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जिस खाट पर सोती थी महिला, उसी के नीचे कर दिया बड़ा काम

Success Story: बिहार के मुंगेर जिले की रहने वाली बीना देवी ने सीमित संसाधनों में भी दृढ़ संकल्प और इनोवेशन से मशरूम की खेती में बड़ी सफलता हासिल कीं. खाट के नीचे शुरू हुई उनकी यात्रा आज देश भर में महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. आज भी उन्हें सरकार से आर्थिक मदद की उम्मीद है. अगर सरकार उनका साथ दे, तो आने वाले दिनों में वह न केवल अपने क्षेत्र बल्कि पूरे बिहार के लिए एक बड़ा बदलाव ला सकती हैं.

Success Story: कभी क्या आप यह सोच सकते हैं कि जिस खाट पर आप सोते हैं, उसके नीचे आप किसी फसल को उगा सकते हैं. लेकिन, यह सौ फीसदी सच है. बिहार के मुंगेर जिले के तिलकारी गांव में जन्मी बीना देवी एक ऐसी शख्सीयत हैं, जिन्हें आज ‘मशरूम महिला’ के नाम से जाना जाता है. जब उनकी शादी हुई थी, तब उनके पास न तो खेती के लायक कोई जमीन थी और न ही आमदनी का कोई निश्चित जरिया. परिवार का भरण-पोषण करना कठिन था. उन्होंने मशरूम की खेती की एक ऐसी तरकीब निकाली कि आज वह ‘मशरूम महिला’ के रूप में पहचानी जाती हैं. आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि जिस बीना देवी की हम बात कर रहे हैं, वह मशरूम की खेती से हर साल करीब 5 से 10 लाख रुपये तक की कमाई कर रही हैं. आइए, उनकी सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं.

बीना देवी ने खाट के नीचे की मशरूम की खेती

बीना देवी का जन्म वर्ष 1977 में मुंगेर जिले के टेटियाबंबर प्रखंड के तिलकारी गांव में हुआ. उनकी शादी एक गरीब परिवार में हुई, जहां उनके पास न तो खेती के लिए जमीन थी और न ही कोई बड़ा संसाधन. चार बच्चों की मां बीना ने आर्थिक तंगी से जूझते हुए अपने परिवार को संभालने का जिम्मा उठाया. साल 2013 में जब उनके पास मशरूम की खेती के लिए जगह नहीं थी, तब उन्होंने अपने घर में जिस खाट पर सोती थीं, उसके नीचे मशरूम उगाना शुरू कर दिया. केवल एक किलो मशरूम के बीज से शुरुआत करते हुए उन्होंने इस अनोखे तरीके से इसकी खेती की नींव डाली.

बीना देवी का संघर्ष और इनोवेशन

बीना देवी की राह आसान नहीं थी. मशरूम की खेती के लिए नमी, तापमान और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. उनके पास न तो कोई प्रशिक्षण था और न ही आधुनिक सुविधाएं मौजूद थीं. फिर भी, उन्होंने इसकी खेती के लिए पारंपरिक संसाधन भूसा और जैविक खाद का इस्तेमाल किया और धीरे-धीरे इसकी तकनीक सीखीं. शुरुआत में उत्पादन कम था, लेकिन उनकी लगन ने इसे बढ़ाने में मदद की. अपने जेवर बेचकर और छोटे-मोटे कर्ज लेकर उन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया. भागलपुर के सबौर कृषि विश्वविद्यालय से प्रेरणा और कुछ बुनियादी जानकारी हासिल करने के बाद उनकी समझ और मजबूत हुई.

बीना देवी की सफलता और आमदनी

बीना देवी की मेहनत रंग लाई और उनकी छोटी सी शुरुआत एक बड़े उद्यम में बदल गई. आज वह न केवल अपने घर में बल्कि बड़े पैमाने पर मशरूम की खेती करती हैं. मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, वह हर सीजन में सैकड़ों किलो मशरूम का उत्पादन करती हैं. मशरूम की बाजार में कीमत 150-300 रुपये प्रति किलो तक होती है, जो मांग और गुणवत्ता पर निर्भर करती है. एक अनुमान के मुताबिक, बीना देवी की सालाना आमदनी अब लाखों रुपये में है. शुरुआती दिनों में जहां वह कुछ हजार रुपये कमाती थीं, वहीं अब उनका व्यवसाय 5-10 लाख रुपये सालाना तक पहुंच गया है. यह आमदनी न केवल उनके परिवार को आर्थिक स्थिरता देती है, बल्कि उनके बच्चों की शिक्षा और बेहतर जीवनशैली में भी योगदान देती है.

बीना देवी को मिला नारी शक्ति पुरस्कार

बीना देवी ने सिर्फ अपनी जिंदगी नहीं बदली, बल्कि मुंगेर जिले के 5 प्रखंडों और 105 से अधिक गांवों में 25,000 से ज्यादा महिलाओं को मशरूम की खेती का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया. वह जैविक खेती, वर्मीकम्पोस्ट और कीटनाशक बनाने की तकनीक भी सिखाती हैं. उनकी इस पहल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. 8 मार्च 2020 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें “नारी शक्ति पुरस्कार” से सम्मानित किया. इसके अलावा, मुंगेर के एसडीएम, डीडी किसान (पटना और दिल्ली), और रिलायंस ने भी उन्हें सम्मानित किया.

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चुनौतियां और भविष्य की योजना

हालांकि, बीना की सफलता प्रेरणादायक है, लेकिन चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं. 2022 में एक रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि वह मशरूम की खेती को और बड़े पैमाने पर ले जाना चाहती हैं और 200 लोगों को रोजगार देना चाहती हैं, लेकिन आर्थिक तंगी इसका रोड़ा बनी हुई है. सरकार से मदद की उनकी गुहार अभी पूरी तरह से सफल नहीं हुई है. फिर भी, वह हार नहीं मानतीं और जैविक खेती के क्षेत्र में नए प्रयोग कर रही हैं.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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