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अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें खोदने लगा है पाकिस्तान, कल तक दुनिया भर से मान्यता दिलाने की कर रहा था नौटंकी

अभी हाल ही में भारत की राजधानी दिल्ली में सात देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) स्तर की वार्ता आयोजित की गई थी. इस वार्ता में शामिल जार देशों ने एक मूल्यांकन रिपोर्ट साझा की है, जिसमें यह कहा गया है कि आने वाले कुछ सप्ताह में ही तालिबानियों की अंदरुनी कलह तेज होकर बुरे दौर में पहुंच जाएगी.

नई दिल्ली/इस्लामाबाद : अफगानिस्तान की सत्ता पर इसी साल 15 अगस्त को काबिज होने वाले आतंकवादी संगठन तालिबान को कल तक दुनिया भर से मान्यता दिलाने की नौटंकी करने वाला पाकिस्तान अब उसी की जड़ें खोदने में जुट गया है. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि कल तक तालिबान को मान्यता दिलाने के नाम पर नौटंकी करने वाला पाकिस्तान उसकी राह में रोड़ा अटकाने के लिए चालें चलना शुरू कर दिया है. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अफगानिस्तान में छोटे-छोटे जिहादी समूहों को बढ़ावा देकर तालिबान के खिलाफ खड़ा कर रहा है, ताकि उसे कमजोर किया जा सके.

फॉरेन पॉलिसी की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी अफगानिस्तान में तालिबान को कमजोर करने के लिए इस्लामिक इनविटेशन अलायंस (आईआईए) की फंडिंग करके मजबूत बना रहा है. इस संगठन का गठन साल 2020 में अफगानिस्तान में तालिबानियों की जीत तय करने के लिए किया गया था. यह संगठन अमेरिकी खुफिया एजेंसी के निशाने पर है. जिस संगठन का गठन तालबानियों की जीत के लिए किया गया था, पाकिस्तान अब उसका इस्तेमाल उन्हीं तालिबानियों के खिलाफ कर रहा है.

अभी हाल ही में भारत की राजधानी दिल्ली में सात देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) स्तर की वार्ता आयोजित की गई थी. इस वार्ता में शामिल जार देशों ने एक मूल्यांकन रिपोर्ट साझा की है, जिसमें यह कहा गया है कि आने वाले कुछ सप्ताह में ही तालिबानियों की अंदरुनी कलह तेज होकर बुरे दौर में पहुंच जाएगी. हालांकि, वार्ता के दौरान ज्यादातर चर्चा बंद कमरे ही की गई, लेकिन अफगानिस्तान को लेकर कुछ अहम बातों पर सहमति भी बनी है.

माना यह जा रहा है कि तालिबान की स्थित उससे भी बदतर है, जो फिलहाल दुनिया के सामने है या जो अब तक सार्वजनिक हुई है. एनएसए स्तर की वार्ता में शामिल एक देश के अनुसार, अफगानिस्तान के लोगों का तालिबान के शासन पर भरोसा कम ही है. ऐसे में, दुनिया के अन्य देशों से मान्यता लेने से पहले तालिबानियों को सबसे पहले अपने ही देश की जनता का भरोसा जीतना होगा, जो कठिन ही नहीं असंभव ही है.

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मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, निकट भविष्य में मुल्ला बरादर की अगुआई वाले तालिबान के दोहा समूह और कट्टरपंथी हक्कानी समूह के बीच टकराव पहले के मुकाबले तेज होगा. हक्कानी समूह पाकिस्तान का करीबी है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ है. पाकिस्तान तालिबान को कमजोर करने के लिए आईआईए जैसे छोटे जिहादी संगठनों के साथ-साथ इस हक्कानी समूह का भी भरपूर इस्तेमाल करेगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
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