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mirzapur 3 में कालीन भैया की गलत एक्टिंग करने लगे थे पंकज त्रिपाठी..खुद किया खुलासा

मिर्जापुर 3 को लेकर इनदिनों सुर्ख़ियों में चल रहे पंकज त्रिपाठी ने निभाए गए किरदारों को फिर से जीने से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा की.

mirzapur 3 ओटीटी पर दस्तक दे चुका है. सीरीज में अखंडानन्द उर्फ़ कालीन भैया की भूमिका में दिख रहे पंकज त्रिपाठी इस सीरीज को बहुत खास करार देते हुए कहते हैं कि इस सीरीज से पहले हमें एक्टर का दर्जा मिला हुआ था. कालीन भैया ने स्टार का दर्जा दिलवा दिया. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

कालीन भैया के किरदार को फिर से जीना आसान होता है ?
आसान नहीं होता है.मुझे शूटिंग के पहले दिन दो से तीन टेक लगे थे.सीरीज के निर्देशक गुरु (गुरमीत )ने आकर कहा कि कालीन भैया आपके परफॉरमेंस में नहीं दिख रहे हैं. कालीन भैया की खासियत है कि वह किसी बात से सहमत है या असहमत ये पता ही नहीं चलता है. कालीन भैया के किरदार का एक अलग बॉडी लैंग्वेज है.किरदार के परफॉरमेंस में सहजता होने के बावजूद एक सस्पेंस होता है. गुरु के समझाने के बाद दो से तीन टेक बाद सुर पकड़ा.वैसे ऐसा स्त्री 2 के सेट पर भी हुआ था. डायरेक्टर अमर कौशिक ने कहा कि अटल जी जैसा कर रहे हैं. दरअसल नोएडा में फिल्म अटल जी की शूटिंग खत्म किये थे और ट्रेन से ललितपुर पहुंचकर सीधा सुबह 9 बजे स्त्री 2 सेट पर पहुंच गए.पहला शॉट चालू होने के बाद निर्देशक ने कान में आकर कहा कि अटल जी जैसा लग रहा है. बोला भाई क्या करूं रात ही में वहां से आया हूं. दो से तीन तक हुआ. निर्देशक ने बोला कि छुट्टी ही ले लो. मैंने मुस्कुराते हुए कहा कि बहुत बढ़िया मैं भी वही चाह रहा था. मैं होटल जाकर सो गया.अगले दिन सेट पर ठीक से परफॉर्म किया.

किरदार से निकलने में भी मुश्किल होती है ?
बहुत आसान है. (हंसते हुए ) पेमेंट आया ,किरदार खत्म है. ये मजाक था सीरियस नोट पर कहूं तो एक किरदार खत्म करके दस से पंद्रह दिन का अंतराल होना ही चाहिए.वरना स्त्री 2 वाला हाल होता है.

किरदार को करते हुए क्या डर भी हावी होता है कि सुर पकड़ पाऊंगा या नहीं ?
भय नहीं रहता है. मैं घर से होमवर्क करके नहीं आता हूं कि ये किरदार ऐसा ही होगा. मैं शूटिंग का पहला दो तीन दिन किरदार का सुर ढूंढता हूं. बस ये चिंता रहती है कि डायरेक्टर को मेरी खोज ना दिखें . वरना वो डर जाएगा कि ये तो अभी भी हवा में ही है. उनको ये पता ना चले कि मैं कुछ ढूंढ रह हूं.वैसे कुछ निर्देशक मेरी इस बात को जानते हैं. मिर्जापुर के गुरु जानते हैं.अश्विनी अय्यर भी जानती हैं कि शुरुआत के दो दिन मैं हवे में तीर चलाता हूं ,तो तीसरे दिन से किरदार खुद मुझे गाइड करने लगता है कि भाई ऐसा करो.

शूटिंग करते हुए क्या मॉनिटर में खुद को देखते हैं कि मैं किरदार को बढ़िया ढंग से निभा रहा हूं या नहीं ?
आज तक किसी भी प्रोजेक्ट में मैंने मॉनिटर नहीं देखा है. डायरेक्टर ने ओके बोल दिया मेरे लिए वो ओके है. हमारे लिए उनकी आंखें मॉनिटर है. मैं अपने मेकअपमैन सुयश मोहंती के मेकअप करने के बाद मेकअप भी नहीं देखता हूं. उन्होंने देख लिया तो सब ठीक ही है क्योंकि वो उनकी ड्यूटी है. उन्होंने देख लिया तो सही ही होगा.

सीरीज में मिर्जापुर की कुर्सी की जंग है क्या एक्टिंग में सर्वश्रेष्ठ रहने की प्रतिस्पर्धा सेट पर होती है ?
इस सीरीज में सभी बहुत ही मंझे हुए एक्टर हैं और अच्छे को एक्टर आपके काम को और अच्छा बनाते हैं.वैसे मैं इस बात को बहुत पहले ही जान चुका हूं कि बेवजह की प्रतिस्पर्धा आपके सुकून को छीन लेगी और आप काम पर फोकस नहीं कर पाएंगे, तो मैं इन सब में नहीं पड़ता हूं.

