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चीन का मार्ग प्रशस्त तथापि ग्वादर दूर अस्त

चीन-पाक जुगलबंदी : बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण में पाक ने भरपूर सहयोग दिया रवि दत्त बाजपेयी चीन-पाकिस्तान की जुगलबंदी का उद्देश्य चीन का अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाना और पाकिस्तान का किसी भी उभरती हुई शक्ति का गुमाश्ता बनना है. चीन अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह बनाने और उसे सड़क मार्ग से जोड़ने […]

चीन-पाक जुगलबंदी : बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण में पाक ने भरपूर सहयोग दिया

रवि दत्त बाजपेयी

चीन-पाकिस्तान की जुगलबंदी का उद्देश्य चीन का अपनी सामरिक क्षमता बढ़ाना और पाकिस्तान का किसी भी उभरती हुई शक्ति का गुमाश्ता बनना है. चीन अरब सागर में ग्वादर बंदरगाह बनाने और उसे सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए बेहद लालायित है.

बलूचिस्तान और गिलगित- बाल्टिस्तान से होकर चीन तक जाने वाले एक आर्थिक गलियारे के निर्माण में पाकिस्तान ने भरपूर सहयोग दिया है, लेकिन इसके बाद भी ऐसा लगता है कि चीन के लिए ग्वादर दूर है. आज पढ़िए इस शृंखला की पहली कड़ी.

वर्ष 1979 में जब सोवियत रूस की सेनाएं अफगानिस्तान में दाखिल हुईं, तो अनेक विशेषज्ञों के अनुसार रूसी सेनाओं का अंतिम पड़ाव काबुल नहीं, बल्कि अरब सागर के किनारे पाकिस्तान का छोटा सा कस्बा ग्वादर था. ग्वादर, ओमान की खाड़ी और अरब सागर के बीच में स्थित है, जहां से ईरान, पश्चिम एशिया, खाड़ी के देश और यूरोप तक जाने के लिए बेहद सीधा और सुगम समुद्री मार्ग खुलता है. सोवियत रूस के लिए सर्दियों में बर्फ से ढंके अपने बंदरगाहों से आवागमन असंभव था, जबकि ग्वादर बारहमासी और किफायती बंदरगाह के रूप में आदर्श विकल्प था, लेकिन रूसी महत्वाकांक्षा पर अमेरिकी दांव-पेंच भारी पड़े और ग्वादर पहुंचने से पहले ही सोवियत रूस का विघटन हो गया.

आज पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर, वर्ष 1947 में पाकिस्तान नहीं, बल्कि ओमान के सुलतान के कब्जे में था. वर्ष 1958 में पाकिस्तान सरकार ने 30 लाख अमेरिकी डॉलर में ओमान के सुलतान से ग्वादर कस्बा खरीद लिया. वर्ष 1990 के दशक ने चीन का अभ्युदय देखा, आर्थिक महाशक्ति बनने को उतावले चीन ने सारी दुनिया से खनिज, तेल, गैस, कोयला खरीदना शुरू कर दिया. अपने देश में कच्चा सामान मंगाने और अपने उत्पाद दुनिया भर में भेजने के लिए, चीन मुख्यतः एक समुद्री मार्ग पर निर्भर है.

यह भी एक सच्चाई है कि पिछले तीन दशकों से चीन इस समुद्री मार्ग का विकल्प तलाश रहा है. चीन की परेशानी के दो कारण हैं, यह समुद्री मार्ग बेहद लंबा है जो आर्थिक रूप से हानिकारक है और मलये‍शिया के पास यह मार्ग बेहद संकरा है, जिस पर अमेरिका आवागमन रोक सकता है. अपनी तेल-गैस की बढ़ती खपत को पूरा करने के लिए चीन ने ग्वादर पर बंदरगाह बना कर यहां से सड़क मार्ग द्वारा इस सामान को चीन तक ले जाना एक बेहद सुरक्षित, सीधा और सस्ता विकल्प माना है. वर्तमान समद्री मार्ग से पश्चिम एशिया से चीन की दूरी लगभग 12,000 किमी है, जबकि ग्वादर से चीन के शिंजियांग प्रांत की दूरी मात्र 3,000 किमी है.

अप्रैल 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान दौरे पर 45 बिलियन डॉलर से बनने वाली ‘पाकिस्तान-चीन आर्थिक गलियारा’ परियोजना की शुरुआत की थी. अमेरिका के लगातार घटते वैश्विक प्रभाव में चीन अपने लिए दूरगामी व लाभकारी अवसर देख रहा है और ‘वन बेल्ट वन रोड’ अभियान के अंतर्गत चीन ने प्राचीन सिल्क रोड के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है. ग्वादर से चीन के शिंजियांग प्रांत तक बनने वाला यह आर्थिक गलियारा, चीन के राजनीतिक-सामरिक प्रभुत्व विस्तार का एक महत्वपूर्ण कदम है.

