Mughal Empire Taxation: फरवरी 2025 के मध्य में रिलीज हुई बंबइया फिल्म छावा से तानाशाह मुगल शासक औरंगजेब एक बार फिर चर्चा में आ गया है. न केवल औरंगजेब बल्कि पूरे का पूरा मुगल सल्तनत की कहानियां डिजिटल फिजां में तैर रही हैं. लोग मुगलकाल (Mughal Empire) की शासन व्यवस्था और उससे जुड़ी तमाम चीजों के बारे में जानने के प्रति लोग उत्सुक हैं. लोग यह भी जानना चाहते हैं कि मुगलकाल में कराधान (Taxation) की क्या व्यवस्था थी? उस समय देश के लोगों से कितने प्रकार के टैक्स लिये जाते थे? उसकी व्यवस्था क्या थी? आज हम मुगलकाल में कराधान की व्यवस्था और टैक्स के प्रकार पर बात करने जा रहे हैं. आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
मुगल साम्राज्य में कराधान व्यवस्था
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की ओर से साल 1963 में प्रकाशित इरफान हबीब की पुस्तक ‘द अग्रेरियन सिस्टम और मुगल इंडिया’ में लिखा गया है कि मुगल साम्राज्य में कराधान (Taxation) की एक विस्तृत और संगठित प्रणाली थी. इसे मुख्य रूप से अकबर के शासनकाल (1556-1605) में टोडरमल द्वारा सुव्यवस्थित किया गया था. यह कर प्रणाली कृषि पर आधारित थी और इसे जब्ती प्रणाली (Zabt System) कहा जाता था.
मुगल साम्राज्य में कर प्रणाली की प्रमुख विशेषताएं
अबूल फजल की आइना-ए-अकबरी, इरफान हबीब की पुस्तक ‘द अग्रेरियन सिस्टम और मुगल इंडिया’ और सतीश चंद्रा की ‘मुगल एडमिनिस्ट्रेशन एंड अग्रेरियन इकोनॉमी’ के अनुसार, मुगल साम्राज्य में टैक्स के तौर पर भूमि कर (Land Revenue) ही मुख्य टैक्स था. जमीन पर खेती से होने वाली आमदनी का एक निश्चित भाग टैक्स के रूप में वसूला जाता था. इस प्रणाली को जब्ती प्रणाली (Zabt System) कहा जाता था, जिसे टोडरमल ने विकसित किया था. फसल की उपज के औसत मूल्य के आधार पर टैक्स निर्धारित किया जाता था और किसान आमतौर पर कुल उपज का 1/3 भाग टैक्स के रूप में चुकाते थे.
मुगल साम्राज्य के दूसरे टैक्स और शुल्क
- इरफान हबीब की पुस्तक इरफान हबीब की पुस्तक ‘द अग्रेरियन सिस्टम और मुगल इंडिया’ के अनुसार, मुगल सामाज्य में दूसरे टैक्स के रूप में खराज (Kharaj) भी एक प्रचलित टैक्स था, जो भूमि पर लगने वाला टैक्स था.
- इस्लाम धर्म के अनुयायियों से वसूला जाने वाला टैक्स जकात (Zakat), गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों से वसूला जाने वाला टैक्स जजिया (Jizya) था. हालांकि, अकबर ने अपने शासनकाल में जजिया कर हटा दिया था, लेकिन साल 1679 में औरंगजेब ने उसे दोबारा लागू कर दिया था.
- शिरीन मूसवी की पुस्तक ‘पीपुल, टैक्सेशन एंड ट्रेड इन मुगल इंडिया’ के अनुसार, आयात-निर्यात और व्यापार पर चुंगी टैक्स भी लगता था.
- इरफान हबीब अपने ‘भारतीय इतिहास पर निबंध’ में लिखते हैं कि शहरों में माल लाने पर अक्टू टैक्स (Octroi Tax) लगाया जाता था.
- शिरीन मसूवी के अनुसार, कृषि कर के अलावा किसानों पर अबवाब (Abwabs)भी लगाया जाता था.
- आइना-ए-अकबरी में अबुल फजल लिखते हैं कि मुगलकाल में जंग में लूटे गए धन का 1/5 भाग शासक को देना जरूरी होता था.
मुगलकाल में टैक्स कलेक्शन सिस्टम
‘द अग्रेरियन सिस्टम और मुगल इंडिया’ में इरफान हबीब लिखते हैं कि मुगलकाल में टैक्स की वसूली के लिए जमीन का सर्वेक्षण कराया जाता था. इस सर्वेक्षण के बाद किसानों से टैक्स के तौर पर नकदी रकम या उपज की वसूली की जाती थी. टैक्स कलेक्शन के लिए मुगल प्रशासन की ओर से जागीरदारों, जमींदारों और मुन्सिफों को जिम्मेदारी दी गई थी. इरफान हबीब ने आगे लिखाा है कि देश के कुछ हिस्सों में टैक्स के भुगतान के लिए किसानों को कई बार साहूकारों से कर्ज भी लेना पड़ जाता था.
अकबर के शासनकाल में टोडरमल का रेवेन्यू सिस्टम
आइना-ए-अकबरी में अबुल फजल लिखते हैं कि अकबर के शासनकाल में उनके वित्त मंत्री टोडरमल ने किसानों से टैक्स वसूली के लिए जब्ती प्रणाली (Zabt System) की शुरुआत की थी. उन्होंने लिखा है कि किसानों से टैक्स की वसूली करने से पहले से जमीन के सर्वेक्षण कराने का काम टोडरमल ने शुरू की थी. इरफान हबीब लिखते हैं कि टोडरमल ने किसानों से टैक्स वसूली के लिए गल्ला बख्शी प्रणाली (Galla Bakshi System) की शुरुआत की थी. यह टैक्स उपज के अनुपात में वसूला जाता था. वहीं, सतीश चंद्रा लिखते हैं कि अकबर के शासन काल में ही टैक्स वसूली की नास्क प्रणाली (Nasaq System) भी थी. इसके तहत टैक्स का निर्धारण अनुमान के आधार पर किया जाता था.
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काफी संगठित थी मुगल शासकों की कर प्रणाली
मुगल साम्राज्य में कराधान की प्रणाली संगठित और विस्तृत थी. कृषि राजस्व मुख्य आमदनी का मुख्य स्रोत था और इसे वैज्ञानिक आधार पर संग्रहित किया जाता था. अकबर के समय में टोडरमल की ओर से इसे और प्रभावी बनाया गया, जिससे साम्राज्य की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई. हालांकि, बाद के बादशाहों के शासनकाल में कर व्यवस्था में कुछ समस्याएं आईं, जिससे किसानों के बीच असंतोष बढ़ा.
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