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Luxury Brands: मंदी की आहट में अमीरी का ठाठ! लग्जरी ब्रांड्स की बल्ले-बल्ले

Luxury Brands: वैश्विक मंदी की आहट के बीच भी लक्जरी ब्रांड्स की मांग में कमी नहीं आई है. हर्मेस, चैनल, और रोलेक्स जैसे ब्रांड उच्च वर्ग की पसंद बने हुए हैं. सीमित आपूर्ति, भावनात्मक ब्रांडिंग और वैश्विक विविधीकरण इन्हें मंदी-प्रूफ बनाते हैं. 2025 में वैश्विक विकास दर 2.3% रहने की संभावना है, लेकिन लग्जरी सेक्टर स्थिर बना हुआ है. निवेश, विशिष्टता और प्रतिष्ठा के बल पर ये ब्रांड आर्थिक संकट में भी चमकते हैं.

Luxury Brands: मध्य-पूर्व, यूरोपीय और एशियाई के देशों के बीच जारी भू-राजनीतिक तनाव की वजह से आर्थिक मंदी के बीच अमीरी का जलवा बरकरार है. यही वजह है कि लग्जरी ब्रांड्स के प्रदर्शन में कमी आती दिखाई नहीं दे रही है. विश्व बैंक और दूसरी एजेंसियों की रिपोर्ट्स में आगाह किया गया है कि साल 2025 में वैश्विक वृद्धि दर 2.3% रहने का अनुमान है, जो कि 2008 के बाद सबसे धीमी वृद्धि है. रिपोर्ट्स में साफ तौर पर कहा गया है कि भू-राजनीतिक तनाव, व्यापार प्रतिबंध और आर्थिक अनिश्चितताएं वैश्विक मंदी का संकेत दे रहे हैं, लेकिन, इन प्रतिकूल परिस्थितियों में लक्जरी ब्रांडों का प्रदर्शन सबसे अलग दिखाई देता है. जहां अधिकांश उपभोक्ता अपने खर्च सीमित करते हैं, वहीं अल्ट्रा-हाई नेट-वर्थ व्यक्तियों की खपत पर मंदी का खास असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है.

विश्व बैंक की चेतावनी

विश्व बैंक की आउटलुक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि व्यापार प्रतिबंधों और नीति अस्थिरता से विकास दर और कमजोर हो सकती है. प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में अपेक्षाकृत कमजोर विकास, वित्तीय तनाव और चरम मौसम की घटनाएं, मंदी को और गहरा कर सकती हैं. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में निजी खर्च में गिरावट और कमजोर आय वृद्धि एक तीव्र आर्थिक सुस्ती को पैदा कर सकती है.

लक्जरी ब्रांडों की इनलेस्टिसिटी डिमांड

गुड रिर्टन्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लक्जरी ब्रांडों की मांग की सबसे अनूठी विशेषता इनलेस्टिसिटी है. इसका अर्थ है कि आय में कमी या कीमतों में वृद्धि के बावजूद इनकी मांग में विशेष गिरावट नहीं आती. लक्जरी वस्तुएं (हर्मेस की घड़ियां, चैनल के हैंडबैग, या रोल्स-रॉयस की कारें) विशिष्टता और पहचान का प्रतीक बन चुकी हैं.

सुरक्षित निवेश का ऑप्शन बने लक्जरी सामान

लक्जरी सामानों को सिर्फ उपभोग के लिए नहीं, बल्कि इन्हें एक सुरक्षित निवेश के रूप में भी देखा जाता है. घड़ियां, हीरे, आर्ट्स और कलेक्टिव कारें ऐसी परिसंपत्तियां हैं, जो समय के साथ मूल्य में वृद्धि कर सकती हैं. मंदी के दौरान जब दूसरी संपत्तियां गिरती हैं, ये ‘हेवन’ संपत्तियां पूंजी के लिए सुरक्षित विकल्प बनती हैं. सोने की बढ़ती मांग इसका प्रमाण है.

आपूर्ति की सीमा और विशेष रणनीति

लक्जरी ब्रांड उत्पादों की सीमित आपूर्ति और कड़े वितरण नियंत्रण के जरिए अपनी विशिष्टता बनाए रखते हैं. मंदी के समय में यह रणनीति और भी मजबूत हो जाती है. ग्राहक की मानसिकता यह होती है कि “दुर्लभता मूल्य बढ़ाती है.” पाब्लो गुटिरेरेज-रावे के अनुसार, अमीर उपभोक्ता संकट के समय में भी अनूठे उत्पादों पर अधिक खर्च करते हैं.

