RC Transfer: भारत में पुराने वाहनों की खरीद-बिक्री आम बात है, लेकिन इस प्रक्रिया में एक अहम पहलू को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. वाहन का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC) ट्रांसफर. हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में पुराने मालिक को ही दोषी माना, जिसने यह बात और भी स्पष्ट कर दी है कि गाड़ी बेच देने भर से जिम्मेदारी खत्म नहीं होती.
क्या है मामला?
Live Law की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक में एक सड़क दुर्घटना में एक महिला की मौत हो गई. दुर्घटना के समय स्कूटी महिला चला रही थी, लेकिन वह स्कूटी अब भी प्रभाकरण नामक व्यक्ति के नाम पर रजिस्टर्ड थी. जब मामला कोर्ट पहुंचा, तो प्रभाकरण ने दावा किया कि उन्होंने स्कूटी बेच दी थी और अब उनका उससे कोई लेना-देना नहीं है.
हालांकि, न्यायमूर्ति जे एम खाजी ने इस दलील को खारिज कर दिया और प्रभाकरण को भारतीय दंड संहिता की धारा 279 (लापरवाही से वाहन चलाना) और 304-A (लापरवाही से मौत) के तहत आरोपी मानते हुए कहा “दुर्घटना की तारीख पर वाहन अब भी याचिकाकर्ता के नाम पर पंजीकृत था, इसलिए वह जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकता.”
इस मामले में यह तथ्य भी सामने आया कि महिला के पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, और इसकी जानकारी वाहन के पुराने मालिक को थी. फिर भी उसने स्कूटी बेच दी, इस शर्त पर कि RC ट्रांसफर कराई जाएगी जो बाद में नहीं हुई.
कानून क्या कहता है?
भारतीय कानून के अनुसार, वाहन का कानूनी मालिक वही होता है, जिसके नाम पर वह वाहन पंजीकृत (रजिस्टर्ड) हो. यानी अगर आपने किसी को गाड़ी बेच दी है, लेकिन RC ट्रांसफर नहीं हुई है, तो किसी भी दुर्घटना या गैर-कानूनी गतिविधि में आप ही जिम्मेदार माने जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट भी इस बात को लेकर पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है कि RC ट्रांसफर हर वाहन लेन-देन का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए. कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निर्णय उन्हीं दिशानिर्देशों की पुष्टि करता है.
RC ट्रांसफर कब और कैसे कराना चाहिए?
RC ट्रांसफर का नियम बहुत स्पष्ट है. एक ही राज्य में वाहन खरीदा गया हो, तो 14 दिनों के भीतर RC ट्रांसफर कराना अनिवार्य है. अगर वाहन दूसरे राज्य से खरीदा गया हो, तो यह अवधि 45 दिनों की होती है. ट्रांसफर कराने के लिए खरीदार और विक्रेता दोनों को नजदीकी RTO ऑफिस में आवश्यक दस्तावेजों के साथ जाना होता है.
इस प्रक्रिया में फॉर्म 29 और फॉर्म 30, पहचान पत्र, इंश्योरेंस, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट और वाहन की ओरिजिनल RC की आवश्यकता होती है.चूंकि यह प्रक्रिया कभी-कभी जटिल या समय लेने वाली हो सकती है, इसलिए आप किसी आरटीओ एजेंट की मदद भी ले सकते हैं.
क्यों जरूरी है सतर्क रहना?
भारत में गाड़ियों की खरीद-बिक्री अक्सर परिचितों, रिश्तेदारों या लोकल डीलरों के जरिए होती है. ऐसे में अक्सर लोग कागजी कार्रवाई को नजरअंदाज कर देते हैं, खासकर RC ट्रांसफर को. यह गलती भविष्य में बड़ा कानूनी संकट बन सकती है. जैसे कि इस केस में हुआ.
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