Supreme Court: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक पति को अपनी पत्नी के शेयर बाजार में हुए घाटे के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, बशर्ते उनके बीच मौखिक समझौता हो और उनके वित्तीय लेन-देन की प्रकृति ऐसी हो कि वह एक साथ इस जिम्मेदारी को साझा करें. यह फैसला उन मामलों में लागू होगा जहां पति और पत्नी ने आपस में मिलकर निवेश करने और किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी साझा करने की बात की हो. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश शेयर बाजार से जुड़ी कानूनी बाधाओं और अनुबंधों पर एक नई रोशनी डालता है.
मौखिक समझौता और वित्तीय जिम्मेदारी का अहम पहलू
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, मौखिक समझौते और पति-पत्नी के बीच वित्तीय लेन-देन की प्रकृति को देखते हुए पति को भी शेयर बाजार में हुई हानि के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इस फैसले में कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों पक्षों के बीच हुई मौखिक सहमति, जो उनके ट्रेडिंग अकाउंट्स के संचालन और घाटे की जिम्मेदारी से संबंधित थी, वैध मानी जाएगी.
Husband can be held liable for wife’s stock market debt based on oral contract: Supreme Court
— Bar and Bench (@barandbench) February 11, 2025
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न्यायिक प्रक्रिया और उच्च न्यायालय के फैसले की उलट-फेर
इस मामले में पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने पति को इस मामले से अलग करते हुए कहा था कि उसे मौखिक समझौते की वजह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि ब्रोकर का दावा सही था और पति को भी घाटे का जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. यह फैसला खासतौर पर उन मामलों में महत्वपूर्ण है, जहां व्यक्तिगत वित्तीय निर्णयों और साझेदारियों के कारण कानूनी विवाद उत्पन्न होते हैं.
न्याय का नया दृष्टिकोण और शेयर बाजार की नियामक शक्तियां
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश भारतीय शेयर बाजार के नियामक SEBI के दिशा-निर्देशों और बीएसई के नियमों को चुनौती नहीं देता, बल्कि यह यह स्पष्ट करता है कि यदि पति-पत्नी के बीच एक मौखिक समझौता होता है तो वह कानूनी रूप से मान्य हो सकता है. इसके साथ ही, इस फैसले ने यह भी सिद्ध किया कि लिखित अनुमति के बिना भी दोनों पार्टियों के बीच साझा वित्तीय जिम्मेदारी को स्वीकार किया जा सकता है.
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