China vs India: कदम-कदम पर आतंकवाद के पनाहगाह देश पाकिस्तान को साथ देने वाले चीन का भारत अगले दशक में तेल निकाल देगा. इसके बाद पूरी दुनिया में फिर भारत तेल की मांग बढ़ाने वाला देश बन जाएगा. रेटिंग एजेंसी मूडीज ने गुरुवार को अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पिछले दशक तक ग्लोबल ऑयल डिमांड में ग्रोथ की स्पीड बढ़ाने में चीन की महत्वपूर्ण थी, लेकिन अगले दशक में भारत तेल की खपत और उसकी मांग बढ़ाने के मामले में उससे आगे निकल जाएगा और फिर पूरी दुनिया में तेल की मांग की वृद्धि बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा. इस समय चीन दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा तेल का उपभोक्ता देश है, जबकि भारत तीसरे स्थान पर है. लेकिन, दोनों देशों की तेल की मांग वृद्धि में काफी अंतर है.
चीन की आर्थिक वृद्धि सुस्त, बढ़ रहे इलेक्ट्रिक वाहन
मूडीज रेटिंग्स ने कहा, “भारत में मांग की वृद्धि और आयात पर निर्भरता अधिक होगी. अगले दशक में भारत में मांग चीन की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ेगी, क्योंकि चीन की आर्थिक वृद्धि सुस्त हो रही है और नए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रवेश तेज हो रहा है.”
पांच साल में चीन में चरम पर होगी तेल की खपत
चीन में कच्चे तेल की खपत अगले तीन से पांच वर्षों में चरम पर होगी, जबकि भारत में मूडीज को इसी अवधि में तीन-पांच प्रतिशत की सालाना वृद्धि की उम्मीद है. रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि दोनों देश तेल और गैस आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं, लेकिन मांग में सुस्त वृद्धि और घरेलू उत्पादन बढ़ने से चीन की तेल आयात पर निर्भरता कम होने का अनुमान है.
आयात पर बढ़ेगी भारत की निर्भरता
मूडीज ने कहा, “यदि भारत कच्चे तेल के घरेलू उत्पादन में गिरावट को नहीं रोक पाता है, तो आयात पर उसकी निर्भरता बढ़ जाएगी.” इसके मुताबिक, चीन की व्यापक तेल और गैस खपत इसकी राष्ट्रीय तेल कंपनियों (एनओसी) के पैमाने को रेखांकित करती है, जो संभवतः अगले तीन-पांच वर्षों में उत्पादन वृद्धि में अपने भारतीय समकक्षों से आगे निकल जाएंगी.
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चुनौतियों से जूझ रहीं भारतीय तेल कंपनियां
भारतीय तेल कंपनियों को पुराने तेल कुओं और धीमे निवेश से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके अतिरिक्त, मूडीज ने दोनों देशों की तेल कंपनियों के निवेश उद्देश्यों में अंतर का भी जिक्र किया है. मूडीज ने कहा कि भारतीय एनओसी घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना बना रही हैं, लेकिन इस पर अमल होना अभी बाकी है. इसके अलावा, हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश का दबाव भी भारतीय कंपनियों पर अधिक होता है.
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