Vaishali Vidhan Sabha: छठी शताब्दी ईसा पूर्व में स्थापित वैशाली का नाम बौद्ध और जैन दोनों परंपराओं में अत्यंत आदर से लिया जाता है. भगवान बुद्ध ने यहीं 483 ईसा पूर्व में अपना अंतिम उपदेश दिया और इसके लगभग सौ वर्षों बाद 383 ईसा पूर्व में राजा कालाशोक ने यहीं द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन करवाया. आज भी सम्राट अशोक द्वारा स्थापित अशोक स्तंभ वैशाली के इसी गौरवशाली अतीत की निशानी के रूप में खड़ा है. यह स्तंभ न केवल बौद्ध धर्म के इतिहास का प्रतीक है, बल्कि यह अशोक के तीर्थाटन की स्मृति को भी जीवित रखता है.
वैशाली का इतिहास बुद्ध से भी पुराना है. यह लिच्छवि गणराज्य की राजधानी थी और अपने समय का एक समृद्ध, विकसित और लोकतांत्रिक नगर था. शिशुनाग वंश के शासनकाल में यहां की राजनीतिक महत्ता इतनी थी कि राजधानी को पाटलिपुत्र से वैशाली स्थानांतरित कर दिया गया था.
राजनीतिक पटल पर वैशाली: अतीत से वर्तमान तक
आज की वैशाली कभी जिस लोकतंत्र की जननी थी, वह अब एक सामान्य प्रशासनिक ब्लॉक भर रह गई है. 1967 में गठित वैशाली विधानसभा क्षेत्र पहले कांग्रेस का गढ़ माना जाता था. 16 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की, लेकिन 2000 के बाद क्षेत्रीय दलों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली. खासकर जेडीयू ने पिछले 20 वर्षों में लगातार पांच बार यह सीट अपने नाम की है.
2020 के चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी सिद्धार्थ पटेल ने कांग्रेस के संजीव सिंह को 7,413 वोटों से हराया. भाजपा ने परंपरागत रूप से यह सीट अपने सहयोगी दलों के लिए छोड़ी, जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव में एलजेपी (रामविलास) ने इस संसदीय क्षेत्र में सभी छह विधानसभा सीटों पर बढ़त बना ली.
ग्रामीण क्षेत्र की पहचान और मतदाता आंकड़े
वैशाली पूरी तरह से एक ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र है. यहां कोई शहरी मतदाता नहीं है. 2020 में इस क्षेत्र में 345163 मतदाता थे, जिनमें 20.47% अनुसूचित जाति और 12.8% मुस्लिम मतदाता थे. उस वर्ष मात्र 59.05% मतदान हुआ, यानी लगभग 41% मतदाताओं ने वोट नहीं डाला. यह स्थिति उस भूमि के लिए दुखद है जिसे दुनिया का पहला गणराज्य कहा जाता है.
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गौरवशाली इतिहास की छाया में वर्तमान
आज का वैशाली अपने भव्य अतीत की मात्र छाया बनकर रह गया है. जहां कभी लोकतंत्र, सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक चेतना की मिसाल थी, वहीं अब यह क्षेत्र सामान्य ग्रामीण जीवन और राजनीतिक उपेक्षा का शिकार है. हालांकि राज्य और केंद्र सरकारें यहां के पर्यटन विकास के लिए प्रयास कर रही हैं, लेकिन वैशाली अभी भी अपने ऐतिहासिक गौरव को पुनर्जीवित करने से कोसों दूर है.