23.2 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

खेलों से नि:शक्तता को दी चुनौती

जज्बा : भारत के पहले ब्लेड रनर मेजर देवेंद्र पाल 15 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान मेजर देवेंद्र पाल सिंह जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर में नियंत्रण रेखा से 80 मीटर दूर, भारतीय सेना की एक टुकड़ी को कमांड कर रहे थे़ अचानक उन्होंने तोप के एक गोले की आवाज सुनी, इससे पहले कि […]

जज्बा : भारत के पहले ब्लेड रनर मेजर देवेंद्र पाल

15 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान मेजर देवेंद्र पाल सिंह जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर में नियंत्रण रेखा से 80 मीटर दूर, भारतीय सेना की एक टुकड़ी को कमांड कर रहे थे़ अचानक उन्होंने तोप के एक गोले की आवाज सुनी, इससे पहले कि वह कुछ खुली जगह में जा पाते, वह गोला उनसे मीटर-भर की दूरी पर जा गिरा.

उस गोले के छर्रों ने मेजर के सीने से लेकर पैरों तक को बुरी तरह जख्मी कर दिया था. तीन दिनों के बाद जब उन्हें होश आया तो उन्होंने खुद को सैन्य अस्पताल में पाया, जहां डॉक्टरों को उनका एक पैर काट देना पड़ा था. यही नहीं, उस गोले के लगभग 50 छर्रे तब भी मेजर के सीने, रीढ़ और कुहनियों में धंसे हुए थे और उनकी आंतें भी संक्रमित हो चुकी थीं.

मेजर कहते हैं, डॉक्टरों ने मेरे घरवालों को बताया कि मेरी हालत बहुत नाजुक थी और उन्होंने मेरे बचने की सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं. लेकिन हरियाणा के जगधारी के रहनेवाले इस जवान ने जीने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी. वह कहते हैं कि उस दौरान मैंने एक पल के लिए भी नहीं सोचा कि मैं बच नहीं सकूंगा.

मैंने उधमपुर के उस सैन्य अस्पताल में इलाज के दौरान घरवालों से टेप रिकॉर्डर और हिंदी फिल्मों के कुछ कैसेट्स मंगवाये. मैं मिलनेवालों से हंसता-बोलता और अपने मन में कोई नकारात्मक विचार नहीं आने देता. कुछ दिनों बाद मुझे दिल्ली के सैन्य अस्पताल (रिसर्च एंड रेफरल) शिफ्ट किया गया, उसके बाद मुझे आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज, पुणे के कृत्रिम अंग केंद्र पर भेजा गया़

उन दिनों को याद करते हुए मेजर बताते हैं, तब मैं हाड़-मांस की 28 किलो की किसी गठरी से ज्यादा कुछ नहीं था़ मैं वहां एक वर्ष रहा़ वहां मैंने पहली बार महसूस किया कि बैसाखी के सहारे चलना, दोबारा चलना सीखने के जैसा था़ बहरहाल, एक वर्ष तक तमाम तरह के दर्द और पीड़ाओं से जूझते हुए मेजर ने अपने पैरों, एक प्राकृतिक और एक कृत्रिम, पर सीधा खड़ा होना सीख लिया था़ उनकी विकलांगता दूसरों पर बोझ न बन जाये, इसके लिए मेजर ने सामान्य लोगों की तरह चलना-फिरना और उसके बाद गोल्फ खेलना शुरू किया़ इसके बाद उन्होंने वॉलीबॉल और स्क्वॉश का रुख किया़ अब वह दौड़ना चाहते थे़ वह कहते हैं कि विकलांगता को अपने राह की बाधा न बनने देने के लिए यह जरूरी था़

बहरहाल, अक्तूबर 2009 में मेजर ने दिल्ली का हाफ मैराथॉन दौड़ने का फैसला किया़ वह कहते हैं, तीन घंटे 49 मिनट में पूरी की गयी 21 किलोमीटर की इस दौड़ ने मेरी जिंदगी बदल डाली.

दर्द मेरी राह रोक रहा था और दिमाग कह रहा था कि मुझे इसे हर हाल में पूरा करना है. यह किसी लंबी साधना की तरह था. जब मैं दौड़ के अंतिम बिंदु तक पहुंचा, मुझे जोरों की भूख लग चुकी थी. आप विश्वास नहीं करेंगे कि मैंने रिफ्रेशमेंट के लिए मिले सेब को उसके बीज और डंठल सहित खा लिया था. मेजर कहते हैं, 10 वर्षों में मुझे वैसी भूख पहली बार लगी थी. यह एक शुरुआत थी. इसके बाद मेजर ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उन्होंने प्रशिक्षण शुरू किया और कई मैराथॉन्स में भाग लिया. हर दौड़ के साथ वह खुद की नजरों में अपनी कीमत और सम्मान पाते जाते.

भारत के पहले ब्लेड रनर माने जानेवाले मेजर देवेंद्र पाल सिंह अपनी यह सफलता खुद तक सीमित नहीं रहना चाहते थे. इसलिए उन्होंने वर्ष 2011 में ‘द चैलेंजिंग वन्स’ के नाम से एक फेसबुक ग्रुप बनाया़ आज वह खेलों के जरिये नि:शक्त लोगों को सामान्य जिंदगी बिताने के गुर सिखा रहे हैं.

आज की तारीख में इस ग्रुप के 950 मेंबर्स बन चुके हैं, जो मिल-जुल कर कठिनाइयों से पार पाने की कोशिश करते हैं. ये अपनी उपलब्धियां एक-दूसरे से शेयर करते हैं, जिससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है़ मेजर कहते हैं, खेलों के जरिये नि:शक्तजन खुद को तराश कर अपनी अहमियत जगा सकते हैं, जो उनके शरीर और जिंदगी में नयी ऊर्जा भर देगी़

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel