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jharkhand:आदि शंकराचार्य पर बनी वेब सीरीज का खास कनेक्शन है झारखंड से.. जानिए क्या

आदि शंकराचार्य की वेबसीरीज पर पिछले 19 सालों से लेखक और निर्देशक ओंकार नाथ मिश्रा जुड़े हुए हैं. उन्हें खुशी है कि आखिरकार आर्ट ऑफ लिविंग ने उन पर भरोसा जताया और इस वेब सीरीज के निर्माण और रिलीज में उनकी मदद की.

jharkhand:हिन्दू धर्म के सबसे प्रभावशाली संतों में से एक आदि शंकराचार्य को माना जाता है. आदि गुरु शंकराचार्य को हिन्दू धर्म को पुनर्स्थापना का श्रेय भी दिया जाता है. आगामी एक नवम्बर को उनपर आधारित वेब सीरीज आदि शंकराचार्य आर्ट ऑफ़ लिविंग के ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज होने जा रही है. यह पहला मौका होगा, जब वेब सीरीज के माध्यम से उनकी कहानी को कहा जाएगा.इस सीरीज से लेखक, निर्माता और निर्देशक के तौर पर ओंकार नाथ मिश्रा जुड़े हुए हैं. ओंकार नाथ मूल रूप से झारखंड से हैं. झारखंड से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की अब तक की जर्नी के साथ उनकी इस नयी वेब सीरीज पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत 


पांचवी क्लास में ही तय कर लिया था फिल्मों में कैरियर है बनाना 

 झारखंड के डाल्टनगंज में मोहन हॉल करके एक थिएटर हुआ करता था. मुझे नहीं पता कि अब वह थिएटर है या नहीं. जब मैं पांचवी क्लास में था, मैं उस वक़्त फिल्म मुकद्दर का सिकंदर देखने गया था. फिल्म के खत्म होने के साथ ही मेरे मन में यह भावना उत्पन्न हो गई थी कि यही फील्ड मेरा है. आमतौर पर उस उम्र के बच्चे का मानसिकता होती है कि फिल्म में हीरो बने लेकिन मैं आपको बताऊं तो मैं शुरुआत से ही चाहता था कि  फिल्म मेकिंग से ही जुड़ूं। 

लेखन मेरे अंदर हमेशा से था


झारखंड के धुरकी नाम के लिए ब्लॉक के अंदर पहेलियां  गांव से मैं आता हूं. इस समय वह गढ़वा जिला में आता है. उस वक्त वहां पर एक पक्की सड़क भी नहीं थी. हम लोगों को 2 से ढाई किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद एक पक्की सड़क मिलती थी, बीच में दो छोटी-छोटी नदियां पड़ती थी. जिनको हमको पार करना पड़ता था. इंटीरियर था, लेकिन बहुत अच्छा था. हमने बहुत अच्छी जिंदगी वहां बिताई थी. नगर उंटारी नाम का एक जगह है, जहां पर हमने 7 -8 की पढ़ाई की थी. उसके बाद  9वीं 10वीं 11वीं 12वीं मैंने उत्तर प्रदेश में किया. मेरे पिताजी नगर उंटारी हाई स्कूल में शिक्षक थे.राजेश्वर मिश्रा कवि भी थे. उन्होंने तीन महाकाव्य लिखे हुए हैं.संयुक्ता, मांडवी और उड़ती चिंगारी लिखी है. आप यह भी कह सकती हैं कि लेखन मेरे अंदर हमेशा से था.आप यह समझ लीजिए कि राइटिंग हमारी बपौती है.क्योंकि मैं पांचवी क्लास से तय कर चुका था कि मुझे फिल्मों में ही कैरियर बनाना है,तो मैंने रांची कॉलेज से अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद फिल्म मेकिंग से जुड़ गया  . 


साउथ फिल्मों को असिस्ट कर हुई शुरुआत

 मैं जिस गांव से था। वहां से फिल्मों में करियर बनाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था.मेरे पिताजी खुद एक कवि थे ,तो वह कलाकार की इच्छा को भी जानते थे. शुरुआत में उन्होंने मुझे मना किया था लेकिन जब मैं नहीं मान रहा था तो वह समझ गए कि मैं कला के प्रति व्यक्ति समर्पित हो चुका हूं ,जिसके बाद उन्होंने हमेशा मुझे सपोर्ट ही किया है.साल 1989 में  चेन्नई में काम करने के लिए पहुंच गया था. उस वक्त साउथ की फिल्मों  में टेक्निकल तौर पर बहुत अच्छा काम हो रहा था और बॉलीवुड फिल्मों में  बहुत सतही काम हो रहा था. यही वजह थी कि मुझे लगा कि सीखने के लिए साउथ की फिल्मों से अच्छा क्या हो सकता है.

