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Bullet Meri Jaan: साड़ी में भी ‘शान’ से बुलेट चलाती हैं पुणे की यह डॉक्टर

Bullet Meri Jaan: डॉ अपर्णा जी बांदोडकर कहती हैं कि जब सड़क पर मोटरसाइकिल देखी जाती है, तो ऐसा माना जाता है कि इसे केवल मर्द ही चला सकता है. आज मैं देखूं, तो मोटरसाइकिल चलाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर कोई मर्द मोटरसाइकिल चला सकता है, तो महिलाएं भी चला सकती हैं.

Bullet Meri Jaan: भारत में दोपहिया वाहनों में रॉयल एनफील्ड की बुलेट को चलाना शान माना जाता है. बुलेट चलाने वालों की ठसक ही कुछ और होती है. बुलेट तो बहुत ऊंची चीज है, लोग मोटरसाइकिल चलाते हैं, तो इसमें अपनी शान मानते हैं. कहा यह जाता है कि मोटरसाइकिल को सिर्फ मर्द ही चला सकते हैं. स्कूटर या स्कूटी ही महिलाओं की सवारी मानी जाती है, लेकिन आज की डेट में कई ऐसी महिलाएं हैं, जो मोटरसाइकिल चला रही हैं. उसमें भी चौंकाने वाली बात यह है कि इन महिलाओं में से कुछ ऐसी भी हैं, जो पारंपरिक परिधान ‘साड़ी’ पहनकर भी फर्राटेदार मोटरसाइकिल चलाती हैं. इन्हीं महिलाओं में एक डॉ अपर्णा जी बांदोडकर भी हैं, जो साड़ी पहनकर बड़े शान से रॉयल एनफील्ड बुलेट चलाती हैं. इस पर उन्हें गर्व है और वह कहती हैं कि बुलेट केवल मर्द ही नहीं चलाते, बल्कि महिलाएं भी चलाती हैं. बुलेट चलाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है.

बुलेट चलाकर घर से क्लिनिक जाती हैं डॉ अपर्णा जी बांदोडकर

दरअसल, भारत में शान की सवारी बनाने वाली कंपनी रॉयल एनफील्ड ने सोशल मीडिया मंच इंस्टाग्राम पर पुणे की डॉ अपर्णा जी बांदोडकर का एक वीडियो पोस्ट किया है. इसके बाद यह वीडियो इस मंच पर तेजी से वायरल हो रहा है. उस वायरल वीडियो पर कई लोग तरह-तरह के कमेंट भी कर रहे हैं. डॉ अपर्णा जी बांदोडकर महाराष्ट्र के पुणे में स्माइल स्टोन नामक डेंटल केयर सेंटर चलाती हैं. वे अपने मरीजों का इलाज करने के लिए अपनी बुलेट मोटरसाइकिल चलाकर ही घर से क्लिनिक तक जाती हैं.

बुलेट वाली डॉक्टर नाम से पुकारते हैं लोग

डॉ अपर्णा बांदोडकर का कहना है कि बुलेट मेरी जान है और यह मेरी पहचान का हिस्सा बन गई है. जब मैं क्लिनिक जाती हूं, तो बुलेट मेरी क्लिनिक के बाहर ही खड़ी रहती है. सुबह-सुबह के समय जब मैं इसे चलाकर क्लिनिक पहुंचती हूं, तो लोग मुझे ‘बुलेट वाली डॉक्टर’ कहकर बुलाते हैं. उन्होंने कहा कि काफी वक्त से मैंने पूरे भारत में प्रत्येक साल गुड़ी पड़वा पर शोभायात्रा के दौरान कई ब्यूटीफुल पिक्चर्स देखे. सो, हुआ ऐसे कि मोटरसाइकिल मेरी जिंदगी में काफी लकी रही. पहली चीज मैंने यही नोटिस की कि शुरू-शुरू में लोग मुझे पलट-पलटकर बिजली की तरह देख रहे थे. उस समय किसी ने कोई नाम भी नहीं दिया था.

बुलेट चलाना कोई रॉकेट साइंस नहीं

उन्होंने कहा कि जब सड़क पर मोटरसाइकिल देखी जाती है, तो ऐसा माना जाता है कि इसे केवल मर्द ही चला सकता है. आज मैं देखूं, तो मोटरसाइकिल चलाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर कोई मर्द मोटरसाइकिल चला सकता है, तो महिलाएं भी चला सकती हैं. महिलाओं में भी आपको स्ट्रेंथ, पावर, परफॉर्मेंस, एंड्योरेंस और मेटल ये सब चीजें दिखेंगी. एन्सिएंट हिस्ट्री या पुराने हीरोज और वॉरियर्स की तरह आज हॉर्स पावर मेकिंग बुलेट में भी आपको महिलाएं दिखाई देंगी.

डॉ. अपर्णा बांदोडकर कौन हैं और वे क्या करती हैं?

डॉ. अपर्णा बांदोडकर एक डेंटल चिकित्सक हैं, जो पुणे में स्माइल स्टोन नामक डेंटल केयर सेंटर चलाती हैं। वे अपनी रॉयल एनफील्ड बुलेट पर क्लिनिक जाती हैं।

डॉ. अपर्णा बुलेट चलाने को लेकर क्या कहती हैं?

वे कहती हैं कि बुलेट केवल पुरुषों की सवारी नहीं है। महिलाएं भी इसे चला सकती हैं और यह कोई कठिन कार्य नहीं है।

डॉ. अपर्णा के वीडियो को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया कैसी है?

उनका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, और लोग उन्हें ‘बुलेट वाली डॉक्टर’ कहकर पुकारते हैं, साथ ही उनकी मोटरसाइकिल चलाने की क्षमता की तारीफ कर रहे हैं।

क्या डॉ. अपर्णा ने अपनी मोटरसाइकिल से जुड़े किसी खास अनुभव का उल्लेख किया है?

हां, उन्होंने कहा कि जब वे सड़क पर अपनी बुलेट चलाती हैं, तो लोग उन्हें पलटकर देखते हैं और यह उनके लिए एक खास अनुभव होता है।

डॉ. अपर्णा का मोटरसाइकिल चलाने का संदेश क्या है?

उनका संदेश है कि महिलाएं भी मोटरसाइकिल चला सकती हैं और उन्हें इसे करने से नहीं डरना चाहिए। उनके अनुसार, महिलाओं में भी शक्ति, प्रदर्शन और क्षमता होती है।

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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