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Smrity Sinha ने बताया कि उस वक्त खेसारी लाल यादव का बर्ताव बहुत ही बुरा था. जानिये क्या है पूरा वाकया  

smrity sinha ने अपनी आगामी फिल्म चटोरी बहू के अलावा भोजपुरी इंडस्ट्री में अब तक के अनुभवों को भी इस बातचीत में साझा किया है.

smrity sinha भोजपुरी फिल्मों का बहुत ही पॉपुलर चेहरा हैं.इनदिनों अपनी भोजपुरी फिल्म चटोरी बहू को लेकर सुर्खियों  में हैं.उनकी इस फिल्म का प्रीमियर जल्द ही टेलीविज़न पर होने वाला  है.टेलीविजन पर वह वुमन सेंट्रिक फिल्मों के दौर को एन्जॉय कर रही हैं ,लेकिन यह कहना भी नहीं भूलती कि थिएटर किसी भी फिल्म के लिए बहुत बड़ा कैनवास होता है, उम्मीद है कि थिएटर वाला दौर फिर से लौटेगा। उनकी इस फिल्म ,भोजपुरी इंडस्ट्री के अनुभवों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत के प्रमुख अंश 


आपकी अब तक की फिल्मों से चटोरी बहू क्या अलग करने का मौका दे रही है?

अलग तो यह है कि इसमें मुझे खाना बहुत सारा बनाने को मिला है.(हंसते हुए )नाम भले ही इसका चटोरी है, लेकिन खाना खाने से ज्यादा बनाती है. जिस वजह से इस फिल्म की शूटिंग आसान नहीं रही.अब चूंकि  खाना बना रही है तो आपको चूल्हे के पास यानी आग के  पास बैठना ही पड़ेगा. जिस समय इस फिल्म की शूटिंग  कर रहे थे. उस वक्त बहुत गर्मी थी. ऐसे में चूल्हे के सामने बैठकर खाना पकाना।वह भी पूरे मेकअप के साथ आसान नहीं था.

निजी  जिंदगी में आप कितनी अच्छी कुक है?

मैं ज्यादा खाना नहीं बनाती हूं, कुछ चीजें मैं बहुत अच्छी बना लेती हूं. मैं आलू पराठा अच्छा बनाती हूं. चिकन चिल्ली मेरे हाथ का बना बहुत स्वादिष्ट होता है. अपना जो देसी चाइनीस नूडल्स होता है,वह भी मैं बहुत अच्छा बनाती हूं.

निजी जिंदगी में खाने में क्या-क्या पसंद करती हैं?

मैं टिपिकल बिहारी हूं.मुझे लिट्टी चोखा खाना बहुत पसंद है. कोशिश रहती है कि दो हफ्ते में एक बार तो खा ही लूं. एक बार में लंदन में शूट कर रही थी. वहां पर मैंने लिट्टी चोखा बनवाया था.वहां का एक भारतीय परिवार था, जिसने मेरे लिए ख़ास तौर पर लिट्टी चोखा बनाया था.

भोजपुरी इंडस्ट्री को पुरुष प्रधान इंडस्ट्री कहा जाता है,लेकिन अभी इंडस्ट्री फीमेल चला रही है, इस तरह की बातों पर आपकी क्या राय है? 

महिला एक्ट्रेस इंडस्ट्री चला रही हैं. मुझे लगता है बहुत ही ओवररेटेड बात है, क्योंकि अभी कोई एक्टर का जमाना नहीं है. चैनल का जमाना आ गया है. मैं इस बात को मानती हूं कि वूमेन सेंट्रिक फिल्में बन रही है.हमें ज्यादा पसंद करने का मौका मिल रहा है। कई बार हम मजाक करते हुए यह भी बोलते हैं कि अभी एक्टर पूरे सीन में सिर्फ हूं या हां करने के लिए ही आते हैं.लेकिन गेम अभी भी पूरी तरह से औरतों के हाथ में नहीं है. पहले सुपरस्टार एक्टर फैसला लेते थे. अब चैनल वाले फैसला लेते हैं.इस बात को कहने  के साथ यह भी कहूंगी कि छोटी-छोटी कमी बरकरार  कर रहनी चाहिए ताकि लोगों की भूख बनी रहे. नहीं तो जैसे वह दौर चला गया यह भी दौर चला जाएगा. शूटिंग के अनुभव की बात करूं तो पहले वाला  बहुत ज्यादा रॉयल था. अभी सीमित संसाधनों में काम करना पड़ता है.


 भोजपुरी फिल्मों में अभिनेत्री के स्टारडम को आप किस तरह से देखती है?

 मुझे जहां तक लगता है कि स्टारडम यहां पुरुषों को मिला है.हीरोइन को कभी भी वह स्टारडम नहीं मिला है. मैंने  अब तक किसी भी भोजपुरी हीरोइन का स्टारडम नहीं देखा है और मुझे यह बात बहुत चुभती भी है. ऐसा तो नहीं है कि हमारा योगदान फिल्मों में कहीं से भी कम होता है.फिल्मों में हम भी उतनी ही मेहनत करते हैं, लेकिन हमें फालना की हीरोइन या कभी किसी फिल्म के किरदार से ही जाना जाता है. हमें भी हमारे नाम का स्टारडम मिलना चाहिए. सिर्फ यही नहीं भोजपुरी के जो सुपरस्टार है, उनके मेहताने का हमें 20% भी नहीं मिलता था. अभिनेत्रियों  के साथ हमेशा ही दोयम दर्जे का व्यवहार हुआ है.

आप 2008 से फिल्मों में अभिनय कर रही हैं , क्या कभी शो मस्ट गो ऑन  वाला भी मामला हुआ है?


