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हफ्ते में 60 घंटे से अधिक काम करने से सेहत को खतरा! जानिए आर्थिक सर्वेक्षण में क्या कहा गया

Economic Survey: हफ्ते में 60 घंटे से अधिक काम करना आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है. आर्थिक समीक्षा 2024 के अनुसार, 12 घंटे से अधिक डेस्क पर बैठने से तनाव, चिंता और अन्य मानसिक समस्याएं बढ़ सकती हैं. जानिए WHO और ILO की रिसर्च क्या कहती है और खुद को कैसे सुरक्षित रखें. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

Economic Survey: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार 31 जनवरी 2025 को आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 को पेश कर दिया है. आर्थिक सर्वेक्षण 2024 में यह चेतावनी दी गई है कि सप्ताह में 60 घंटे से अधिक काम करना सेहत पर बुरा असर डाल सकता है. खासतौर पर 12 घंटे या उससे अधिक समय तक डेस्क पर बैठने से मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.

ज्यादा काम, ज्यादा बीमारियां

आर्थिक सर्वेक्षण में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. इसमें कहा गया कि 55-60 घंटे से अधिक काम करना स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा हो सकता है.

मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर

सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि सैपियन लैब्स सेंटर फॉर ह्यूमन ब्रेन एंड माइंड के एक अध्ययन के अनुसार, लंबे समय तक डेस्क पर बैठने वाले लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का शिकार हो सकते हैं. WHO और ILO की रिपोर्ट के मुताबिक, लंबे समय तक काम करने से तनाव, चिंता और अन्य मानसिक विकार हो सकते हैं. 12 घंटे से ज्यादा बैठने वाले लोगों में डिप्रेशन और स्ट्रेस बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है.

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क्या करें?

  • वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखें.
  • काम के बीच ब्रेक लें और फिजिकल एक्टिविटी करें.
  • मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें और जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल हेल्प लें.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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