India Inflation: आम आदमी के लिए एक अच्छी खबर आईं है. जून महीने में थोक महंगाई घटकर माइनस 0.13% पर आ गई है, ये 20 महीने का निचला स्तर था.
इससे पहले साल 2023 अक्टूबर में ये माइनस 0.56% पर थी. मई में ये 0.39% और अप्रैल में 0.85% पर थी.
खाने-पीने की चीजें सस्ती हुईं
रोजाना की जरूरत वाले सामानों की महंगाई माइनस 2.02% से घटकर माइनस 3.38% हो गई है.
- खाने-पीने की चीजों (फूड इंडेक्स) की महंगाई 1.72% से घटकर माइनस 0.26% हो गई है.
- फ्यूल और पावर की थोक महंगाई दर माइनस 2.27% से घटकर माइनस 2.65% रही है.
- मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट्स की थोक महंगाई दर 2.04% से घटकर 1.97% रही है.
आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है. अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं जिससे आम आदमी पर असर पड़ता है. सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है, जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी. बता दें कि सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है. WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है.
होलसेल महंगाई के तीन हिस्से
प्राइमरी आर्टिकल का वेटेज 22.62% है.
फ्यूल एंड पावर का वेटेज 13.15%.
मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज 64.23% है.
महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है रिटेल यानी खुदरा और थोक महंगाई. रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है. इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं. वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स की कीमत थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है.
महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है जिससे फिर डेटा निकल के आता है. थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड में 22.62% और फ्यूल एंड पावर 13.15% होती है.
रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भागीदारी होती है.
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