Trade Deal: द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए भारतीय दल वाशिंगटन पहुंच गई है. अमेरिका और भारत के बीच सोमवार से ही बातचीत शुरू भी हो गई है. उम्मीद जाहिर की जा रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ लागू होने की आखिरी तारीख 1 अगस्त 2025 से पहले दोनों देशों के बीच कोई बड़ा फैसला हो सकता है. हालांकि, अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते में कृषि और डेयरी क्षेत्र के मुद्दों पर मामला अटका हुआ है. अमेरिका चाहता है कि भारत उसके लिए कृषि और डेयरी क्षेत्रों का रास्ता खोल दे, ताकि व्यापार करने में उसे आसानी हो, लेकिन भारत अपने करीब 8 करोड़ से अधिक किसानों के हित के आगे अमेरिका के सामने झुकने को तैयार नहीं है.
किसानों के हितों से नहीं होगा समझौता
सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी सूरत में 8 करोड़ डेयरी किसानों के हितों के साथ समझौता नहीं करेगा. भारत का यह रुख भावनात्मक नहीं, बल्कि तथ्यों पर आधारित है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, अगर भारत ने डेयरी क्षेत्र को अमेरिकी आयात के लिए खोल देता है, तो इससे किसानों को सालाना 1.03 लाख करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है.
भारत के लिए अहम है डेयरी क्षेत्र
एसबीआई रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत का डेयरी क्षेत्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. यह राष्ट्रीय सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में 2.5-3% का योगदान देता है, जिसकी कुल वैल्यू 7.5 से 9 लाख करोड़ रुपये तक है. इस क्षेत्र में लगभग 8 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है, जो इसे केवल कृषि उत्पादकता का नहीं, बल्कि सामाजिक स्थिरता का भी स्तंभ बनाता है.
अमेरिकी डेयरी से खतरा क्यों?
अमेरिका में डेयरी उत्पादों को भारी मात्रा में सब्सिडी मिलती है, जिससे उनकी कीमतें बेहद कम होती हैं. यदि भारत ने अपने बाजार को अमेरिका के लिए खोल दिया, तो भारतीय दूध उत्पादकों को 15-20% तक कीमतों में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. एसबीआई का अनुमान है कि यदि दूध के भाव 15% गिरते हैं, तो इससे कुल 1.8 लाख करोड़ रुपये का राजस्व नुकसान होगा. इसका सीधा प्रभाव किसानों की आमदनी पर पड़ेगा, जो इस राजस्व का लगभग 60% हिस्सा बनाते हैं.
भारत के छोटे किसानों पर गहरा आघात
एसबीआई रिपोर्ट ने साफ संकेत दिए हैं कि डेयरी क्षेत्र को खोलने से भले ही अमेरिका के साथ रणनीतिक सहयोग और व्यापार में तेजी आए, लेकिन भारत के छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका पर गहरा आघात पहुंचेगा. भारत का दूध उत्पादन और खपत मॉडल बेहद विकेंद्रित और आत्मनिर्भर है. यदि अमेरिकी डेयरी उत्पाद भारत में आ जाते हैं, तो इसका सीधा असर देश के स्वदेशी उत्पादों और रोजगार पर पड़ेगा.
संभावित आयात और उसका असर
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर भारत ने अमेरिका को डेयरी सेक्टर में प्रवेश दे दिया, तो दूध का आयात 2.5 करोड़ टन सालाना तक पहुंच सकता है. इसका मतलब है कि घरेलू मांग की बड़ी हिस्सेदारी विदेशी उत्पादों से पूरी होगी, जिससे भारतीय किसानों की प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता खत्म हो सकती है.
चिंता में विशेषज्ञ
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट भी यही कहती है कि अमेरिका के सब्सिडी युक्त डेयरी, पोल्ट्री, जीएम सोया और चावल जैसे उत्पाद भारत की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा हैं. इसके अलावा, इससे फूड सिक्योरिटी पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है.
भारत सरकार की दो-टूक नीति
सरकार ने इस मुद्दे पर कोई अस्पष्टता नहीं छोड़ी है. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत-अमेरिका एफटीए दोनों देशों के लिए लाभकारी होना चाहिए. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी दो टूक कहा कि कोई भी समझौता दबाव में नहीं, बल्कि किसानों के हितों को प्राथमिकता देते हुए किया जाएगा.
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समझौता होगा, लेकिन किसानों की कीमत पर नहीं
भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील पर सहमति जरूर बन सकती है, लेकिन डेयरी क्षेत्र पर भारत का रुख अटल है. सरकार जानती है कि एक गलत फैसला 8 करोड़ परिवारों की आजीविका पर असर डाल सकता है. ऐसे में व्यापारिक मुनाफे से अधिक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार और आत्मनिर्भरता की प्राथमिकता तय करना जरूरी है और भारत यही कर रहा है.
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