 हां हुआ हैं. मुझे नहीं समझ आया कि वह वाकया क्यों नहीं हाईलाइट हुआ था. एक फिल्म मैंने की थी भाग खेसारी भाग.फिल्म के अंदर मैंने बुलेट चलाई थी.पहले स्कूटी और बाइक चलाई थी, इसलिए थोड़े प्रैक्टिस के बाद ही मुझे बुलेट चलाने का कॉन्फिडेंस आ गया था. एक दिन एक शॉट के दौरान एक एक्टर को मेरे सामने डायलॉग बोलकर हटना था, लेकिन वह समय से नहीं हटा और थोड़ी जमीन भी उबड़ -खाबड थी,तो मेरा बैलेंस बिगड़ गया और मैं बुलेट लेकर गिर गई.मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया था. उसके साइलेंसर से मेरा पैर जल भी गया था. मैं तुरंत हॉस्पिटल गई. मालूम हुआ कि फ्रैक्चर थोड़ा हल्का है. पेनकिलर और इंजेक्शन लेने के बाद थोड़ी मुझे राहत महसूस हुई. मैंने एक प्रोफेशनल की तरह अपने डॉक्टर से बात की और कहा कि मुझे शूटिंग करनी है. वरना सभी को बहुत नुकसान हो जाएगा.मैंने 8 से 9 दिन की शूटिंग कर ली थी .किसी नई एक्ट्रेस के साथ फिर शूटिंग का मतलब डबल खर्च. यह उस वक्त की बात है, जब भोजपुरी फिल्में 25 दिनों में बन जाया करती थी.फ्रैक्चर के प्लास्टर के साथ में शूटिंग कर भी नहीं सकती थी. मैंने डॉक्टर से रिक्वेस्ट की कि मैं कितने दिन बिना प्लास्टर के निकाल सकती हूं.उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा तीन से चार दिन.मैंने तुरंत अपने डायरेक्टर को फोन किया और  तीन से चार दिन तक लगातार शूट करने को कहा. मैंने उस दर्द में पेन किलर खाकर,वॉकर के साथ चलकर अपने हिस्से की शूटिंग पूरी की. जैसे मेरा लास्ट डे शूट का हुआ.उसके बाद मैंने अपने पैर का प्लास्टर करवाया. 1 महीने बाद प्लास्टर कटता है, उसके तुरंत बाद निर्देशक ने कहा कि हमको सारे गाने का शूट भी जल्द से जल्द खत्म करना है ,क्योंकि फिल्म को जल्दी रिलीज करना है.मैं फिर से शूटिंग में जुड़ी. मैं जब डांस सीक्वेंस खत्म करके शाम को घर आती थी,तो मेरा पूरा पैर सूजा हुआ रहता था. सारे गानों की शूटिंग के सीक्वेंस में साइलेंसर से जला हुआ जख्म भी मेरा खुल गया था. फिल्म में गाना है बिहवा के बाद उसमें उस घाव से खून निकलने लगा था. मैं लगातार खून पोछ -पोछ कर उसकी शूटिंग कर रही थी, डांस के वजह से खून का बहाव और ज्यादा हो रहा था. बहुत मुश्किलों से मैंने उस फिल्म की शूटिंग पूरी की थी लेकिन मुझे दुख उस वक्त हुआ जब निर्माता, निर्देशक और ना ही मेरे को एक्टर खेसारी ने मीडिया में मेरे बारे में एक शब्द नहीं कहा कि कितनी मुश्किलों से मैंने शूटिंग की.बहुत ही रुथलेस खेसारी का बर्ताव था. मेरी जगह अगर खेसारी लाल जी को चोट लग जाती थी,तो निर्माता निर्देशक सामने से उनको कहते कि आप आराम कीजिए. हम नेक्स्ट शेड्यूल में शूटिंग पूरा करेंगे, लेकिन मेरे वक़्त ना इतना दम सुपरस्टार खेसारी लाल यादव ने दिखाया कि मेरी हीरोइन को चोट लगी है. हम फिल्म नहीं करेंगे, फिल्म नेक्स्ट शेड्यूल में पूरी करेंगे और ना ही निर्माता निर्देशक ने.उस फिल्म के बाद मैंने तय किया कि अब अपने हेल्थ को प्राथमिकता दूंगी.

आप हिंदी टेलीविजन शो से भी जुड़ी रहीं हैं, क्या पूरी तरह से हिंदी धारावाहिक पर फोकस करने का नहीं सोचा ?

टेलीविजन इंडस्ट्री में एक धारणा है. मुंह पर तो कुछ नहीं बोलेंगे,लेकिन उनके मन में यह रहता है कि यह भोजपुरी से है.इसलिए जब बड़े मौके या लीड एक्ट्रेस के रोल होते हैं ,तो भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री से दूरी बनाते हैं.एक्ट्रेस के तौर मैं अच्छा काम करना चाहती हूं हाल ही में मैंने एक मराठी फिल्म की थी मुसाफिरा.वहां बहुत अच्छा ट्रीटमेंट मिला. मुझे बहुत ही गर्व महसूस हुआ कि कितनी अच्छी इनकी सोच हैं.ये आर्टिस्ट में भेदभाव नहीं करते हैं.

शादी को लेकर फैमिली का दबाव रहता है?

मेरी फैमिली बहुत ही अच्छी और सपोर्टिव  है. वह जानती है कि मैं अपने फैसले खुद ही करती हूं और अच्छा ही लूंगी.

आपके आनेवाले प्रोजेक्ट

 सुहाग के बंटवारा और एक वेब सीरीज भी कर रही हूं, जिसकी जल्द ही घोषणा होगी. 


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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