भौगोलिक विविधीकरण का लाभ

लक्जरी ब्रांडों की वैश्विक उपस्थिति उन्हें मंदी के प्रभाव से बचाने में मदद करती है. यदि एक क्षेत्रीय बाजार प्रभावित होता है, तो ब्रांड अन्य क्षेत्रों से राजस्व की भरपाई कर लेते हैं. उदाहरण के लिए, यदि अमेरिका मंदी की चपेट में आता है, तो लक्जरी ब्रांड मध्य-पूर्व, भारत और दक्षिण एशिया जैसे क्षेत्रों से बिक्री बनाए रख सकते हैं.

भावनात्मक ब्रांडिंग और ग्राहकों का लगाव

रिपोर्ट में कहा गया है कि लक्जरी ब्रांडों की मार्केटिंग केवल प्रचार तक सीमित नहीं होती, बल्कि वह उपभोक्ताओं की भावनाओं से जुड़ती है. इस भावनात्मक जुड़ाव के कारण उपभोक्ता कठिन समय में भी ब्रांड वफादारी बनाए रखते हैं. “हेरिटेज, अखंडता और प्रतिष्ठा” की कहानी पीआर के माध्यम से निरंतर संप्रेषित की जाती है, जिससे उपभोक्ता का भरोसा बना रहता है.

2008, 2012 और कोविड की मंदी से सबक

2008 की वैश्विक मंदी में लक्जरी बाजार में केवल 9% गिरावट आई, जबकि दूसरे सेक्टर्स में दो अंकों की गिरावट थी. 2012 के यूरोपीय कर्ज संकट और कोविड-19 की मंदी में परिधान और घड़ियों की बिक्री में गिरावट आई, लेकिन कोर लक्जरी ब्रांडों ने रिकवरी दिखाई. हर्मेस, चैनल और रोलेक्स जैसे ब्रांडों ने अपने उत्पादों की विशिष्टता और उच्च मांग के चलते तेज रिकवरी दर्ज की.

प्रतिष्ठा ही मुद्रा है

रिपोर्ट में एलिक्विन कम्युनिकेशन्स की संस्थापक परेरा के हवाले से कहा गया है कि इन लक्जरी ब्रांडों की सबसे बड़ी पूंजी उनकी प्रतिष्ठा है. ये ब्रांड सीमित दृश्यता और उच्च गुणवत्ता के जरिए विशिष्टता को बनाए रखते हैं. मंदी के दौरान इन ब्रांडों को केवल ट्रेंडिंग बने रहना होता है.

2025 की तस्वीर

साल 2025 एक मिश्रित तस्वीर पेश कर रहा है. अल्ट्रा-लक्जरी सेगमेंट, विशेषकर मध्य-पूर्व और एशिया के क्षेत्रों में स्थिर बना हुआ है. वहीं, उत्तरी अमेरिका में ‘सुलभ लक्जरी’ श्रेणियों में कमजोरी के संकेत हैं. यदि अमेरिका में मंदी पूरी तरह सक्रिय होती है, तो उपभोक्ता अधिक सलेक्टिव हो सकते हैं. ऐसे में वे ऐसे उत्पादों को चुन सकते हैं, जो स्पष्ट मूल्य, दीर्घकालिकता और अर्थ प्रदान करते हों.

लक्जरी का भविष्य

अगले 24 महीनों के लिए लक्जरी ब्रांडों की रणनीति ‘सावधानी से आशावादी’ रहने की हो सकती है. विशेष रूप से ब्रांड, जो स्थिरता, दीर्घकालिक दृष्टि और सामाजिक जिम्मेदारी का निभाते हैं, उन्हें बाजार में प्राथमिकता मिलेगी. बैन एंड कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत, लैटिन अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका जैसे उभरते बाजार 2030 तक 50 मिलियन नए लक्जरी उपभोक्ता जोड़ सकते हैं.

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मंदी में मजबूती

लक्जरी ब्रांड मंदी में भी मजबूती से खड़े रह सकते हैं. इनकी मांग इनलेस्टिक है, आपूर्ति सीमित है, मार्केटिंग भावनात्मक है और रणनीति वैश्विक है. जब आम उपभोक्ता खर्च में कटौती करता है, तब लक्जरी ब्रांड विश्वसनीयता, अनुभव और विशिष्टता के बल पर आगे बढ़ते हैं. मंदी हो या वैश्विक संकट, लक्जरी ब्रांड उन कुछ सेक्टरों में हैं, जो हमेशा चमकते रहते हैं.

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KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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