Food Oil Price: शादी-ब्याह और तीज-त्योहार पर पुआ-पूड़ी और ऑयली सब्जियों का स्वाद चखने वाले अब रोजाना अपने घरों में पुआ-पूड़ी और तरमाल सब्जियों का लुत्फ उठा सकते हैं. इसका कारण यह है कि देश में अब खाने वाले तेल की कीमतों में कमी होने वाली है. केंद्र सरकार ने खाने वाले कच्चे तेलों पर आयात शुल्क में 10% की कटौती करने का बड़ा फैसला किया है. इसका असर आने वाले दो सप्ताह में खुदरा बाजार में साफ नजर आएगा. विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे खाद्य तेल की कीमतों में 5-6% की गिरावट संभव है. उपभोक्ताओं को राहत मिलने के साथ-साथ खाद्य तेल उद्योग में भी गति आने की उम्मीद है.
हाल ही में क्यों बढ़ी थीं तेल की कीमतें?
इमामी एग्रोटेक के सीईओ सुधाकर राव देसाई के अनुसार, बीते कुछ महीनों में खाद्य तेल की कीमतों में लगभग 17% तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी. वैश्विक आपूर्ति बाधाओं और आयात महंगे होने के चलते उपभोक्ताओं पर इसका सीधा असर पड़ा. हालांकि, अब थोक बाजार में कीमतें नीचे आना शुरू हो गई हैं और जल्द ही खुदरा स्तर पर भी यह बदलाव देखा जाएगा.
घरेलू तेलों पर भी असर
यह बदलाव सिर्फ आयातित तेलों तक सीमित नहीं रहेगा. सुधाकर राव देसाई के मुताबिक, सरसों तेल, जो पूरी तरह घरेलू उत्पादन पर आधारित है, उसमें भी 3-4% की गिरावट आ सकती है. समूचे बाजार में गिरावट का दबाव सभी प्रकार के खाद्य तेलों पर पड़ेगा, जिससे उपभोक्ताओं को व्यापक स्तर पर राहत मिलेगी.
रिफाइनरी इंडस्ट्री को नई गति
इस नीतिगत बदलाव का एक और बड़ा असर भारत के फूड ऑयल रिफाइनरी इंडस्ट्रीज पर देखने को मिलेगा. कच्चे और रिफाइन्ड ऑयल पर शुल्क के बीच का अंतर 12.5% से बढ़कर 22.5% हो गया है. इससे घरेलू कंपनियों के लिए कच्चा तेल आयात कर देश में ही रिफाइन करना अधिक फायदेमंद हो जाएगा.
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मेक इन इंडिया को बढ़ावा
हलदर वेंचर लिमिटेड के एमडी केशव कुमार हलदर ने कहा कि 10% शुल्क कटौती एक गेम चेंजर कदम है. इससे न केवल सोयाबीन, सूरजमुखी और पाम तेल सस्ते होंगे, बल्कि देश के रिफाइनिंग सेक्टर की क्षमता उपयोग में 20-25% तक की वृद्धि संभव है. इससे आयातित रिफाइन्ड ऑयल पर निर्भरता घटेगी और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बल मिलेगा.
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