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freedom at midnight:निर्देशक निखिल आडवाणी ने कहा आप खुशी से दर्शा सकते हैं नाराजगी और असहमति 

निर्देशक निखिल आडवाणी ने इस इंटरव्यू में फ्रीडम एट मिडनाइट की मेकिंग से जुड़ी चुनौतियों के साथ -साथ यह बात भी कही है कि संविधान असहमति का अधिकार देता है, तो लोग शो के बारे में नेगेटिव भी कह सकते हैं.

freedom at midnight :ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर इन दिनों वेब सीरीज ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’स्ट्रीम कर रही है. यह सीरीज अगस्त 1947 से लेकर जनवरी 1948 के ऐतिहासिक कहानी कहने का दावा करती है.जिसमें भारत के स्वतंत्र होने के कुछ साल पहले  जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और पाकिस्तान के पूर्व गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना जैसी शख्सियतें कैसे भविष्य को लेकर उधेड़बुन में उलझे हुए थे, इसे सात एपिसोड की सीरीज में दिखाने की कोशिश की गयी है. इस सीरीज की मेकिंग और उससे जुड़ी चुनौतियों पर शो के लेखक, निर्देशक और शोरनर निखिल आडवाणी से उर्मिला कोरी की हुई बातचीत के प्रमुख अंश .

ऐसे आया ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ पर सीरीज बनाने का ख्याल

इससे पहले ऐतिहासिक पीरियड ड्रामा ‘रॉकेट बॉयज’ से जुड़े निर्माता निखिल आडवाणी, जो फ्रीडम एट मिडनाइट के निर्माता, लेखक के साथ निर्देशक भी हैं. वह बताते हैं कि रॉकेट बॉयज खत्म हुई थी. इसके बाद सोनी चैनल से जुड़े दानिश और सोगतो मुझसे मिलने आये और उन्होंने कहा कि अब अगला क्या करना है. मैंने बोला, अभी कुछ सोचा नहीं. उन्होंने ही कहा कि फ्रीडम एट मिडनाइट के लिए कुछ करो. जवाब में मैंने कहा, मुझे भी वह किताब बहुत पसंद है, लेकिन उसके राइट्स नहीं मिलेंगे. उन्होंने कहा कि हमने राइट्स ले ली है. मैं बेहद खुश हुआ. मैंने उस वक्त एक बजट बताया. (हंसते हुए) जिसे सुनकर उन्होंने कहा कि हमें चलना चाहिए. मैंने बोला, रुको मिलकर एक बजट तैयार करते हैं. मैं बताना चाहूंगा कि जब मैंने  धर्मा प्रोडक्शन छोड़ा था, उसके बाद मुझे तीन साल तक काम नहीं मिला था. उसके बाद मेरे साथ ये हो गया है कि मैं किसी काम को ना नहीं बोलता हूं.मेरे असिस्टेंट भी मेरे पास कोई फिल्म लेकर आते हैं, तो मैं उन्हें मना नहीं करता हूं. मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे मेरे असिस्टेंट ने ही बनायी थी.

पोस्ट प्रोडक्शन में लगा  एक साल का वक्त

साल 2020 से इस सीरीज पर काम शुरू हो गया था. एक साल सिर्फ इस सीरीज के पोस्ट प्रोडक्शन में लगे थे. आमतौर पर किसी प्रोजेक्ट के पोस्ट प्रोडक्शन में तीन महीने लगते हैं, लेकिन ऐतिहासिक शो होने की वजह से इसमें एक साल लगे. इस दौरान शो की राइटिंग भी चल रही थी. इस बात की पुष्टि करते हुए निर्देशक निखिल आडवाणी कहते हैं कि मैं बताना चाहूंगा कि बहुत बारीकियों के साथ हमने पोस्ट प्रोडक्शन किया है. वह दौर ऐसा था, जिसमें पत्रों के जरिये ही सभी बातों को रखा जाता था. हमें वो ऐतिसाहिक दस्तावेज कोई दे नहीं सकता था, इसलिए हमने ऐसे लोगों को ढूंढा, जो उनकी राइटिंग की हूबहू कॉपी कर सकें. फिल्म की शूटिंग की भी अपनी चुनौतियां थीं, चूंकि 1947 का वक्त था, इसलिए हमें बैल गाड़ियों को दिखाना था. उसमें एनिमल राइट्स वाले आ गये. फिर उन्हें समझाना पड़ा कि भाई वो वक्त वैसा था, तो हमें बैलगाड़ियों को दिखाना ही होगा. बहुत ही बारीकी का ध्यान रखा गया.राकेट बॉयज की शूटिंग में हमने उन्ही विदेशी एक्टर्स को चुना , जो उस वक्त गोवा सहित भारत के दूसरे जगहों में थे,लेकिन इस सीरीज के सारे विदेशी एक्टर्स इंग्लैंड से हैं.

