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आधा भारत नहीं जानता क्या है मॉन्ट्रियल कन्वेंशन, जिससे हवाई हादसा पीड़ितों को मिलता है मुआवजा

Montreal Convention: मॉन्ट्रियल कन्वेंशन दुनिया भर के हवाई यात्रियों को सुरक्षा का एक मजबूत ढांचा प्रदान करता है. भारत जैसे देश में जहां हवाई यात्राएं तेजी से बढ़ रही हैं, इस संधि की जानकारी आम जनता के लिए बेहद जरूरी है. एयर इंडिया जैसी घटनाओं के बाद यह और भी अहम हो जाता है कि लोग अपने अधिकार और मुआवजे की प्रक्रिया को समझें और समय पर दावा करें.

Montreal Convention: अहमदाबाद के सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद 12 जून 2025 को एयर इंडिया का एआई171 विमान क्रैश कर गया. एयर इंडिया के इस विमान में क्रू मेंबर समेत कुल 142 लोग सवार थे. एक सवारी को छोड़कर बाकी के 141 यात्रियों की जानें चली गईं. इस विमान हादसे के बाद टाटा ग्रुप ने दुर्घटना पीड़ित प्रत्येक परिवार को 1-1 करोड़ रुपये की मुआवजा राशि देने का ऐलान किया. टाटा ग्रुप के इस ऐलान के बाद सोशल मीडिया पर मॉन्ट्रियल कॉन्वेंशन भी ट्रेंड करने लगा. लोग यह सर्च करने लगे कि आखिर यह मॉन्ट्रियल कन्वेशन है क्या, जिसके तहत हवाई हादसा पीड़ितों कोमुआवजा दिया जाता है. आइए, इस अंतरराष्ट्रीय संधि के बारे में विस्तार से जानते हैं.

क्या है मॉन्ट्रियल कन्वेंशन?

मॉन्ट्रियल कन्वेंशन 1999 (Montreal Convention, 1999) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे Convention for the Unification of Certain Rules for International Carriage by Air कहा जाता है. यह संधि अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा के दौरान यात्रियों, उनके सामान, और कार्गो से संबंधित दुर्घटनाओं, हानि या मौत के मामलों में एयरलाइनों की जिम्मेदारी तय करती है.

यह कन्वेंशन पुराने वारसॉ कन्वेंशन 1929 का आधुनिक संस्करण है, जो 2003 में लागू हुआ और भारत ने इसे 2009 में अपनाया. आज यह 130 से अधिक देशों में लागू है और इसे अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) की देखरेख में बनाया गया है. इसका उद्देश्य मुआवजे की प्रक्रिया को मानकीकृत करना और यात्रियों के अधिकारों की रक्षा करना है.

धारा 17 के तहत हादसे पर एयरलाइन की जिम्मेदारी

मॉन्ट्रियल कन्वेंशन की धारा 17 के तहत अगर कोई यात्री विमान के भीतर, चढ़ते या उतरते समय किसी हादसे का शिकार होता है, तो एयरलाइन उस मौत या चोट के लिए उत्तरदायी मानी जाती है. इसमें “हादसा” को एक अप्रत्याशित और असामान्य घटना के रूप में परिभाषित किया गया है. इसमें विमान दुर्घटना, सामान गिरना या गर्म पेय गिरने से चोट लगना शामिल है. यह एक सख्त जिम्मेदारी की अवधारणा लागू करता है, जिसका अर्थ है कि एयरलाइन को मुआवजा देने के लिए यात्री को यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि एयरलाइन की गलती थी.

कितनी होती है मुआवजे की राशि

मॉन्ट्रियल कन्वेंशन के अनुसार, एयरलाइन को पहले 128,821 स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर) तक मुआवजा देना होता है, चाहे उसकी गलती साबित हो या नहीं.

  • एसडीआर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा इकाई है, जिसे आईएमएफ की ओर से जारी किया जाता है.
  • अक्टूबर 2024 के मुताबिक 1 एसडीआर = 1.33 डॉलर यानी कुल मुआवजा लगभग 1.3 करोड़ रुपये बनता है.

अगर पीड़ित पक्ष इससे अधिक मुआवजा मांगता है, तो एयरलाइन को यह साबित करना होता है कि हादसा उसकी लापरवाही से नहीं हुआ या किसी तीसरे पक्ष की गलती थी.

मुआवजा तय करने के मानदंड

मुआवजा केवल एसडीआर के आधार पर नहीं, बल्कि यात्री की राष्ट्रीयता, आयु, पेशा और आय के आधार पर भी तय किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, एयर इंडिया हादसे में टाटा ग्रुप ने 1 करोड़ रुपये की अंतरिम राहत दी है, लेकिन अंतिम भुगतान बीमा कंपनियों और मॉन्ट्रियल कन्वेंशन की प्रक्रिया के अनुसार ही होगा.

मानसिक आघात और दावा सीमा

मॉन्ट्रियल कन्वेंशन के तहत मानसिक आघात का मुआवजा तभी मिलता है, जब वह किसी शारीरिक चोट से जुड़ा हो. इसके अलावा, दावे की दो साल की समय-सीमा होती है. इस अवधि के बाद दावा नहीं किया जा सकता.

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मुकदमे और सीमाएं

कन्वेंशन यात्रियों को यह अधिकार देता है कि वे अपने निवास स्थान, अंतिम गंतव्य या एयरलाइन के मुख्यालय में से किसी एक जगह मुकदमा दायर कर सकते हैं. हालांकि यह संधि सिर्फ एयरलाइंस पर लागू होती है, विमान निर्माताओं या हवाई अड्डा प्रबंधन पर नहीं.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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