Success Story: जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाकों तक सिमटी हुई है. इसी अंतर को कम करने की सोच ने इंजीनियर रमेश गेरा को पारंपरिक राह से हटकर एक नई दिशा में सोचने को मजबूर किया. रिटायरमेंट के बाद जहां अधिकतर लोग आराम और सुकून को प्राथमिकता देते हैं, वहीं रमेश ने अपनी दूसरी पारी की शुरुआत खेती जैसे अनजान लेकिन संभावनाओं से भरपूर क्षेत्र में की.
वर्ष 2017 में, उन्होंने अपनी जमा पूंजी में से चार लाख रुपये ग्रीनहाउस निर्माण में लगाए और नोएडा स्थित अपने घर के एक कोने को आधुनिक केसर फार्म में बदल दिया. इसके अतिरिक्त, दो लाख रुपये उन्होंने कश्मीर से उच्च गुणवत्ता वाले केसर के कंद (Corms) मंगवाने में खर्च किए. यह शुरुआत दिखने में भले ही छोटी लगे, लेकिन इसके पीछे एक बड़ी सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण छिपा था.
रमेश ने सिर्फ खेती शुरू नहीं की, बल्कि उन्होंने पूरी प्रक्रिया को तकनीकी और शोध आधारित दृष्टिकोण से अपनाया. दक्षिण कोरिया में 2002 में काम के दौरान उन्होंने हाइड्रोपोनिक्स, माइक्रोग्रीन्स और इनडोर फार्मिंग जैसी तकनीकों को करीब से देखा था, और वहीं से उन्हें यह समझ आया कि खेती अब सिर्फ मिट्टी तक सीमित नहीं रही. उन्होंने इन तकनीकों का प्रयोग केसर की खेती में किया, जो परंपरागत रूप से मिट्टी और जलवायु पर निर्भर मानी जाती थी.
उनका यह फार्म पूरी तरह नियंत्रित वातावरण (controlled environment) में संचालित होता है, जहाँ तापमान, नमी और प्रकाश को सटीक रूप से नियंत्रित किया जाता है ताकि केसर के फूल सही समय पर खिल सकें. उनका मानना है कि यदि सही तकनीक और दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो केसर जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों की खेती पहाड़ी इलाकों से बाहर भी सफलतापूर्वक की जा सकती है.
जहां प्रारंभिक लागत कुछ लाखों में थी, वहीं संचालन लागत आश्चर्यजनक रूप से कम रही. प्रति माह बिजली पर लगभग ₹4,500 का खर्च और वार्षिक मजदूरी में मात्र ₹8,000. लेकिन मुनाफे की बात करें तो परिणाम बेहद आकर्षक हैं. थोक बाजार में केसर ₹2.5 लाख प्रति किलोग्राम तक बिकता है, जबकि खुदरा बाजार में इसकी कीमत ₹3.5 लाख प्रति किलोग्राम तक पहुँचती है. यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जाए तो एक किलो केसर के लिए ₹6 लाख तक की कीमत मिल सकती है.
इतना ही नहीं, रमेश ने अब अपनी इस सफलता को दूसरों के साथ साझा करना भी शुरू कर दिया है. वे किसानों और उद्यमियों को प्रशिक्षण देने लगे हैं कि कैसे वे भी नियंत्रित वातावरण में केसर की खेती कर सकते हैं. वे कार्यशालाओं, ऑनलाइन कोर्स और व्यक्तिगत परामर्श के माध्यम से ज्ञान साझा करते हैं, जिससे देशभर के युवा और नवाचार-प्रेमी किसान प्रेरित हो रहे हैं.
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