Success Story: काशी की सावित्री देवी डालमिया (साबो) महिला सशक्तिकरण और नारी शिक्षा के प्रति हमेशा प्रतिबद्ध रही हैं. हालांकि, काशी शुरू से ही एक ऐसी जगह है, जहां इतिहास आध्यात्मिकता से मिलता है और इसे कई गौरवशाली लोगों ने आकार दिया है. सावित्री देवी डालमिया (साबो) एक ऐसी महिला हैं, जो अपनी मृदुल स्वभाव और दूरदर्शिता के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने समाज को अविस्मरणीय स्तर पर प्रभावित किया है. उनका जन्म दिसंबर 1934 में काशी के कचौरी गली स्थित पन्नालाल जी कनोडिया के घर हुआ. उन्होंने वास्तव में दिखाया कि सहज और समर्पित होने का क्या मतलब है.
बचपन से ही वस्त्र शिल्प से रहा लगाव
छोटी उम्र से ही सावित्री देवी (साबो) ने बनारस की परंपराओं को अपनाया. उन्होंने बनारसी कपड़े सिलने की कला सीखी और जटिल सुई के काम में कुशल बन गईं. लेकिन, यह केवल उनके शिल्प के बारे में नहीं था, उन्हें पढ़ने में सुकून मिलता था. पुस्तकों ने उनके लिए नई दुनिया खोली , जिससे उन्हें विचारों और सपनों का पता लगाने का मौका मिला. पढ़ना उनके लिए प्रेरणा का स्रोत था. सावित्री जी का गंगा से गहरा नाता था. इसके पानी में तैरना केवल एक मजेदार गतिविधि नहीं थी, यह आध्यात्मिक लगता था और शहर के साथ उनके संबंधों को गहरा करता था. बनारस और इसका कालातीत आकर्षण उनके व्यक्तित्व का एक बड़ा हिस्सा बन गया.
महिला सशक्तिकरण में सक्रिय योगदान
साबो यानि सावित्री देवी डालमिया (साबो) शिक्षा प्रसार और महिला सशक्तिकरण की एक सशक्त पक्षधर ही नहीं अपितु सक्रिय योगदानकर्ता भी थीं. उन्होंने अपने जीवन को समाज में शिक्षा के प्रसार और महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था. उनका यह दृढ़ विश्वास था कि शिक्षा ही वह माध्यम है जो समाज को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकता है. उनके इसी सपने को साकार करने के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यालय में “सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन” की स्थापना की गई, जो आज भी हजारों छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणास्रोत बना हुआ है.
महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा केा बनाया हथियार
सावित्री देवी डालमिया (साबो) का मानना था कि महिलाओं की शिक्षा से पूरे समाज का विकास संभव होता है. उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा को एक प्रभावी साधन के रूप में अपनाया और इसे व्यापक स्तर पर बढ़ावा दिया. उनके योगदान से न केवल महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर बढ़े बल्कि समाज में महिलाओं के लिए नए अवसरों के द्वार भी खुले.
सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन: ज्ञान और शोध का केंद्र
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में स्थित “सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन” शिक्षा और नवाचार का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. यह भवन विज्ञान संकाय के विभिन्न विभागों, जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित और भूविज्ञान के लिए एक अभिन्न अंग है. इसमें अत्याधुनिक प्रयोगशालाएं और अध्ययन कक्ष हैं, जहां छात्र न केवल अपनी शिक्षा पूरी करते हैं, बल्कि विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज और अनुसंधान कार्यों में भी संलग्न रहते हैं.
विज्ञान भवन वास्तुकला का शानदार उदाहरण
सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन आधुनिक वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है. इसकी भव्यता केवल इसकी संरचना में ही नहीं, बल्कि इसके उद्देश्यों में भी निहित है. यहां मौजूद प्रयोगशालाएं, सेमिनार हॉल और शोध केंद्र वैज्ञानिक अन्वेषण और नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं. यह भवन छात्रों को न केवल विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि शोध कार्यों को भी बढ़ावा देता है.
नारी शिक्षा का प्रकाशस्तंभ
सावित्री देवी डालमिया (साबो) का जीवन महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण के प्रति समर्पित था. उनके सम्मान में स्थापित यह भवन उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने का कार्य करता है. सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन न केवल छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि एक ऐसा मंच भी उपलब्ध कराता है, जहां युवा वैज्ञानिक अपने ज्ञान और शोध कार्यों के माध्यम से दुनिया में परिवर्तन ला सकते हैं.
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एक अमर धरोहर
सावित्री देवी डालमिया विज्ञान भवन केवल एक भवन नहीं, बल्कि शिक्षा, शोध और नवाचार का जीवंत प्रतीक है. यह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा, ठीक उसी तरह जैसे सावित्री देवी का जीवन समाज को प्रेरणा देता आया है. उनके योगदान को यह भवन सदैव जीवंत रखेगा, और उनके सपनों को साकार करता रहेगा. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इस ऐतिहासिक विज्ञान भवन की हर ईंट में एक कहानी छिपी है एक ऐसी कहानी, जो शिक्षा, समर्पण, और सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है.
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