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शराबखोरी और अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति को समाज करे सहयोग शराबखोरी और अवसाद से पीड़ित मानसिक स्वास्थ्य उपचार के क्षेत्र में डॉ विक्रम पटेल के नेतृत्व में संगत ने अभिनव प्रयोग किया. चिकित्सा क्षेत्र की मशहूर पत्रिका ‘लांसेट’ में छपे उनके अध्ययन के अनुसार उपचार के लिए किसी बड़े पेशेवर की जरूरत नहीं है. समाज […]

शराबखोरी और अवसाद से ग्रस्त व्यक्ति को समाज करे सहयोग

शराबखोरी और अवसाद से पीड़ित मानसिक स्वास्थ्य उपचार के क्षेत्र में डॉ विक्रम पटेल के नेतृत्व में संगत ने अभिनव प्रयोग किया. चिकित्सा क्षेत्र की मशहूर पत्रिका ‘लांसेट’ में छपे उनके अध्ययन के अनुसार उपचार के लिए किसी बड़े पेशेवर की जरूरत नहीं है. समाज में मौजूदा संसाधनों के जरिये ही अवसाद पीड़ितों को पुनर्जीवन दिया जा सकता है. पढ़िए एक रिपोर्ट.

डॉ विक्रम पटेल

यह सारी दुनिया की समस्या है कि जिन लोगों को मानसिक सेहत के देखभाल की जरूरत है, उन्हें यह नहीं मिलता है. इस दिशा में भारत में कुछ काम हो रहा है. एक नयी रणनीति के जरिये एेसे लोगों का उपचार किया जा रहा है. यह काम कोई पेशेवर नहीं, बल्कि गैरपेशेवर लोग कर रहे हैं. इस समाधान के बारे में कहा जा रहा है कि यह बहुत ही कारगर है.

इसे अन्य देशों में भी अपनाया जा सकता है. भारत में मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल एक बड़ी चुनौती है. बहुत सारे लोग मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नहीं जानते हैं. गांव की तो छोड़ें, शहर में भी आम लोग इस बारे में जागरूक नहीं हैं. गोवा में एक अलाभकारी संगठन ‘संगत’ का मुख्यालय है. डॉ विक्रम पटेल इसके संस्थापकों में से एक हैं. वह मनोचिकित्सक हैं.

संगत स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करता है. वर्ष 2015 में अंतरराष्ट्रीय पैतृक ‘टाइम’ ने उन्हें दुनिया के 100 प्रभावशाली शख्सियतों में शुमार किया था. विक्रम पटेल कहते हैं कि शराबखोरी की समस्या या मानसिक अवसाद से पीड़ित लोगों का बड़ा हिस्सा अपने पूरे जीवन में किसी भी किस्म के उपचार से महरूम रहा है. उनकी साइकोथेरापी भी कभी नहीं हुई है.

अगर ऐसे लोग यह समझें भी कि उन्हें मदद की जरूरत है, तो मदद करनेवालों की तलाश भी आसान नहीं है. भारत में हर 10 लाख की आबादी पर मात्र तीन मनोचिकित्सक हैं. अमेरिका में यह आंकड़ा 10 लाख की आबादी पर 124 मनोचिकित्सक का है. मनोविज्ञानियों का औसत तो और भी बुरा है.

तो क्या करें?

पटेल और उनके सहयोगी मानते हैं कि इस समस्या का जवाब उनके पास है. हाल ही में चिकित्सा जगत की मशहूर और प्रतिष्ठित पत्रिका ‘लांसेट’ में पटेल के दो अध्ययन प्रकाशित हुए हैं. पटेल ने इस समस्या का समाधान परामर्शदाता (काउंसलर्स) के पास बताया है. ये काउंसलर्स उसी इलाके के थे, गांव की ही बोली बोलते थे और दसवीं पास थे. इनके पास मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित कोई प्रशिक्षण नहीं था. बाद में वर्कशॉप के जरिये उन्हें तीन हफ्ते का प्रशिक्षण दिया गया. यह प्रशिक्षण स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करनेवाले पेशेवर लोगोंं ने दिया.

इस वर्कशॉप में उन्हें यह सिखाया जाता है कि शराब या अवसाद के शिकार लोगों से कैसे बात की जाये. उन्हें यह भी बताया जाता है कि शराब या अवसाद के शिकार लोगों को कैसा सबक दें कि वे अपना ध्यान शराब से हटा सकें. यह कोग्निटिव बिहैवियरल थेेरापी का ही रूपांतरित रूप है. यह बहुत ही लोकप्रिय थेरापी है. इसका उपयोग सारी दुनिया में होता है. इसका लक्ष्य मरीजों के नुकसानदेह सोच और व्यवहार में बदलाव लाना है.संगत का लक्ष्य देश के कई हिस्सों में शराब या अवसाद के शिकार लोगों को उपचार उपलब्ध कराना है, जहां कोई भी उच्च प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध नहीं है.

कैसे होता है उपचार : प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रोफेशनल स्टाफ शराब या अवसाद के शिकार मरीजों की पहचान करते हैं. हर हफ्ते उन्हें काउंसलर्स से मिलने के लिए बुलाया जाता है. मिलने का काम घर पर या क्लीनिक दोनों में से कहीं भी हो सकता है. चार से आठ बार तक काउंसलिंग होती है. अगर दवाओं की जरूरत पड़ी तो दवा लिखने के लिए डॉक्टर को बुलाया जाता है.

हालांकि अधिकतर मामलों में इसकी जरूरत नहीं पड़ती है. फिर उन मरीजों के साथ ‘टॉक थेरापी’ की जाती है. काउंसलर्स उन मरीजों के साथ रोजाना की जिंदगी के बारे में बात करते हैं. उनसे पूछते हैं कि समस्या शुरू होने के पहले उन्हें क्या करना पसंद था. इसके बाद काउंसलर्स मरीजों को क्या-क्या करना है, इसके बारे में बताते हैं. रोज घूमो, दोस्तों से मिलो, जो खेल पसंद आये उसे खेलो, आदि.

जिन मरीजों की साधारण काउंसलिंग हुई, उनकी तुलना वैसे मरीजों से की गयी, जिनके पास पहले से यह सूचना थी कि बेहतर कैसे महसूस कर सकते हैं, लेकिन उनकी शॉर्ट टर्म काउंसलिंग नहीं हुई थी.

इस ट्रायल में पटेल और उनके शोधार्थियों ने पाया कि 10 में से सात मरीजों ने सामान्य काउंसलर्स के सभी सत्र में हिस्सा लिया. पटेल कहते हैं -“ इस ट्रायल में बहुत ही अच्छा रिकवरी रेट मिला है यानी मरीजों के स्वस्थ होने की दर काफी बेहतर दिखी.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया से जुड़े मनोचिकित्सक राहुल शिध्ये कहते हैं कि इस प्रयोग में इस बात के काफी सबूत हैं कि इस चिकित्सा प्रणाली को अपनाया जा सकता है.

इस अध्यययन के बारे में येल यूनिवर्सिटी में कार्यरत साइकोलॉजी के प्रोफेसर एलान काजदिन मानते हैं कि भारत का यह शोध उल्लेखनीय है. यह अध्ययन बताता है कि प्रभावी उपचार के लिए पेशेवर डिग्री की जरूरत नहीं है. इस अध्ययन का उपयोग दुनिया के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल के लिए किया जाना चाहिए. यह सिर्फ एक खूबसूरत साइंटिफिक डिमान्स्ट्रेशन नहीं है.

(इनपुट: एनपीआर डॉट ऑर्ग)

Prabhat Khabar Digital Desk
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