मिर्जापुर को लेकर यह बात भी कई बार सामने आती है कि इससे असल शहर की छवि धूमिल हुई है ?
यह काल्पनिक कथा है. यह बात सीरीज के शुरुआत में ही दोहराई जाती है. वैसे मैं इस बात को कहने के साथ एक बात ये भी बताना चाहूंगा कि एक बार मैं चेन्नई से आ रहा था. फ्लाइट में एक सज्जन मिल.उन्होंने धन्यवाद देते हुए मुझे कहा कि पहले हमें चेन्नई के लोगों को मिर्जापुर के बारे में यह कहकर बताना पड़ता था कि हम बनारस के पास रहते थे, लेकिन अब हम लोगों को बताते हैं कि हम मिर्जापुर से हैं,तो वह खुद समझ जाते हैं. यह सीरीज से संभव हो पाया है. हर चीज के दोनों पहलू हैं. वैसे इस बार हमने गाने में कजरी को रखा है क्योंकि इसकी उत्पत्ति मिर्जापुर से ही हुई है. जो लोग जानते हैं ,वो समझ जाएंगे. दूसरे लोग लोकगीत की तरह सुन लेंगे.

असफलता अगर अपनी काबिलियत पर संदेह करवाती है तो क्या सफलता खुद की नजर में भी अपनी अहमियत खास महसूस कराती है ?
अपनी नजर में क्या ही देखूंगा. विनम्र महसूस करता हूं.इससे ज्यादा खुद को महसूस हो नहीं चाहता हूं. कल जब मैं शूटिंग पर था,तो एक सीनियर डॉक्टर दम्पति ने मेरे बिल्डिंग में किसी को बोला कि पंकज जी को मिलना तो बता देना कि हम बहुत प्यार करते हैं. मैं जब वॉक पर गया तो उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा कि रुकिए आपको कुछ कहना है. उन्होंने डॉक्टर दंपति की बात बताई. मैंने बोला मेरा प्रणाम उन्हें भेज दीजिए. धन्यवाद बोल दीजियेगा.अच्छा लगता है. बाकी अपनी नजरों में कुछ खास समझ नहीं आता है.

करियर के इस मुकाम में स्क्रिप्ट में क्या देखते हैं ?
जैसे बढ़ई एक पेड़ में कुर्सी देख लेता है. वैसे ही हम एक्टर्स लोग होते हैं. स्क्रिप्ट की कहानी उत्साहित करने वाली होनी चाहिए.अपने को इतना उत्साहित करे कि हां यार करने में मजा आएगा. या इस व्यक्तित्व के बारे में लोग जानें,जैसे अटल जी का व्यक्तित्व था. हर एक एक्टर को शुरुआत में एक हुक चाहिए होता है.पहले ये हुक था कि काम करने को मिल जाए कम से कम बीस दिन की शूटिंग मिल जाये,तो मजा आ जाए. अब वो नहीं है.पैसे भी नहीं है. अब स्क्रिप्ट और किरदार सबसे अहम है, जो आपको डराए. आपको उत्साहित करे.आपको रात को जागना पड़ जाए कि सुबह कैमरे पर इसे परफॉर्म कर पाऊंगा या नहीं .ये सब चीज़ें जब होती हैं, तो फिर हां कह देते हैं.

आपने नींद की बात की है अक्सर यह बातें सुनने को मिलती है कि एक्टर्स की लाइफ में नींद चंद घंटों की ही नसीब हो पाती है, इसलिए ज्यादातर एक्टर्स को रात में जागने की आदत हो जाती है ?
दूसरों के बारे में मैं बता नहीं सकता हूं, मैं अपनी बात करूं तो मुझे लगता है कि सिर्फ स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि जिंदगी को अच्छे ढंग से चलाने के लिए नींद बहुत जरूरी है. मैं हर दिन सात घंटे की नींद लेने की कोशिश करता हूं. हफ्ते में दो दिन आठ का भी आंकड़ा छूता हूं.सात घंटे तो हर दिन मेरी कोशिश रहती है. कभी हेक्टिक शेड्यूल की वजह से नहीं कर पाता हूं, तो फिर उसे अगले दिन या अगले हफ्ते ही सही उसे पूरी करने की कोशिश करता हूं. नींद को लेकर मेरा बैंक का पासबुक वाला हिसाब – किताब है. सात घंटे की नींद नहीं मिलने पर वो जमा होता रहता है और मैं आने वाले दिनों में उसे पूरा करता हूं.

क्या निर्देशन की भविष्य में प्लानिंग ?
नहीं सोचा नहीं है. नाटक के दौरान मैंने निर्देशन किया था. वैसे सिनेमा निर्देशक का ही माध्यम है. अभी तो एक्टिंग की दुकान अच्छी चल रही है. दुकान सुस्त होने लगेगी तो देखूंगा.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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