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दादी की प्ररेणा से प्रकृति मित्र बन गए ओडिशा के जिशुदान दिशारी, सामुदायिक प्रयास से गरीबों को दिलाई आजीविका

Commons Convening: ओडिशा के बाराकुटनी गांव के जिशुदान दिशारी ने कहा कि उनकी दादी ने उन्हें सिखाया था कि प्रकृति ही लोगों की रक्षा करेगी. उनकी इस प्रेरणा ने उन्हें पास के गांवों से 50 से अधिक युवाओं और 100 महिलाओं को संगठित करने के लिए प्रेरित किया. दादी की प्ररेणा से ही उन्होंने व्यापक सामुदायिक भागीदारी की पहल की.

Commons Convening: भारत में करीब 20.5 करोड़ एकड़ के भू-भाग पर फैले सामुदायिक वन, चारागाह और जल निकायों जैसे प्राकृतिक और पारिस्थितिक सामुदायिक भूमि आज डिजिटाइजेशन के युग में भी देश के ग्रामीण इलाकों में गरीबों को आजीविका प्रदान करते हैं. दिल्ली के डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित तीन दिवसीय ‘कॉमन्स कन्वीनिंग’ यानी सामुदायिक भूमि नामक कार्यक्रम में यह बात सामने आई है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के पारिस्थितिक कॉमन्स के प्रबंधन और संरक्षण के लिए आवश्यक रणनीतियों पर चर्चा करना, सतत विकास लक्ष्यों और जलवायु कार्रवाई उद्देश्यों को प्राप्त करने में कॉमन्स की भूमिका को बढ़ावा देना है. इस कार्यक्रम में प्रकृति का सहचर बनकर गेमचेंजर्स ने शिरकत की और सामूहिक प्रयास से गरीबों को आजीविका प्रदान करने वाली कहानी बताई.

ओडिशा के जिशुदान को बचपन में ही मिला प्रकृति संरक्षण का सबक

दिल्ली के डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार 27 अगस्त 2024 से तीन दिनों के आयोजित ‘कॉमन्स कन्वीनिंग’ कार्यक्रम में ओडिशा के बाराकुटनी गांव के जिशुदान दिशारी ने सामुदायिक भूमि की सुरक्षा के क्षेत्र में अपने सफर के बारे में जानकारी दी. उन्हें साल 2022 में प्रकृति मित्र का पुरस्कार दिया गया था. जिशदान दिशारी ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा कि उनकी दादी ने उन्हें सिखाया था कि प्रकृति ही लोगों की रक्षा करेगी. उनकी इस प्रेरणा ने उन्हें पास के गांवों से 50 से अधिक युवाओं और 100 महिलाओं को संगठित करने के लिए प्रेरित किया. दादी की प्ररेणा से ही उन्होंने व्यापक सामुदायिक भागीदारी की पहल की.

नागालैंड में अमूर बाजों को बचाकर जैव संरक्षक बने नुकलू फोम

इस कार्यक्रम में नागालैंड के योंगयिमचेन गांव से शिरकत करने वाले नुकलू फोम ने भी अपने जीवन की यादों को साझा किया. नुकलू फोम को 2021 में जैव विविधता संरक्षण के लिए व्हिटली पुरस्कार मिला है. उन्होंने अपने गांव में शिकारी समुदाय की परिवर्तनकारी यात्रा का वर्णन किया. उन्होंने बताया कि शिकार से संरक्षण की ओर संक्रमण करते हुए समुदाय के प्रयासों ने अमूर बाजों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की. इनकी उपस्थिति ने नीति निर्माताओं और सामुदायिक नेताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा दिया है.

शहरों के लिए बेहद जरूरी है सामुदायिक भूमि प्रबंधन

बेंगलुरु की झील कार्यकर्ता उषा राजगोपालन ने शहरी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामुदायिक भूमि केवल ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ही नहीं, बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी काफी महत्वपूर्ण हैं. राजगोपालन ने चेतावनी दी कि जब तक शहरों को रहने योग्य नहीं बनाया जाता, लोग अपने ग्रामीण क्षेत्रों में लौट आएंगे, जिससे और अधिक शहरीकरण और प्राकृतिक संसाधनों की हानि हो सकती है.

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सामुदायिक भूमि की सुरक्षा की पंचायतों में भी जरूरत

इस कार्यक्रम में इंस्पेक्टर जनरल ऑफ फॉरेस्ट के आईएफएस राजेश एस कुमार, नीति आयोग के डिप्टी एडवाइजर मुनीराजू एसबी, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी के चेयरपर्सन सुधर्शन अय्यंगर, अहमदाबाद स्थित भारतीय प्रबंधन संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर रंजन कुमार घोष और सर्कुलर इकोनॉमी और क्लाइमेट रेजिलियंस प्रोग्राम्स के चीफ एडवाइजर जीना नियाजी समेत कई डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स जैसी प्रमुख हस्तियों ने शिरकत की. राजेश एस कुमार ने पंचायत स्तर पर स्थानीय ज्ञान की समृद्धि पर जोर देते हुए इसे सामुदायिक भूमि की सुरक्षा और संरक्षण प्रयासों में समानता और तात्कालिकता को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण बताया.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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