Kolhapuri Chappal: कोल्हापुरी चप्पल का देश में बड़ा नाम है. बॉलीवुड के शहंशाह और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपनी एक फिल्म सुहाग में इस चप्पल पर बने एक डायलॉग का इस्तेमाल भी किया है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि जिस मजबूती के लिए कोल्हापुरी चप्पल विख्यात है और उसका विदेश व्यापार भी होता है, उसे कौन कंपनी बनाती है? हकीकत जानेंगे तो आप भी चौंक जाएंगे. आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.
कोई कंपनी नहीं बनाती कोल्हापुरी चप्पल
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कोल्हापुरी चप्पल कोई कंपनी नहीं बनाती, बल्कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कर्नाटक अठानी, निपानी, चिकोड़ी, रायबाग, बेलगावी, बागलकोट और धारवाड़ आदि के कारीगर इसे सदियों से बनाते आ रहे हैं. यह बात दीगर है कि कारीगरों द्वारा इसे बनाए जाने के बाद कुछ कंपनियां इसे खरीदकर बेचती जरूर हैं. ये चप्पलें ज्यादातर छोटे पैमाने के असंगठित उद्योगों और कुटीर उद्योगों द्वारा बनाई जाती हैं. हालांकि, कुछ निर्माता और कंपनियां हैं, जो कोल्हापुरी चप्पल को ऑनलाइन और ऑफलाइन बेचती हैं. इनमें दिव्यम लेदर क्राफ्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (कोराकारी), ट्रूयार्न कम्फर्टकार्ट और रॉयल ख्वाब शामिल हैं. इनमें दिव्यम लेदर क्राफ्ट्स प्राइवेट लिमिटेड हस्तनिर्मित कोल्हापुरी चप्पल बनाकर भारत में बिक्री के साथ विदेशों में भी निर्यात करती है.
कोल्हापुर में चप्पल की 4000 दुकानें
खबर यह भी है कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में कोल्हापुरी चप्पल की करीब 4000 दुकानें हैं. ये दुकानें दशकों से कोल्हापुरी चप्पलों की बिक्री कर रही हैं. इनमें से कई दुकानदार पीढ़ियों से इस कारोबार में लगे हैं. इनमें आदर्श चर्म उद्योग केंद्र प्रमुख रूप से शामिल है, जहा कारीगर अपने हाथ से चप्पल बनाते हैं. इसके अलावा, कोल्हापुरी चप्पल कोल्हापुर, सांगली, सतारा, सोलापुर और आसपास के क्षेत्रों में छोटे-छोटे कारीगर समूहों द्वारा बनाई जाती हैं. इनमें से कई कारीगर साहू और चोपड़े जैसे परिवारों से हैं, जो ऐतिहासिक चर्मशिल्पकार समुदाय का हिस्सा हैं.
भारत में कब से बिक रही कोल्हापुरी चप्पल
भारत में कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास काफी पुराना है. हिंदी की वेबसाइट नवभारत टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास 12वीं से 13वीं शताब्दी का है. इन्हें पहली बार कोल्हापुर में राजा बिज्जल और उनके मंत्री बसवन्ना ने मोची समुदाय को प्रोत्साहित करके बनवाना शुरू किया था. इन चप्पलों को पहले “कापशी”, “पायटान”, “कच्छकडी”, “बक्कलनाली”, और “पुकरी” जैसे नामों से जाना जाता था, जो इन्हें बनाने वाले गांवों के नाम पर आधारित थे.
कोल्हापुरी चप्पलों का वाणिज्यिक विस्तार
कोल्हापुरी चप्पलों का वाणिज्यिक विस्तार 20वीं सदी में हुआ. विशेष रूप से छत्रपति शाहू महाराज (1874-1922) के शासनकाल में इन चप्पलों का व्यावसायिक उत्पादन और बिक्री बढ़ी. उनके शासन में 29 टैनिंग सेंटर खोले गए, जिसने इस उद्योग को बढ़ावा दिया. साल 1920-30 के दशक में कोल्हापुरी चप्पलें मुंबई, पुणे जैसे शहरों में बिकने लगीं और ब्रिटिश शासनकाल में हस्तशिल्प मेलों और प्रदर्शनियों में प्रदर्शित होने लगीं. 1960 के दशक तक कोल्हापुरी चप्पलें फैशन का हिस्सा बन गईं और व्यापक रूप से लोकप्रिय हो गईं.
2019 में कोल्हापुरी चप्पलों को मिला जीआई टैग
1960 के दशक तक वाणिज्यिक विस्तार के बाद कोल्हापुरी चप्पलों की मांग काफी बढ़ गई. कोल्हापुरी चप्पलों को उनकी अनूठी शिल्पकला और सांस्कृतिक महत्व के लिए 2019 में भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग मिला. इसने इसकी प्रामाणिकता और कोल्हापुर से इसके संबंध को और मजबूत किया.
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कोल्हापुरी चप्पलों की कीमत
आज तारीख में कोल्हापुरी चप्पलें भारत में 500-1000 रुपये की कीमत में आसानी से उपलब्ध हैं. हाल ही में इटली के लग्जरी ब्रांड प्राडा ने इनके डिजाइन को अपने 2026 स्प्रिंग/समर कलेक्शन में शामिल किया, जिसकी कीमत 1-1.2 लाख रुपये रखी गई. हालांकि, कोल्हापुरी चप्पलों के व्यापार में प्राडा के आने के बाद राजनीतिक विवाद भी शुरू हो गया है.
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