बहुत दिक्कतों से गुजरा हूं 

मैंने  3 साल तक वहां की फिल्मों में छोटे-मोटे असिस्टेंट के तौर पर काम किया. इसी बीच मुझे एक हिंदी की फिल्म करंट लिखने के लिए मिल गयी. जिसमें ओम पुरी और दीप्ति नवल थे.उस फिल्म को करने के लिए मैं मुंबई आया फिर मैं मुंबई का ही होकर रह गया . उसके बाद मैंने तीन-चार फिल्मों से जुड़ा. 2003 में मैंने अपनी फिल्म दिल बेचारा प्यार का मारा लिखी और डायरेक्ट की थी. फिल्म हिट नहीं हुई ,तो दूसरी फिल्म मिलनी मुश्किल थी. इसलिए मैं टेलीविजन जुड़ गया. टेलीविजन में मैंने  क्रिएटिव डायरेक्टर के तौर पर काम किया. विष्णु दशावतार करके जो शो था. उसका मैं क्रिएटिव डायरेक्टर था. मैं बताना चाहूंगा कि मैंने कई हिस्टोरिकल शो में अभिनय भी किया है.सच कहूं तो बहुत ही दिक्कतों से गुजरा हूं, लेकिन मैं उन दिक्कत तो कभी भी सीरियस नहीं लिया है.मेरा पैशन मेरे काम के प्रति इतना ज्यादा रहा है कि मैं रहने खाने यह सब की दिक्कत के बारे में सोचा ही नहीं. जो भी संघर्ष कर रहा था ,उससे कोई शिकायत नहीं हुई क्योंकि वह फिल्मों के लिए था.

आधे लोगों को शंकराचार्य के बारे में नहीं है पता 

जब मैंने अपनी फिल्म दिल बेचारा प्यार का मारा खत्म की थी. उस वक़्त एक महाराज चारु स्वामी जी से मैं मिला. वह भारत के मठों के ऊपर फिल्म बनाना चाहते थे. उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि ओमकार में आदि शंकराचार्य पर फिल्म बनाना चाहता हूं. उन्होंने मुझे आदि शंकराचार्य के बारे में बताया और पुस्तकें दी. मैंने फिल्म की स्क्रिप्ट लिख दी और 2006 में मेरी फिल्म शूटिंग फ्लोर पर भी जाने वाली थी,लेकिन किसी कारणवश फिल्म की शूटिंग रुक गयी.फिल्म पोस्टपोन होने के बाद भी मैं इस विषय के बारे में लगातार पढ़ता रहा और जानने की कोशिश करता रहा. जैसे-जैसे में पढ़ता गया . मुझे मालूम पड़ा कि आदि शंकराचार्य हमारे देश की सबसे बड़े महानायक हैं. हर क्षेत्र में उन्होंने हमको लीड किया है. हर क्षेत्र में हमको एक नई दिशा दी है. चाहे वह आध्यात्म हो, राजनीति हो, साहित्य हो,हर क्षेत्र में उनका कंट्रीब्यूशन है. इसके बाद मैंने यह मिशन बनाया कि मुझे इन की कहानी कहानी ही है. लोग मानते हैं कि यह सब्जेक्ट कमर्शियल नहीं है,इसलिए हाथ लगाना नहीं चाहते हैं.उनको लगता है कि यह संत की कहानी है  इसमें क्या ही होगा. इसकी वजह क्या है कि आधे लोगों को आदि शंकराचार्य के बारे में पता नहीं है.यह मेरे इस प्रोजेक्ट से जुड़ाव का 19 साल है.  पहला सीजन अब जाकर रिलीज होने के लिए तैयार है.आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था का मैं शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर भरोसा कर कर मुझे बनाने का मौका दिया. उनकी वजह से ही मैं यह प्रोजेक्ट बना पाया है. 

चार सीजन के जरिये आदि शंकराचार्य की कहानी कही जाएगी 


हम इस कहानी को चार सीजन में कहेंगे.हमारी सीजन 2 की भी आधे से अधिक शूटिंग हो चुकी है. सीजन 2 में आदि शंकराचार्य के गुरु के रूप में मनीष वाधवा नजर आएंगे.पहला सीजन बालक आदि शंकराचार्य की कहानी रहेगी. जिसे अर्नव ख़ानीजो ने निभाया है. उस वक्त भारत जिन समस्याओं से जूझ रहा था. उसको देखते हुए उन्होंने निजी जिंदगी का त्याग करके राष्ट्र और संस्कृति के उत्थान के लिए निकल पड़े थे. फ़िलहाल १० एपिसोड में लोगों को यह कहानी देखने को मिलेगी. उनकी ये कहानी आज भी प्रासंगिक है.आज फिर से वही परिस्थितियां हैं ,जिनसे श्री आदि शंकराचार्य ने हमें आठवीं शताब्दी में बाहर निकाला था. तब उत्तर पश्चिमी सीमा पर अरब अटैक कर रहा था. आज पाकिस्तान लगातार लड़ रहा है.चीन उस समय बदरिकाश्रम में घुसपैठ कर रहा था, आज अरुणाचल और लद्दाख में कर रहा है. उस समय के राजा देश को भूल अपने स्वार्थ के लिए आपस में लड़ रहे थे. आज के राजनेता भी सत्ता के लिये देश में रोज़ आग लगा रहे हैं. यह सीरीज बताएगी हमें आदि शंकराचार्य के मूल्यों को समझने की जरूरत है. मैं आगे भी ऐसे ही राष्टनायकों की कहानी लाऊंगा.


झारखंड साल में एक बार जाता ही हूं 

अब मेरे आधार कार्ड में सब कुछ मुंबई का हो चुका है ,लेकिन साल में एक बार झारखंड जाता ही हूं. मेरी पैतृक संपत्ति, मेरे लोग अभी भी वहीं पर है, तो साल में आना-जाना लगा रहता है. अपने गांव और अपने लोग आपको जमीन से जोड़ें रखते हैं , इसलिए कुछ ना कुछ बहाना निकालकर झारखण्ड चला ही जाता हूँ.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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