एक महाशक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए चीन के लिए ग्वादर पर नियंत्रण पाना प्रतिष्ठा का प्रश्न है. ब्रिटिश साम्राज्य, सोवियत रूस और अमेरिका ने इतिहास के अलग-अलग दौर में इस क्षेत्र को अपने सीधे या परोक्ष नियंत्रण में रखने के प्रयास किये हैं और अपने समय की ये सबसे शक्तिशाली ताकतें, इस प्रयास में असफल रही हैं.

पाकिस्तान की सेनाओं और नागरिक प्रशासकों ने भी अपनी ओर से चीन के आर्थिक गलियारे के निर्माण में भरपूर सहयोग दिया है, लेकिन इसके बाद भी ऐसा लगता है कि चीन के लिए ग्वादर का रास्ता बेहद कठिन है.

चीन के शिंजियांग प्रांत के स्थानीय ओईघुर लोगों का चीनी प्रशासन से हिंसक टकराव होते आया है. चीन से ग्वादर तक आने वाला मार्ग गिलगित-बाल्टिस्तान से गुजरता है जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा है. चीन की सरकार अपने इतने बड़े निवेश को भारत-पाकिस्तान के आपसी विवाद से दूर रखना चाहती है. पाकिस्तान सरकार चीन को आश्वस्त करने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर का विशेष दर्जा हटा कर इसे अन्य प्रांतों की भांति सामान्य प्रदेश बना दे. हालांकि इसके बाद भारत भी जम्मू-कश्मीर को अपने आप में समाहित करने को स्वतंत्र हो जायेगा.

बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान सरकार पर स्थानीय संसाधनों का शोषण और स्थानीय लोगों के दमन का आरोप लगाते रहे हैं. बलूची अलगाववादियों और पाकिस्तान की सेना से नियमित रूप से हिंसक टकराव होता आया है. यहां तक कि इस परियोजना हेतु आये हुए कई चीनी विशेषज्ञ भी बलूची लोगों के हमलों में मारे गये हैं. चीन को अक्साई चीन उपहार में देने के बाद, ऐसा लगता है कि पाकिस्तान चीन को बलूचिस्तान का पूरा नियंत्रण देने को भी तैयार है.

बलूचिस्तान में व्यवस्था बनाये रखने के लिए पाकिस्तानी सेना 20 हजार अतिरिक्त सैनिकों को तैनात करने को तैयार है. बलूचिस्तान में सुरक्षा को लेकर चिंतित चीनी अधिकारी पाकिस्तानी सरकार से पूरे ग्वादर शहर के चारों ओर 65 किमी के दायरे की बाड़ लगाने की मांग कर रहे हैं. सुरक्षा के लिए यदि चीनी अधिकारियों की शर्तें मान ली गयीं, तो स्थानीय बलूची-पाकिस्तानी नागरिकों को भी इस सुरक्षित घेरे के अंदर आने के लिए अधिकृत परिचयपत्र दिखाना अनिवार्य हो जायेगा.

ग्वादर एकदम बंजर जमीन पर स्थित है, जहां पीने के पानी की बेहद कमी है. दिसंबर, 2015 में ग्वादर के कई घरों में सेंध मारकर चोरों ने धन, संपत्ति, गहने नहीं, बल्कि पानी के कनस्तर चुराये थे. चीन ग्वादर में पानी, बिजली, नागरिक सुविधाएं तो अवश्य ला सकता है, लेकिन सुरक्षा के लिए चीन, पाकिस्तानी सुरक्षा संस्थाओं पर पूरी तरह से निर्भर है.

पाकिस्तान की स्थापना से आज तक खरबों डॉलर के साजो-सामान और सहायता देने के बाद भी अमेरिका, पाकिस्तानी सुरक्षा संस्थाओं से अभीष्ट सुरक्षा नहीं हासिल कर पाया. संभव है कि चीन, पाकिस्तानी सुरक्षा संस्थाओं को अपने इशारों पर चलाने की सामर्थ्य रखता हो. यदि ऐसा है तो चीन किसी भी महाशक्ति से कहीं अधिक ताकतवर है, अन्यथा चीन के लिए अभी ग्वादर दूर अस्त.

Prabhat Khabar Digital Desk
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