Matihani Vidhan Sabha: बिहार के बेगूसराय जिले का मटिहानी विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर सियासी चर्चाओं में है. जिस मटिहानी को आमतौर पर एक छोटा और शांत इलाका माना जाता है, उसका नाम भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. वर्ष 1957 के आम चुनाव में यहीं के रचियाही गांव में देश में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की घटना सामने आई थी, जिसने चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए थे.
गौरवशाली रहा है इतिहास
मटिहानी उत्तर बिहार में गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. प्राचीन काल में यह गुप्ता और पाल वंश के समय एक अहम प्रशासनिक और आर्थिक केंद्र था. मुगल काल में भी इसके महत्व के प्रमाण मिलते हैं. हालांकि वक्त के साथ मटिहानी की हालत बिगड़ी और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बेगूसराय शहर बन गया. आज मटिहानी की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है. वर्ष 2022 में स्वीकृत एक नदी पुल परियोजना से यहां के विकास की नई संभावनाएं नजर आ रही हैं.
मटिहानी की स्थापना और CPI का वर्चस्व
राजनीतिक दृष्टिकोण से मटिहानी विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1977 में हुई. यह बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. शुरुआती दौर में यहां कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) का प्रभाव था, जिसने पहले सात में से पांच चुनाव जीते. बाद में नरेंद्र कुमार सिंह ने चार बार लगातार जीत हासिल की, जिनमें दो बार निर्दलीय और दो बार जेडीयू से चुनाव लड़ा.
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राजनीतिक समीकरणों की जानकारी
2020 में यह सीट लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के खाते में गई, जब राजकुमार सिंह ने मात्र 333 वोटों से जीत दर्ज की. दिलचस्प बात यह है कि अब वही राजकुमार सिंह जेडीयू में शामिल हो चुके हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में यहां NDA, महागठबंधन और वाम दलों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली. CPI(M) उम्मीदवार महज 765 वोटों से तीसरे स्थान पर रहे थे.
वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के गिरिराज सिंह ने CPI को मटिहानी क्षेत्र में 20,383 वोटों से हराया. अब जब 2025 का चुनाव नजदीक है, तो एलजेपी और जेडीयू के बीच सीट को लेकर खींचतान की संभावना है.