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जवानों के जाने के बाद पत्नी और पैरेंट्स को मिलेगी पेंशन, क्या नियमों में किया जाएगा बदलाव?

Indian Army News: सियाचीन में दो महीने पहले शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने पेंशन नियमों में बदलाव को लेकर कई सवाल उठाए थे. शहादत के बाद कैप्टन अंशुमान सिंह को सरकार की ओर से कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था, लेकिन शहीद कैप्टन की पत्नी कीर्ति चक्र सम्मान के साथ सब सामान अपने साथ लेकर चली गई.

Indian Army: देश की सीमाओं पर तैनात भारतीय सेना के जवानों और उनके परिजनों के लिए एक जरूरी जानकारी है. जवानों को जाने के बाद उनकी पत्नी और माता-पिता को पेंशन मिल सकती है, अगर सरकार भारतीय सेना की सिफारिश को मान ले. भारतीय सेना ने सरकार से पेंशन नियमों में बदलाव करने की सिफारिश की है, जिसमें कहा गया है कि जवानों के जाने के बाद पत्नी और उनके माता-पिता को आर्थिक मदद के लिए पेंशन नियमों में बदलाव किया जाए. इसके साथ ही, सेना ने अफसर और जवानों के लिए अलग-अलग नियमों को खत्म कर उसमें समानता लाने की भी सिफारिश की है.

कैप्टन अंशुमान सिंह मामले ने सेना को झकझोरा

हिंदी के अखबार नवभारत टाइम्स की वेबसाइट की एक रिपोर्ट के अनुसार, सियाचीन में दो महीने पहले शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता ने पेंशन नियमों में बदलाव को लेकर कई सवाल उठाए थे. शहादत के बाद कैप्टन अंशुमान सिंह को सरकार की ओर से कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था. इसके बाद मीडिया में उनके माता-पिता बयान आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि शहीद कैप्टन की पत्नी कीर्ति चक्र सम्मान के साथ सब सामान अपने साथ लेकर चली गई. उस समय उन्होंने सरकार से मांग की थी कि निकटतम परिजन (एनओके-नेक्स्ट ऑफ किन) के नियम में बदलाव किया जाए. इससे पहले भी पेंशन के मामलों में एनओके नियमों पर सवाल उठते रहे हैं. कैप्टन अंशुमान सिंह मामले के बाद सेना ने पेंशन नियमों में बदलाव की सिफारिश की है.

सेना में मौजूदा पेंशन नियम क्या है?

भारतीय सेना के नियमों के अनुसार, जब कोई जवान फौज में सैनिक या अफसर के तौर भर्ती होता है, उन्हें एक विस्तृत फॉर्म भरना पड़ता है. इसके आफ्टर मी फोल्डर कहा जाता है. इस फॉर्म में अपने निकटतम परिजन (नेक्स्ट ऑफ किन) की पूरी जानकारी देनी होती है. जो जवान अविवाहित होते हैं, उनके माता-पिता में से कोई एक उनका निकटतम परिजन हो सकता है. शादी होने के बाद उनकी पत्नी निकटतम परिजन बन जाती है. यदि किसी जवान की मौत हो जाती है या वे शहीद हो जाते हैं, तो उन्हें अलग-अलग तरीके से आर्थिक मदद पहुंचाई जाती है.

सेना में पारिवारिक पेंशन के तीन नियम

सेना में पारिवारिक पेंशन के तीन नियम है. पहला नियम साधारण होता है. इस नियम के अनुसार, जब कोई सैनिक की किसी बीमारी या सामान्य स्थिति में मौत हो जाती है, तो उनके निकटतम परिजन को पारिवारिक पेंशन मिलती है. यह उनकी तनख्वाह का करीब 30 फीसदी होता है. दूसरा नियम विशेष पारिवारिक पेंशन है. इसके अनुसार, जब किसी सैनिक की मौत ड्यूटी के दौरान या ड्यूटी के कारण हो जाती है, तो उनके निकटतम परिजन को पारिवारिक पेंशन मिलेगी. यह उनके वेतन का करीब 60 फीसदी हिस्सा होता है. तीसरा उदार पारिवारिक पेंशन है. इस नियम के अनुसार, जब किसी युद्ध के दौरान कोई जवान शहीद हो जाते हैं, तब उनके निकटतम परिजन को पारिवारिक पेंशन मिलती है. इसमें उनके वेतन का 100 फीसदी यानी पूरा वेतन पेंशन के रूप में दिया जाता है.

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सेना में सैनिकों और अफसरों के लिए नियम अलग

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय सेना में सैनिकों और अफसरों की पेंशन के नियम भी अलग-अलग हैं. सामान्य तरीके से होने वाली मौत के मामले में सैनिक और जूनियर कमीशंड ऑफिसर निकटतम परिजन को सामान्य पारिवारिक पेंशन मिलती है. यही नियम अफसरों पर भी लागू होता है, लेकिन विशेष पारिवारिक पेंशन के मामले जूनियन कमीशंड ऑफिसर और सैनिक की पत्नी और माता-पिता के बीच विशेष पारिवारिक पेंशन बांटी जाती है. इसका मतलब यह कि पेंशन का कुछ हिस्सा पत्नी और कुछ माता-पिता को दिया जाता है. उदार पारिवारिक पेंशन नियम के अनुसार, जूनियन कमीशंड ऑफिसर और जवान की युद्ध में शहादत के बाद पेंशन सिर्फ उनके निकटतम परिजन को ही मिलेगी, जबकि अफसरों के मामले में यह पेंशन पत्नी और माता-पिता के बीच बंट जाती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय सेना ने पेंशन के इन्हीं नियमों में एकरूपता लाने की सिफारिश की है.

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KumarVishwat Sen
KumarVishwat Sen
कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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