madhubani news :काजोल अभिनीत माइथोलॉजिकल हॉरर फिल्म ‘मां’ में पुरोहिता की भूमिका निभा रहीं थिएटर आर्टिस्ट विभा रानी ने अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान खींचा है. खास बात है कि विभा रानी बिहार के मधुबनी से हैं. फिल्म से जुड़े अपने अनुभवों व अभिनय करियर को लेकर उन्होंने बातचीत की है.
‘मां’को मधुबनी से मिला खास रिस्पॉन्स
फिल्म ‘मां’में और मेरे परफॉरमेंस को मिल रहे रिस्पॉन्स की जहां तक बात है, जिन्होंने भी फिल्म देखी है, मुझे अब तक बहुत अच्छा रिस्पॉन्स आ रहा है. अभी भी आ रहे हैं. मैं बताना चाहूंगी कि मेरे होमटाउन मधुबनी में कुछ समय पहले तक कोई सिनेमाघर नहीं था. कोविड के बाद से सब सिंगल स्क्रीन बंद हो गये थे. हाल ही में एक महीने पहले मल्टीप्लेक्स शुरू हुआ था. वहां पर ‘मां’ फिल्म लगी है और सभी उसको देख रहे हैं. उन्हें इस बात की खुशी है कि मधुबनी की बेटी इस फिल्म में है और महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
लुक को लेकर हमेशा मुझे आलोचना मिलती थी
मधुबनी में जब तक मैं थी, वह डिविजनल टाउन था. बाद में वह डिस्ट्रिक्ट टाउन बना. शहर अपनी मधुबनी और मिथिला पेंटिंग की वजह से प्रसिद्ध है. युवा दिनों में अपनी जिम्मेदारियों की वजह से मैं एक्टिंग में चाहकर भी करियर नहीं बना पायी. विजुअल माध्यम में काम करना, मुझे शुरू से पसंद था. जब फिल्म देखती थी, तो राजेश खन्ना, धर्मेंद्र के अपोजिट खुद को इमेजिन करने लगती थी. हालांकि, मेरे लुक को लेकर हमेशा मुझे आलोचना मिलती थी, क्योंकि मेरा लुक राजा रवि वर्मा की पेंटिंग वाले खूबसूरत लुक के मानकों पर नहीं आता था, लेकिन जिद थी कि एक्ट्रेस बनना है. अपने जॉब के साथ – साथ मैंने थिएटर जारी रखा. जॉब से रिटायर होने के बाद अपना पूरा फोकस मैंने एक्टिंग पर लगा दिया. ये बात जानती थी कि क्रिएटिव काम के लिए उम्र कभी आड़े नहीं आती है. लाल कप्तान, ताज, शमशेरा जैसे बड़े बैनर के प्रोजेक्ट्स का मैं हिस्सा रही हूं.
प्रोस्थेटिक मेकअप में लगते थे चार घंटे
पुरोहिता के किरदार की चुनौती, इसका प्रोस्थेटिक मेकअप भी था, जिसे करने में चार घंटे और उतारने में एक घंटा लगते थे. जीतू दादा की मेकअप टीम बहुत मददगार थी, लेकिन गर्मी का समय था. काली मां के गीत की शूटिंग बड़े-बड़े हवन कुंड और दीयों के बीच में हुई थी. गर्मी, पसीने और इतने भारी प्रोस्थेटिक से मेरी हालत खराब रहती थी. काजोल शॉट देने आतीं और हर बार यही कहतीं, ‘मुझे आपके लिए बड़ा बुरा लग रहा है, लेकिन मैं आपको देखकर उतनी ही खुश हूं.’ हर बार वे सबसे पहले यही पूछतीं, ‘आर यू ओके?’सच कहूं तो मुझे शिकायत नहीं थी, क्योंकि वह मेरे काम का हिस्सा था.
काजोल कमाल की को-एक्टर हैं
कभी यह नहीं सोचा था कि काजोल के साथ काम करूंगी. जब फिल्म ‘मां’ के निर्देशक विशाल फुरिया ने कहानी बताते हुए कहा था कि ‘आपकी भूमिका महत्वपूर्ण तो है ही, आपने सारे सीन्स काजोल मैम के साथ ही हैं.’ ‘काजोल के साथ!’ बड़ी मुश्किल से अपने दिल की धड़कनों को थामा था. थिएटर आर्टिस्ट हूं, तो कई बार सीन में बह जाती हूं. एक सीन में मैंने उन्हें धक्का दिया तो वह जमीन पर ही गिर गयी थीं. बहुत डर गयी थी उस दिन. एक शॉट में मुझे उनको बहुत हार्श बोलना था. शॉट तो दे दिया, लेकिन फिर उनके पास गयी और बोली- ‘आपको बुरा तो नहीं लगा. ’ वे बोलीं- ‘कम ऑन!’ मैंने फिर कहा, ‘आप मुझे प्लीज थोड़ा बता दें कि मैं कैसे बोलूँ या एक्ट करूं.’ वे बोलीं- ‘आप खुद ही इतनी सीजंड एक्टर हैं. आपको क्या बताना!’ सच पूछिये तो उनकी इस लाइन ने मेरे भीतर का डर खत्म किया. काजोल बेहतरीन को एक्टर हैं. वह लगभग हर दिन शूटिंग से पहले अपनी बातों से सेट का माहौल सहज कर देती थीं.
नेगटिव रोल पर फोकस
मैं हर तरह के नेगेटिव रोल करना चाहती हूं. चेहरा है. एबिलिटी है. मैं खुद को ताज, लाल कप्तान वाले लुक में सहज महसूस करती हूं. उनको आसानी से कैरी भी कर लेती हूं. मेरी ख्वाहिश है कि जब भी इस तरह के रोल लिखे जाये, मेकर्स को लगे कि विभा रानी इसके लिए सबसे बेस्ट रहेंगी