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Gajraj rao :छोटे शहर के लेखक एसी कमरों में बैठकर नहीं अनुभव से लिख रहे हैं कहानियां

गजराज राव ने इस इंटरव्यू में बताया कि गोविंदा की फिल्म 'राजा बाबू' में जो गांव दिखाया गया था, उसे देखकर हर किसी को लगा था कि असली गांव ऐसा ही होता है, लेकिन छोटे शहर के लेखकों ने असल गांव से दर्शकों को रूबरू करवाया.

gajraj rao:अमेजॉन प्राइम वीडियो की वेब सीरीज दुपहिया इनदिनों सभी की पसंद बनी हुई है. सीरीज में बनवारी झा की भूमिका में नजर आ रहे गजराज राव बताते हैं कि एक एक्टर के तौर पर मेरी कोशिश हमेशा कुछ अलग करने की होती है और मैं यह भी देखता हूं कि मेरे आसपास के किरदार भी काफी अलग हो और दुपहिया इसका परफेक्ट उदाहरण हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

दुपहिया से किस तरह से जुड़ाव हुआ ?

मुझे सोनम नायर द्वारा निर्देशित ‘मसाबा मसाबा’ बहुत पसंद आयी थी. उसके दूसरे सीजन में मेरा कैमियो था. मैंने सोनम की एक शॉर्ट फिल्म भी देखी थी. मुझे उनके काम करने का तरीका पसंद आया था. मैंने सोनम से कहा कि अगर कोई दिलचस्प प्रोजेक्ट आए तो मुझे बताइएगा. इस सीरीज की निर्माता सलोना मेरी परिचित हैं. एक दिन सलोना ने मुझे फोन किया और इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया.मैंने इसकी स्क्रिप्ट पढ़ी, तब ओटीटी पर डार्क कंटेंट अधिक प्रचलित था. ऐसा लगा जैसे दुपहिया ताजी हवा का झोंका लेकर आई हो. मुझे स्क्रिप्ट पढ़ने में मजा आया.सिर्फ मेरा किरदार ही नहीं, इस सीरीज का हर किरदार बेहद खूबसूरत है.मुझे इसमें श्री लाल शुक्ल जी की राग दरबारी जैसी मिठास मिली. सीरीज की शूटिंग करते हुए लग रहा था कि जैसे सूरज बड़जात्या और प्रियदर्शन मिलकर इस सीरीज को बना रहे हैं.

सीरीज में सीनियर अदाकारा रेणुका शाहणे के साथ काम करने का अनुभव कैसा था ?

वह कमाल की अभिनेत्री है. मैं खुद को लकी मानता हूं कि कैरियर में इतनी अच्छी -अच्छी एक्ट्रेसेज के साथ काम करने का मौका मिला है. वैसे इस सीरीज की शूटिंग मध्यप्रदेश के ओरछा में हुई है और सभी को पता है कि आशुतोष राणा जी का वहां का बहुत सम्मान है.अक्सर शूटिंग के वक्त गांव वाले आकर पूछते थे कि भाभीजी कहां है.शुरुआत में मुझे समझ नहीं आता था कि किस भाभीजी की बात कर रहे हैं. कुछ दिनों बाद मुझे समझ आया.

क्या एक अभिनेता के रूप में कॉमेडी प्रोजेक्ट में अभिनय करते समय खुद से जोड़ने का भी मौका मिलता है?

हां , गंभीर फिल्मों या सीरीज अपना कुछ भी जोड़ने का अधिक अवसर नहीं होता है. मुझे लगता है कि कॉमेडी एक थाली की तरह है, आप इसमें कम या ज्यादा जोड़ सकते हैं. इसलिए कॉमेडी में थोड़ी आजादी जरूर है, लेकिन इसके लिए पटकथा अच्छी होनी चाहिए और दुपहिया की खास बात इसकी पटकथा ही थी. पहले कहानियाँ मुंबई या दिल्ली जैसे शहरों में एसी कमरों में लिखी जाती थीं. गोविंदा की फिल्म ‘राजा बाबू’ में जो गांव दिखाया गया था, उसे देखकर हर किसी को लगा कि असली गांव ऐसा ही है.अब छोटे शहरों से भी लेखक उभर रहे हैं, इसलिए वे अपना अनुभव लेकर आ रहे हैं. इस शृंखला में हमारे लेखक भी छोटे शहरों से हैं. उन्होंने मुंबई के किसी फ्लैट में बैठकर कहानियाँ नहीं लिखीं. वह अपना अनुभव अपने साथ लेकर आये और इसलिए वे दुपहिया जैसी कहानियाँ लिखने में सफल रहे हैं .

