anshumaan pushkarफिल्म ‘मालिक’इन दिनों सिनेमाघरों में प्रदर्शन कर रही है. ‘जामताड़ा’, ‘काठमांडू कनेक्शन’ और ‘ग्रहण’ जैसी सीरीज से इंडस्ट्री का परिचित चेहरा बन चुके अभिनेता अंशुमान पुष्कर भी इस फिल्म में अहम किरदार निभा रहे हैं. आयुष्मान का जुड़ाव बिहार के मोकामा से है. उनकी मानें, तो मोकामा की परवरिश ने इस फिल्म के किरदार से जुड़ने में उनकी मदद की है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
फिल्म ‘मालिक’ थिएटर में रिलीज हुई है. इस अनुभव को क्या कहेंगे?
मैं मोकामा से आता हूं. आप जब एक्टर बनने की सोचते हैं, तो आपके जेहन में बड़ा पर्दा ही आता है. इससे पहले मैंने कई फिल्में की है, लेकिन फिल्म ‘मालिक’ ने मुझे ऐसा मौका दिया कि लगभग हर दूसरे फ्रेम में मैं ही दिखायी देता हूं. यह एक ख्वाहिश थी और जब वह पूरी होती है, तो एक अलग ही खुशी मिलती है. सबसे खास बात यह है कि मोकामा के जिस थिएटर में मैं बचपन में फिल्म देखने जाया करता था, वहां मेरी फिल्म‘मालिक’लगी है. मेरे दोस्त और करीबी लोग मुझे इसके बारे में बता रहे हैं. मेरा मन करता है कि खुद जाकर थिएटर में अपनी फिल्म देखूं, लेकिन फिलहाल व्यस्तता के चलते वहां नहीं जा पा रहा हूं.
किस तरह से फिल्म से जुड़ना हुआ ?
फिल्म के निर्देशक पुलकित सर ने मुझे कॉल करके बताया था कि तुम्हारे लिए एक रोल है. उन्होंने शुरुआत में मुझे बताया नहीं था कि मेरा बडोना वाला किरदार है. उन्होंने मुझे स्क्रिप्ट पढ़ने को कहा और बोला कि मैं राइटिंग में फेरबदल करता रहता हूं, तो जानना चाहता हूं कि सही सुर है या नहीं. मैंने एक सीन पढ़कर सुनाया और उन्हें यह पसंद आया. उन्होंने बोला कि लिखते हुए बडोना के किरदार के लिए मैं ही जेहन में था. वैसे स्टोरी पढ़ते हुए मुझे समझ आ गया था कि मेरा किरदार बडोना वाला ही है.
इस किरदार के लिए क्या कुछ सीखना पड़ा ?
मैं बिहार के एक छोटे-से गांव से आता हूं. बचपन छतों पर कूदते-फांदते और गली-मोहल्ले की हाथों वाली फाइटिंग करते हुए बीता है. मेरे बड़े भाई अक्सर कहते हैं कि सीखी गयी कोई भी चीज जिंदगी में बेकार नहीं जाती. वही जिंदगी है और वही सिनेमा भी, फर्क बस इतना है कि फिल्मों में उसकी इंटेंसिटी बढ़ा दी जाती है. जब परदे पर किसी एक्शन सीन में आपको थोड़े और क्लोज शॉट में, थोड़े और असरदार तरीके से घूंसा मारना होता है, तब मोकामा की गलियों में सीखा हर एक एक्सप्रेशन और हर एक मूव इस ‘लार्जर दैन लाइफ’ फिल्म का हिस्सा बन जाता है. कुल मिलाकर जो कुछ भी जिया और सीखा, वही आज कैमरे के सामने जिंदा हो उठा है.
राजकुमार राव के साथ अनुभव कैसा था ?
उनका जितना अनुभव है, उतना लोग अक्सर ओढ़ लेते हैं और उसे अपना भारीपन बना लेते हैं, लेकिन राजकुमार ऐसे नहीं हैं. आमतौर पर अभिनेता सीन खत्म करने के बाद अपनी चेयर में बैठ जाते हैं. कभी मोबाइल में व्यस्त हो जाते हैं या किसी किताब में डूब जाते हैं. मगर राजकुमार सेट पर सबसे अलग हैं. जब पूरा क्रू साथ होता था, वह वाकई सबके साथ समय बिताते थे. उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. वह सिर्फ अपने सीन तक सीमित नहीं रहते हैं, बल्कि दूसरों के सीन को भी बेहतर बनाने में मदद करते हैं. अच्छी फिल्मों के बारे में वह घंटों बात कर सकते हैं.
क्या अब प्राथमिकता ओटीटी के बजाय फिल्में होंगी?
फिल्म ख्वाहिश थी और ख्वाहिश रहेगी, लेकिन ओटीटी ने मुझे पहचान दी है. मैं हमेशा उसका शुक्रगुजार रहूंगा और उससे जुड़ा रहना चाहूंगा. फिल्मों में 100 में से एक ऐसी हो सकती है, जो वर्ल्ड लेवल तक पहुंचे, लेकिन ओटीटी में हमेशा यह पॉसिबिलिटी रहती है. मुझे जामताड़ा करने के बाद ही दुबई, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया से मैसेज आने लगे थे. फिल्में भारत के कोने -कोने में आपकी पॉपुलैरिटी बढ़ाती हैं.
बिहार अभी भी कितना जुड़ाव महसूस करते हैं?
अभी भी वैसा ही जुड़ाव महसूस करता हूं. कुछ महीने पहले अपने भांजे की शादी में मोकामा गया था, तो वही मैदान में क्रिकेट खेलने गया था जहां बचपन में खेलता था. उनके लिए अभिनेता अंशुमान नहीं, बल्कि घरवाला पुष्कर रहूं तो ज्यादा बेहतर रहेगा.
आने वाले प्रोजेक्ट के बारे में बताएं?
यशराज का नेटफ्लिक्स पर एक प्रोजेक्ट है. उसकी घोषणा हो चुकी है. टिस्का चोपड़ा निर्देशित दिब्येंदु, राधिका आप्टे के साथ फिल्म है. इसके अलावा एक छोटे शहर की लव स्टोरी वाली वेब सीरीज है, जो जिओ पर आयेगी.