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आधा भारत नहीं जानता क्या है एमएसपी, जान जाएगा तो हर किसानों के खातों में होंगे लाखों रुपये

MSP: एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों की फसलों की सरकारी खरीद के लिए तय किया गया न्यूनतम मूल्य है, जिससे उन्हें बाजार की अनिश्चितता में नुकसान न हो. यह मूल्य सरकार कृषि लागत आयोग की सिफारिशों के आधार पर तय करती है. फिलहाल, यह A2+FL+50% फॉर्मूले पर आधारित है, जबकि स्वामीनाथन आयोग ने C2+50% फॉर्मूले की सिफारिश की थी. एमएसपी किसानों की आय सुरक्षा, उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाता है.

MSP: सरकार किसानों की फसलों की खरीद के लिए हर साल एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है. एमएसपी को लेकर देश में कई महीनों तक किसान नेताओं ने आंदोलन भी किया है. लेकिन, देश के अधिकतर किसान इसके बारे में नहीं जानते और कृषि मंडियों में बिचौलिए, मुनाफाखोर और चालाक आढ़तियों का शिकार बन जाते हैं. आज हम किसानों को एमएसपी के बारे में बताने जा रहे हैं कि एमएसपी क्या है, सरकार इसे किस फॉर्मूले पर तय करती है और स्वामीनाथन आयोग ने सरकार से क्या सिफारिश की थी?

एमएसपी क्या है?

विद्यार्थियों को आईएएस की तैयारी कराने वाले संस्थान दृष्टि की एक रिपोर्ट के अनुसार, न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस को संक्षेप में एमएसपी कहते हैं. एमएसपी सरकार की ओर से निर्धारित वह न्यूनतम मूल्य है, जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसलों को खरीदती है, ताकि बाजार में कीमतों के गिरने पर किसानों को नुकसान न हो. यह एक प्रकार से सरकार का बाजार हस्तक्षेप है, जो किसानों को उनकी उपज के लिए न्यूनतम आय की गारंटी देता है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करता है. एमएसपी को हर साल खरीफ और रबी फसलों के लिए अलग-अलग घोषित किया जाता है.

एमएसपी का मुख्य उद्देश्य

  • किसानों को नुकसान से बचाना: जब बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे गिरता है, तो सरकार एमएसपी पर फसल खरीदती है.
  • खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित करता है.
  • उत्पादन को प्रोत्साहन: एमएसपी किसानों को विशिष्ट फसलों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करता है. इनमें अनाज, दालें और तिलहन आदि शामिल हैं.

एमएसपी की गणना

एमएसपी की गणना कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर की जाती है. सीएसीपी विभिन्न कारकों को ध्यान में रखता है.

  • उत्पादन लागत: इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मजदूरी, और सिंचाई जैसे प्रत्यक्ष खर्च को A2 के तौर पर शामिल किया जाता है.
  • परिवारिक श्रम का मूल्य (FL): इसमें किसान परिवार के अवैतनिक श्रम का अनुमानित मूल्य जोड़ा जाता है.
  • C2 लागत: इसमें A2+FL के साथ-साथ स्वामित्व वाली जमीन का किराया और स्थायी पूंजी पर ब्याज को जोड़ा जाता है.
  • बाजार और आर्थिक कारक: मांग-आपूर्ति की स्थिति, घरेलू और वैश्विक बाजार कीमतें और मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाता है.

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश

दृष्टि की रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय किसान आयोग ने 2004-2006 के बीच सरकार के सामने पांच रिपोर्ट पेश की थी, जिसकी की अध्यक्षता प्रो एम.एस. स्वामीनाथन ने की थी. इसकी प्रमुख सिफारिश थी कि एमएसपी को C2+50% फॉर्मूले पर आधारित करना चाहिए. यानी C2 लागत पर 50% लाभ जोड़ा जाए, जिसमें उत्पादन की व्यापक लागत (A2+FL), जमीन का किराया और स्थायी पूंजी पर ब्याज शामिल है. यह सिफारिश किसानों को उनकी पूरी लागत के साथ उचित लाभ सुनिश्चित करने के लिए थी.

एमएसपी तय करने का सरकारी फॉर्मूला

फिलहाल, सरकार एमएसपी को A2+FL+50% फॉर्मूले पर तय करती है, जिसमें केवल प्रत्यक्ष लागत (A2) और परिवारिक श्रम (FL) को शामिल किया जाता है और इस पर 50% लाभ जोड़ा जाता है. यह स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश (C2+50%) से कम व्यापक है, क्योंकि इसमें जमीन का किराया और स्थायी पूंजी पर ब्याज शामिल नहीं होता. उदाहरण के तौर पर अगर गेहूं की A2+FL लागत 960 रुपये प्रति क्विंटल है, तो एमएसपी 960 + 50% = 1440 रुपये प्रति क्विंटल होगा. लेकिन, स्वामीनाथन आयोग के अनुसार, अगर C2 लागत (जो A2+FL से अधिक है) 1200 रुपये है, तो एमएसपी 1200 + 50% = 1800 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए.

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एमएसपी से किसानों को लाभ

एमएसपी किसानों और अर्थव्यवस्था के लिए कई तरह से लाभकारी है. यह किसानों को बाजार की अस्थिरता से बचाता है, जिससे उनकी आय स्थिर रहती है. एमएसपी चावल और गेहूं जैसे मुख्य अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, जो पीडीएस और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं. बम्पर फसल होने पर कीमतों में गिरावट से किसानों को बचाता है. एमएसपी की गारंटी किसानों को बीज, उर्वरक और तकनीक में निवेश करने के लिए प्रेरित करती है.

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KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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