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हाशिए पर बैठा इंसान और सफलता

अपने आसपास देखिए. हर दिन मीडिया में वैसे लोगों की सफलता की कहानियां नजर आती हैं, जिन्होंने विपरीत हालात में जीवन में बेहतर मुकाम बनाया है.

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अपने आसपास देखिए. हर दिन मीडिया में वैसे लोगों की सफलता की कहानियां नजर आती हैं, जिन्होंने विपरीत हालात में जीवन में बेहतर मुकाम बनाया है.

केस स्टडी- 1

हाल में 10वीं और 12वीं का रिजल्ट निकला. लाखों छात्र-छात्राओं ने हर वर्ष की तरह बेहतरीन प्रदर्शन किया और इनमें से कुछ ऐसे भी स्टूडेंट्स हैं, जिन्होंने मुफलिसी में भी टॉप किया. किसी की मां दूसरों के घरों में काम कर अपने बच्चों को पढ़ाती है, तो किसी छात्र ने रोज 22 किलोमीटर साइकिल चलाकर व ट्यूशन पढ़ा कर अपनी पढ़ाई जारी रखी थी.

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केस स्टडी- 2

जेंडर के दृष्टिकोण से भी देखें तो लड़कियां कई क्षेत्रों में लड़कों से बेहतर कर रही हैं. कॉरर्पोरेट जगत में महिलाओं की भागीदारी 30 प्रतिशत हो गयी है, जो 2014 में 21 प्रतिशत थी. उच्च शिक्षा में भी महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है. आज महिलाएं इंजीनियरिंग में 40 प्रतिशत और एमबीबीएस में 50 प्रतिशत से ज्यादा हैं.

केस स्टडी- 3

हाल के वर्षों में ये देखने को मिल रहा है कि उन वर्गों के बच्चे भी शीर्ष में जगह बना रहे हैं, जिनकी पहचान समाज में वंचित तबके के रूप में रही है. पिछले पांच वर्षों में देशस्तरीय सिविल सेवा की परीक्षा में वर्ष 2015 में टीना डॉबी और वर्ष 2019 में कनिष्क कटारिया ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया था. ये अलग विमर्श का विषय है कि दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहतर थी. सिर्फ सिविल सेवा नहीं, बल्कि अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी वंचित समाज के बच्चे लगातार बेहतर कर रहे हैं.

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केस स्टडी- 4

परंपरागत रूप से बिजनेस कम्युनिटी के लोगों के बच्चों की सफलता की दर खासकर ग्रेड- 1 की नौकरियों में (सिविल सेवा), आईआईटी, एम्स और अन्य शीर्ष प्रतियोगी परीक्षाओं में बढ़ गया है, जबकि आज से 10 साल पहले तक इन बिजनेस कम्युनिटी के लोगों की भागीदारी बिजनेस के इतर चार्टर्ड अकाउंटेंसी में ज्यादा थी.

इन चारों केस स्टडीज का ध्यान से आकलन करने पर एक चीज कॉमन नजर आती है कि वस्तुत: ये इंसान का मनोविज्ञान है कि जो व्यक्ति, परिवार, जेंडर और वर्ग हाशिए पर या पीछे रहता है उसमें आगे बढ़ने की एक तड़प होती है और उसमें समाज में अपने को साबित करने की आंतरिक इच्छा भी रहती है. जिसके पास धन है, उसे लगता है कि धन तो उसके पास है, लेकिन एक व्यक्ति जिसके पास पावर है वो उसके सामने भारी पड़ता है, जो आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर होता है. उसकी इच्छा रहती है कि वो जीवन में कुछ ऐसा ऐसा करे, ताकि उसकी सामाजिक और आर्थिक पहचान बेहतर हो सके. चूंकि, ऐसे लोग मुश्किल हालात के साथ जीना जानते हैं. इसलिए उनमें जूझने का माद्दा भी ज्यादा रहता है. उन्हें पता होता है कि उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, लेकिन पाने के लिए सारी कायनात है.

जब हम जीवन में कुछ बेहतर करने का लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं तो उसके लिए प्रयास शुरू कर देते हैं. जीवन में अपने को बेहतर जगह दिलाने की जिजीविषा ही हाशिए पर बैठे इंसान के आगे बढ़ने का मूल मंत्र है.

Vijay Bahadur
Vijay Bahadur
प्रभात खबर के वाईस प्रेसिडेंट हैं और बी पॉजिटिव कॉलम के लेखक और पॉजिटिव वीडियो के क्रिएटर और यूट्यूबर हैं . उनके सोचने का नज़रिया सकारात्मक है और उनके जीवन का मूलमंत्र है . Think Positive Act Positive Be Positive…

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