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The Signature Movie Review:दर्द की यह कहानी दिल को नहीं है छू पाती

मराठी फिल्म अनुमति के इस हिंदी रीमेक की एकमात्र यूएसपी अभिनेता अनुपम खेर का अभिनय है,लेकिन उन्हें सशक्त स्क्रीनप्ले का साथ नहीं मिल पाया है.

फिल्म- द सिग्नेचर
निर्माता-अनुपम खेर
निर्देशक- गजेंद्र अहिरे
कलाकार- अनुपम खेर,मनोज जोशी,अन्नू कपूर,नीना कुलकर्णी,महिमा चौधरी और अन्य
प्लेटफार्म- जी5
रेटिंग-दो

the signature movie review:अनुपम खेर की फिल्म सिग्नेचर इनदिनों जी 5 पर स्ट्रीम कर रही है. यह फिल्म मराठी फिल्म अनुमति का हिंदी रीमेक है, जो 2013 में रिलीज हुई थी.मराठी फिल्म के निर्देशक भी गजेंद्र अहिरे ही थे. इस फिल्म के लिए अभिनेता विक्रम गोखले को बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला था. विक्रम गोखले वाले किरदार में अभिनेता अनुपम खेर हिंदी रीमेक में नजर आ रहे हैं. उन्होंने भी फिल्म में शानदार काम किया है, लेकिन फिल्म की वही एकमात्र खासियत है. फिल्म कहानी बेबसी की है, लेकिन स्क्रीनप्ले में वह इमोशन नहीं आ पाया है. इसके साथ ही यह मुद्दा अब तक कई लघु फिल्मों और टीवी सीरियलों में भी दिखाया जा चुका है. मेकर्स को यह बात समझने की जरुरत थी कि ओरिजिनल फिल्म को बने हुए एक दशक हो चुके हैं. ऐसे में कहानी में भी नयापन नहीं है.कुलमिलाकर यह मार्मिक कहानी दिल तक नहीं पहुंच पाती है.

बेबसी की है कहानी

कहानी की बात करें तो एक बुजुर्ग दंपति (अनुपम खेर और नीना कुलकर्णी )एयरपोर्ट पर है. महिला बेहद उत्साहित है. वह तरह तरह से अपने मोबाइल से तस्वीरें निकाल रही हैं. इसी बीच महिला बेहोश हो जाती है. कहानी ८ दिन आगे चली जाती है.मालूम पड़ता है कि अपनी नौकरी से रिटायर हो चुके अरविन्द ( अनुपम खेर )और उनकी पत्नी मधु सारी जिंदगी जरूरतों के पीछे भागते – भागते अब जिंदगी को अपने लिए जीना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने बची हुई सेविंग से यूरोप टूर का प्लान बनाया था, लेकिन मधु को ब्रेन हैमरेज हो गया है. अस्पताल के महंगे इलाज में इन आठ दिनों में अरविन्द की जमा पूंजी खत्म हो चुकी है. अब वह अपनों से लेकर रिश्तेदारों तक से मदद मांग रहा है, लेकिन किसी के पास इतने पैसे नहीं है. कुछ रास्ता ना मिलता देख वह अपने बेटे को घर बेचने के कागजात पर सिग्नेचर करने को बोलता है, लेकिन वह यह कहते हुए सिग्नेचर करने से मना कर देता है कि उसके पास सिर्फ वही घर है. वह अपने पिता को डू नॉट रिससिटेट फॉर्म पर सिग्नेचर करने को कहता है.डी एन आर यह एक ऐसा फॉर्म होता है, जिसके बाद मरीज के लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद कर दिया है.अरविन्द इसके लिए तैयार नहीं है. वह साफ कहता है कि वह अपनी पत्नी की मौत का फैसला कैसे ले सकता है.वह अपनी पत्नी को बचाने के लिए हर कोशिश करेगा, लेकिन उसकी सभी कोशिशें नाकाम होने लगती है. क्या वह अपनी पत्नी मधु को बचा पायेगा या नहीं. इसी सवाल का आगे जवाब यह फिल्म देती है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

फिल्म की कहानी पेपर पर बेहद मार्मिक है, लेकिन जिस तरह से इसे परदे पर प्रस्तुत किया है. वह आपको इमोशनल नहीं कर पाती है. सिर्फ क्लाइमेक्स को छोड़ दें तो. वैसे फिल्म का क्लाइमेक्स आपको इमोशनल से ज्यादा अवाक करता है. कहानी में अब क्या होगा।यह बात पहले से ही आपको पता होती है कि अरविन्द के किरदार को हर तरफ से निराशा ही मिलने वाली है. यह बात फ्रेम दर फ्रेम फिल्म देखते हुए आप पहले से महसूस कर सकते हैं. फिल्म एक साथ कई मुद्दों को उठाती है. जिंदगी को देर से जीने की सोच, क्राउड फंडिंग जैसी चीजों से इलाज में युवा लोगों को प्रमुखता देना,मेडिकल पॉलिसी की अनदेखी,अस्पतालों में महंगे इलाज यह फिल्म इन मुद्दों को भी साथ में छूने की कोशिश करती है, लेकिन न्याय किसी के साथ नहीं कर पाती है. फिल्म में निर्देशक कई बार लॉजिक की भी अनदेखी कर दी है. अरविन्द का किरदार अपने भाई के घर जाता है, तो घर की दीवारें जर्जर हालात में थी. फिल्म में इसका जिक्र भी हुआ है, लेकिन उसी घर का बाथरूम काफी अच्छा था. फिल्म के संवाद कहानी और किरदारों के साथ न्याय करते हैं. गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.

अनुपम खेर का अभिनय फिल्म की यूएसपी

अभिनय की बात करें तो फिल्म अनुपम खेर की है और उन्होंने इस फिल्म में अपने किरदार के दर्द ,परेशानी ,बेबसी को हर फ्रेम में बखूबी सामने लाया है.उनका अभिनय ही है, जो आपको पूरी फिल्म से बांधे रखता है. अन्नू कपूर, नीना कुलकर्णी और मनोज जोशी अपनी – अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय करते हैं, लेकिन फिल्म उनको ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं देती है. हां एक अरसे बाद महिमा चौधरी को फिल्म में देखना सुखद अनुभव है. रणवीर शौरी भी अपनी छाप छोड़ते हैं. इसके अलावा परदे पर नजर आ रही सपोर्टिंग कास्ट फिल्म के साथ उस तरह से न्याय नहीं कर पाए हैं, जैसी कहानी की मांग थी. अखबार के दफ्तर वाला दृश्य काफी इमोशनल हो सकता था,लेकिन कमजोर सपोर्टिंग कास्ट की वजह से वह दृश्य कमजोर ही रह गया है.


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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