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Nana Patekar :नाना पाटेकर ने कहा वेलकम 2 की स्क्रिप्ट पसंद नहीं आयी थी

नाना पाटेकर ने अपनी फिल्म वनवास के साथ साथ वेलकम 2 के रिजेक्शन पर भी इस इंटरव्यू में बात की है.

nana patekar :कई नेशनल अवार्ड अपने नाम कर चुके अभिनेता नाना पाटेकर इन दिनों फिल्म वनवास में नजर आ रहे हैं. वह अपनी इस फिल्म को इमोशन का आईना करार देते हैं. उनकी इस फिल्म, उनके माता पिता से जुड़ाव सहित अभिनय के कई पहलुओं पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत  

 फिल्म वनवास माता -पिता से जुड़ी है,निजी जिंदगी में आपके आपके माता पिता से जुड़े क्या अनुभव रहे हैं ?

अपने माता-पिता की देखभाल करना कोई बड़ी बात नहीं है. वे हमारे माता-पिता हैं और उनकी देखभाल करना हमारा कर्तव्य है. मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया है. मेरी माँ 99 साल की उम्र में चल बसीं. हम 7 भाई-बहन थे. सभी का निधन हो चुका है; अब मैं अकेला बचा हूँ. मेरी मां ने अपने पति, अपने बच्चों, अपने सबसे बड़े बेटे को खो दिया, लेकिन उन्होंने कभी उनके बारे में शोक नहीं किया. वह हमेशा जीवन में आगे की ओर देखती थीं. अपने साथ रहने वाले लोगों के बारे में सोचती थीं और उनके लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देती थीं. वह कभी रोई नहीं. जब मैंने यह किरदार निभाया तो मैंने अपनी माँ से बहुत कुछ सीखा.

एक्टिंग में आपको महारत हासिल है, क्या चीजें आपको सीखाती हैं ?

मैं अपने आस-पास के आम लोगों से मिलता हूँ और अपनी भूमिकाओं के लिए उनसे अनुभव लेता हूँमुझे ऑटो रिक्शा से ट्रैवल करना बहुत पसंद है क्योंकि मुझे उनसे कहानियां  सुनने को मिलती हैं। मैं इस बात को भी बताना चाहूंगा कि शुरुआत में वे मुझसे बात करने से डरते हैं लेकिन पाँच मिनट में मैं उन्हें सहज कर देता हूं और हम बात करने लगते हैं। वे मेरे सामने थोड़े समय में इतने सहज हो जाते हैं कि अपने दिल की बात कहने लगते हैं. मैं उनके डे टू डे लाइफ के संघर्ष को जानता हूं.

अपने अब तक के करियर में आपने कई किरदार किए हैं, आपका सबसे पसंदीदा किरदार कौन सा रहा है ?

मेरी कोई पसंदीदा भूमिका नहीं है. जब मैं कोई खास फिल्म करता हूं, तो वह भूमिका मेरी पसंदीदा बन जाती है. मैं उसमें पूरी तरह डूब जाता हूं और फिर जब फिल्म खत्म हो जाती है, तो मैं उससे बाहर निकल जाता हूं. बीती बातों के बारे में मत सोचो, वह हो चुकी है और खत्म हो चुकी है. वैसे फिल्म या किरदार आपका पसंदीदा नहीं होता है, बल्कि पूरी टीम के साथ 40 से 50 दिनों का  खास समय जो मैंने बिताया होता है., वह मेरा पसंदीदा समय होता है. मैं उन पलों का आनंद लेता हूं.

 क्या आपको किरदारों से  बाहर आने में समय लगता है?

नहीं, मैं जब कोई भूमिका लेता हूं, तो उसमें डूब जाता हूं,लेकिन जब शूटिंग खत्म हो जाती है तो मैं अपने किरदार को वहीं छोड़ देता हूं, वरना ज़िंदगी मुश्किल हो जाती है. वनवास के साथ यह थोड़ा मुश्किल था. मैंने समय लिया क्योंकि यह एक भावनात्मक किरदार था, लेकिन एक बार जब मैं सेट से बाहर होता हूं , तो मैं सामान्य हो जाता हूं. मैं घर ले जाकर अपनी भूमिका को आगे नहीं बढ़ा सकता.

अक्सर कहा जाता है कि आप फिल्म मेकिंग में अपने बहुत इनपुट्स देते हैं?

हां, मैं बहुत हस्तक्षेप करता हूं,लेकिन एक अच्छा निर्देशक नेविगेटर है और वह अपने विजन को अच्छी तरह से लागू करता ही है. जब मैं सेट पर जाता हूं, तो मैं स्क्रिप्टिंग स्टेज से ही फिल्म में शामिल हो जाता हूं, इसलिए मुझे कहानी अच्छी तरह से पता चल जाती है,तो मैं अपनी राय देता हूं.

आप बेहद चूजी माने जाते हैं, आप स्क्रिप्ट में क्या देखते हैं?

मैं चूजी नहीं हूं, लेकिन मुझे ज्यादातर स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती हैं, अगर मुझे कोई अच्छी फिल्म ऑफर होती है,तो मैं उसे जरूर स्वीकार करूंगा. मैं एक आम आदमी हूं और मैं कहानी सुनता हूं और एक आम आदमी के तौर पर अगर मुझे लगता है कि मैं यह फिल्म देखना चाहूंगा, तो मैं फिल्म के लिए हां कह देता हूं. मुझे बौद्धिक फिल्में बनाना पसंद नहीं है जो सिर्फ पुरस्कारों के लिए बनाई जाती हैं. मैं इंटेलेक्चुअल दर्शकों के लिए फिल्म बनाने की अवधारणा में विश्वास नहीं करता हूं. फिल्में सबके लिए होती हैं.जैसे वेलकम वन 

क्या आप वेलकम 2 में दिखेंगे?

नहीं, मैंने मना कर दिया है और अनिल कपूर ने भी. अगर मुझे स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती,तो मैं मना कर देता हूं. खराब स्क्रिप्ट को मना करने की हिम्मत आपके पास होनी चाहिए. मना करने से मेरा क्या नुकसान होगा,सिर्फ पैसे? मैंने पहले ही इतना कमा लिया है, मैं और कितना कमाऊंगा.

प्रमोशन इनदिनों फिल्मों का अहम हिस्सा बन गया है,आपकी इस पर क्या सोच है ? 

मैं अपनी फिल्मों का कभी प्रचार नहीं करता. मुझे लगता है कि अगर दर्शक देखेंगे. अगर उन्हें फिल्म पसंद आएगी तो वे इसे दूसरों को भी देखने को कहेंगे . पहले हम कुछ होर्डिंग्स जारी करते थे और बस फिल्में अच्छी चलती थीं. क्रांतिवीर, तिरंगा, अंकुश इन फिल्मों ने अच्छी कमाई की.

गांव में रहते हुए क्या कुछ शहर का मिस करते हैं ?

जब हम थिएटर करते थे तो हमसे कहा जाता था कि हम न चाहें तो भी ताली बजाएं. हमारे जीवन में बहुत सी चीजें होती हैं, जो हमें पसंद न होने पर भी हमें चुप रहना पड़ता है.  मुझे शहरों की व्यवस्था पसंद नहीं है इसलिए मैं गांव में रहता हूं.मैं सब्जियां उगाता हूं. हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट सुनने को मिलती है.मेरा बचपन मुझे वापस मिल गया है.मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूं तो मैं क्या मिस करूंगा.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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