरो से विवाह करने के लिए किमहये शहर भेजें. आज कोरिया में कारक गोत्र के तकरीबन साठ लाख लोग खुद को राजा सुरो और अयोध्या की राजकुमारी के वंश का बताते हैं. पूर्व राष्ट्रपति किम देई जंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल किम इसी वंश से आते थे. इसके अलावा बौद्ध धर्म दोनों देशों को जोड़ता है.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तब की दो महाशक्तियों, अमेरिका और रूस द्वारा दो अलग देशों में बांट दिये गये उत्तर और दक्षिण कोरिया की स्थिति भी कमोबेश भारत और पाकिस्तान के जैसी ही है. विभाजन की आधी सदी से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद आज भी दोनों के बीच रिश्ते वैसे ही तल्ख हैं, जैसे तब थे. बाद के दशकों में उत्तरी कोरिया चीन से प्रभावित हुआ तो दक्षिण कोरिया अमेरिका से. पड़ोस में चीन और उत्तर कोरिया के होने से दक्षिण कोरिया खुद को दुश्मनों से घिरा हुआ पाता है, चीन के साथ उसका समुद्री सीमा का विवाद भी दशकों से चला आ रहा है. ऐसे में भारत के साथ अगर उसके संबंध प्रगाढ़ होंगे तो उसे भी बल और संबल मिलेगा.

चीन के साथ रिश्तों में संतुलन स्थापित करने के लिए, मोदी सरकार के राडार पर दक्षिण कोरिया खास तौर पर है. बीते दिसंबर-जनवरी में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, मार्च में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अब मई में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण कोरिया पहुंचे हैं. भारत एक तरफ चीन के साथ कारोबारी और तिजारती रिश्ते बढ़ा रहा है, तो दूसरी तरफ उन देशों से मजबूत संबंध स्थापित कर रहा है जो चीन के विस्तारवाद से खतरा महसूस कर रहे हैं, जैसे कि दक्षिण कोरिया, जापान, वियतनाम, मंगोलिया. भारत की दो दशक पुरानी ‘लुक ईस्ट’ नीति को मोदी सरकार ‘वर्क इन ईस्ट’ में बदलना चाहती है.

इसी क्रम में सुषमा स्वराज और मनोहर पर्रिकर ने दक्षिण कोरिया यात्र के दौरान रक्षा और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ के तहत साङोदारी करने पर चर्चा की. इस दौरान भारत में रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी एफडीआइ की अनुमति का हवाला देते हुए सहयोग की संभावनाओं का उल्लेख किया गया और कोरिया को भारतीय रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के लिए विनिर्माण क्षेत्र में निवेश करने के अवसर का उपयोग करने के लिए आमंत्रित किया गया. इसी बीच दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री जनरल हान मिन-गू ने माना कि भारत के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्र म से रक्षा संबंधों में विकास की अपार संभावनाएं हैं. कोरिया ने भी रक्षा आयात पर निर्भर रहने से खुद को बदलते हुए स्वदेशीकरण को बढ़ावा दिया है. वैसे अगर भारत और दक्षिण कोरिया के संबंध इस लक्षित दिशा में फलते-फूलते रहे, तो एशिया में यकीनन चीन की बढ़ती धमक पर लगाम लगेगी और इसका फायदा दोनों देशों को होगा.

सरकार- राष्ट्रपति शासित गणराज्य

स्थापना-15 अगस्त 1948

क्षेत्रफल -100,210 वर्ग किमी

जनसंख्या -पांच करोड़ पंद्रह लाख

सकल घरेलू उत्पाद -1854 करोड़ डॉलर

प्रति व्यक्ति आय – 36,601 डॉलर

मुद्रा -वॉन

भाषा -कोरियाई

Prabhat Khabar Digital Desk
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