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इरशाद कामिल: रूस का प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय गीतकार, जो जानते थे उनकी मंजिल मुंबई ही है

पिछले कुछ वक्त से रूस का जिक्र सिर्फ यूक्रेन पर हमले और उससे जुड़ी बातों को लेकर ही किया जा रहा है, लेकिन हाल ही में इरशाद कामिल को पुश्किन अवार्ड देने की खबर आने के बाद पता चला कि युद्ध की विभीषिका के बीच भी साहित्य से जुड़ी रचनात्मक और संवेदनशील गतिविधियों की गुंजाइश अभी बाकी है.

हिंदी फिल्मों के नाजुक मिजाज गीतकार इरशाद कामिल देश के पहले गीतकार हैं जिन्हें प्रतिष्ठित पुश्किन अवॉर्ड के लिए चुना गया है. उन्हें सात नवंबर को मॉस्को में इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा. पिछले कुछ वक्त से रूस का जिक्र सिर्फ यूक्रेन पर हमले और उससे जुड़ी बातों को लेकर ही किया जा रहा है, लेकिन हाल ही में इरशाद कामिल को पुश्किन अवार्ड देने की खबर आने के बाद पता चला कि युद्ध की विभीषिका के बीच भी साहित्य से जुड़ी रचनात्मक और संवेदनशील गतिविधियों की गुंजाइश अभी बाकी है.

पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था जन्म

पंजाब के संगरूर जिले के मलेरकोटला में रसायन विज्ञान के शिक्षक मोहम्मद सिद्दीकी और बेगम इकबाल बानो के यहां पांच सितंबर 1971 को उनकी सातवीं संतान के तौर पर जन्में इरशाद ने सनातन धर्म प्रेम प्रचारक स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी से आगे की पढ़ाई की और स्नातक एवं स्नातकोत्तर के बाद समकालीन हिंदी पत्रकारिता में पीएचडी किया. उनके चार भाई और दो बहनें हैं तथा उन सभी ने अपने माता-पिता की मर्जी के अनुसार पढ़ाई की.

उन्हें कलम से प्रेम था

इरशाद को उनके पिता विज्ञान की पढ़ाई करवाना चाहते थे, लेकिन उन्हें कलम से प्रेम था. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ साल पत्रकारिता में हाथ आजमाए, लेकिन वह हमेशा से जानते थे कि उनकी मंजिल मुंबई ही है. एक बार हिम्मत करके मुंबई गए भी लेकिन काम न मिलने के कारण वापस चंडीगढ़ लौटना पड़ा. एक दोस्त के बुलाने पर नौ हजार रुपये की जमा पूंजी के साथ दिल्ली आकर भी भाग्य आजमाने का प्रयास किया, लेकिन दोस्त ने मुंह फेर लिया तो कुछ दिन बाद चंडीगढ़ लौट गए.

‘कहां से कहां तक’ की शूटिंग के चंडीगढ़ आये

फरवरी 2002 में फिल्म निर्माता लेख टंडन अपने टेलीविजन सीरियल ‘कहां से कहां तक’ की शूटिंग के लिए चंडीगढ़ आए तो उन्हें सीरियल के डॉयलॉग लिखवाने के लिए एक नए लेखक की तलाश थी. किसी ने इरशाद कामिल का नाम सुझाया और इस तरह फिल्म नगरी के साथ कामिल के तार जुड़ने लगे. लेख टंडन कामिल की भाषा की खूबसूरती से इस हद तक प्रभावित हुए कि उन्होंने कामिल को मुंबई आने का न्योता दे दिया. मुंबई पहुंचने के बाद कामिल ने कई सीरियल के टाइटल ट्रैक और डॉयलॉग लिखने का काम किया.

इम्तियाज अली संग किया काम

इसी दौरान उनकी मुलाकात इम्तियाज अली से हुई और दोनों ने पहली बार फिल्म ‘चमेली’ के लिए एक साथ काम किया. वहां से दोनों की दोस्ती की डोर मजबूत होती चली गई और ‘जब बी मेट’, ‘लव आजकल’, ‘रॉकस्टार’ और ‘हाईवे’ जैसी बेहतरीन फिल्में दोनों ने एक साथ कीं.

भाषा पर उठाए गये सवाल

कामिल के गीतों में अंग्रेजी और पंजाबी के शब्दों की भरमार होने के कारण उनकी भाषा पर अकसर सवाल उठाए जाते हैं, लेकिन इस बारे में कामिल का कहना है कि लोग उनके गीतों को पसंद करते हैं क्योंकि वे उन्हें अपने आसपास के माहौल और समाज जैसे ही लगते हैं. उनका कहना है कि अतीत में जीना अच्छी बात है, लेकिन बंधी बंधाई लीक पर चलते रहेंगे तो नयी राहें कैसे खोज पाएंगे.

शुद्धतावाद या भाषा के तराजू पर तौला जाए

वह कहते हैं कि सिनेमा ही तो समस्त साहित्य या कला नहीं है और इसके अलावा भी बहुत साहित्य लिखा जा रहा है, जिसे शुद्धतावाद या भाषा के तराजू पर तौला जाए, जबकि सिनेमा का अहम पहलू मनोरंजन है इसलिए भाषा का चयन करते समय उसे भी ध्यान में रखना जरूरी होता है. वह कहते हैं कि जो सरल साधारण बात करीने और सलीके से कही जाए वह अपना असर छोड़ती है.

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100 से ज्यादा फिल्मों के लिए लिखे गीत

100 से ज्यादा फिल्मों के लिए गीत लिख चुके और फिल्मी दुनिया से जुड़े लगभग तमाम अवार्ड स्क्रीन, आईफा, ज़ी सिने अवॉर्ड्स, मिर्ची म्यूजिक अवॉर्ड्स हासिल कर चुके इरशाद कामिल का कहना है कि इंसान जिंदगी में कई बार अपनी मंजिलें तय करता है, लेकिन मंजिल तक पहुंचने के बाद उसे लगता है कि अभी तो आगे और भी रास्ता है और ऐसे में वह उस मंजिल को अपने सफर का पड़ाव मानकर आगे निकल पड़ता है. उन्हें लगता है कि उन्हें भी अभी बहुत कुछ लिखना है और बहुत सी मंजिलों को अपने सफर का पड़ाव बनाना है.

पीटीआई भाषा से इनपुट

Budhmani Minj
Budhmani Minj
Senior Journalist having over 10 years experience in Digital, Print and Electronic Media.Good writing skill in Entertainment Beat. Fellow of Centre for Cultural Resources and Training .

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