क्या आपको लगता है कि डार्क कंटेंट, डार्क कॉमेडी के बीच ‘पंचायत’, दुपहिया जैसी सीरीज कम बन रही हैं?

देखिए, जैसे पांच उंगलियां बराबर नहीं होतीं, वैसे ही हर तरह के कंटेंट की जरूरत होती है,इसलिए क्राइम थ्रिलर भी जरूरी है. लेकिन परिवार के साथ देखने के लिए कोई फिल्म या सीरीज बहुत जरूरी है. मैं खुद ऐसे प्रोजेक्ट्स को पसंद करता हूं.’ ऋषि दा (मुखोपाध्याय), बासु दा (चट्टोपाध्याय) या साई परांजपेई की फिल्में 30-40 साल बाद भी मुझे प्रभावित करती हैं.मुझे आज भी उनकी फिल्में देखने में मजा आता है. पुला देशपांडे, वीपी काले की रचनाएं आज भी हमें आनंदित करती हैं क्योंकि उनका लेखन हास्य से भरपूर है.

आप इस सीरीज के परिचित चेहरों में से हैं क्या इससे प्रेशर बढ़ जाता है ?

हम सब एक विशाल कारखाने का एक छोटा सा हिस्सा हैं,इसलिए कोई भी कलाकार अपने ऊपर ज्यादा जिम्मेदारी नहीं ले सकता है ,लेकिन जब अलग-अलग उम्र के लोग हवाई अड्डे, रेस्तरां या कहीं और मेरे प्रदर्शन की सराहना करते हैं, तो खुशी भी होती है. कुछ दिन पहले मैं एक फिल्म की शूटिंग के लिए लंदन गया था. वहां पर मेरी मुलाकात कुछ भारतीयों से हुई. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर उन्होंने किसी फिल्म प्रोजेक्ट में मेरा नाम देखा तो उस प्रोजेक्ट को देखने में उनकी दिलचस्पी बढ़ जाती है. यह वाकई बहुत ख़ुशी की बात है. मैं सिर्फ इस खुशी को महसूस नहीं करता हूं बल्कि अपने अभिनय से दूसरों को खुश करने की भी कोशिश करता हूं. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि 2018 में बधाई हो से मेरी जिंदगी इतनी बदल जाएग. मुझे लगता है कि मैं उन अभिनेताओं की ओर से अभिनय कर रहा हूं,जो मुझसे अधिक प्रतिभाशाली हैं।

सीरीज में दुपहिया के चोरी होने से आप परेशान हैं, निजी जिंदगी में क्या किसी खास चीज की हुई चोरी ने परेशान किया है ?

एक बार मॉल में गया था और मेरा मोबाइल चोरी हो गया था. किसी ने अचानक से आकर मेरे पॉकेट से मोबाइल निकाल लिया था. सम्मोहित कर लिया था. ऐसा लगा था. मोबाइल का कोई बैकअप नहीं था. इसलिए मैंने कई अच्छी तस्वीरें खो दीं. इसके अलावा 15 साल पहले मैंने अपना कैमरा स्विट्जरलैंड से पेरिस जाने वाली एक इंटरसिटी ट्रेन में छोड़ दिया था.
कई प्रयासों के बावजूद मैं कैमरा फिर से पा नहीं पाया था. मैंने अपने परिवार के साथ कई खूबसूरत यादें कैमरे में कैद कीं थी, तो कैमरा खोने का अफसोस आज भी सताता है.

सीरीज में आप अपराध मुक्त धड़कपुर से हैं, निजी जिंदगी किस अपराध से मुक्ति चाहते हैं?

मुझे लगता है कि किसी शहर का विकास इस बात से मापा जाता है कि वहां लड़कियां कितनी सुरक्षित हैं. हम सभी निश्चित रूप से चाहते हैं कि लड़कियां हर समय सुरक्षित रहें.लड़कियों की सुरक्षा पर सबसे पहले विचार किया जाना चाहिए. इसके साथ ही मेरा मानना है कि बेसहारा और असहाय जानवरों पर अत्याचार बंद होना चाहिए.हमारे देश में जानवरों के खिलाफ कई अपराध होते हैं. कुत्तों और बिल्लियों को भोजन में जहर मिलाकर मार दिया जाता है. मैं चाहता हूं कि ये जघन्य अपराध रुकें.

आपने शार्ट फिल्में निर्देशित की हैं क्या फीचर फिल्म निर्देशित करने की कोई योजना है ?

एक कहानी पर काम कर रहा हूं. उम्मीद है एक-दो साल में कुछ हो जाएगा.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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