सीरीज के लिए मुंबई के दहिसर में बनाये गये थे 86 सेट 

इस ऐतिहासिक पीरियड ड्रामा वाली कहानी को पर्दे पर दर्शाने के लिए मुंबई के दहिसर में एक स्टूडियो में 86 सेट्स बने थे. पूरे सेट में घूमने के लिए 2 घंटे जाते थे. इसमें लाहौर स्ट्रीट, कोलकाता स्ट्रीट, गांधीजी का घर, सरदार के घर के अलावा कांग्रेस ऑफिस, मोतिहारी कोर्ट, ऑल इंडिया रेडियो, वायसराय हाउस सब कुछ था. यह जानकारी देने के साथ निखिल  बताते हैं कि दहिसर में सेट ही सेट थे, इसलिए कोई भी बड़ी गाड़ी लेकर वहां नहीं जा सकता था. बाइक और छोटी कार से ही आप शूट पर जा सकते थे. निखिल आगे बताते हैं कि हमने यहां 60 दिनों की शूटिंग की. इसके बाद 60 दिन रियल लोकेशन पर भी शूट किया था, जिसमें यूके, यूएस के अलावा पटियाला, पटौदी, रेवाड़ी, दिल्ली, जयपुर, जोधपुर जैसी जगहों के रियल लोकेशंस शामिल थे. 

 कास्टिंग डायरेक्टर के साथ प्रोस्थेटिक डिपार्टमेंट भी जुड़ा था कास्टिंग से

 निखिल आडवाणी बताते हैं कि मैं कई दशकों से इंडस्ट्री में हूं, लेकिन यह पहला मौका है, जब कलाकारों के चयन के दौरान मेरे साथ मेकअप मैन भी थे. जगदीश दादा हमारे हेयर मेकअप और प्रोस्थेटिक के डिपार्टमेंट के हेड हैं. कास्टिंग के दौरान मैंने उन्हें अपने बगल बिठाया था और उनसे हर बार पूछा था कि क्या यह इंसान गांधी बन सकता है. क्या इसे पटेल बना सकते हैं. सिर्फ एक की कास्टिंग के वक्त उन्होंने मुझे साफ कह दिया था कि बाकी सबको मैं कुछ ना कुछ करके दूंगा, लेकिन नेहरू जी की जो नाक है, मुझे वह किरदार में चाहिए. नाक को मैं बढ़ा सकता हूं, छोटा नहीं कर सकता हूं. वैसी नाक वाला एक्टर ढूंढने में हमें समय लगा. यही वजह है कि सिद्धांत की कास्टिंग सबसे आखिर में हुई. वैसे इस सीरीज में आपको बहुत ही अनयूजवल कास्टिंग देखने को मिलेगी. राजेंद्र चावला कमाल के एक्टर हैं. लंबे अरसे से वह इंडस्ट्री में सक्रिय हैं. मुझे यकीन है कि जब लोग फ्रीडम एट मिडनाइट में सरदार पटेल के तौर पर उनके काम को देखेंगे, तो चकित हुए बिना नहीं रहेंगे. वैसे मैंने कास्टिंग इसलिए भी अनयूजवल की है, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि डेढ़ साल तक मेरे एक्टर इस प्रोजेक्ट के अलावा कुछ और प्रोजेक्ट करें. मैंने अपने कास्टिंग डायरेक्टर कविश सिन्हा को पहले ही बोल दिया था कि मैं नहीं चाहूंगा कि मेरा गांधी, मेरा नेहरू या सरदार पटेल किसी और फिल्म में कुछ छिछोरा काम करें. इन किरदारों को उन्हें पूरे डेढ़ साल तक जीना है. 

आप खुशी से दर्शा सकते हैं नाराजगी और असहमति 

निर्देशक निखिल आडवाणी कहते हैं कि इस सीरीज की रिलीज के बाद मुझे पता है कि कई लोगों को बहुत कुछ नहीं पसंद आयेगा. लोग कहेंगे कि मैंने ये गलत दिखाया है. ये मैंने क्यों नहीं दिखाया.मैंने इस पक्ष की अनदेखी की है. मुझे उसको वैसे दिखाना चाहिए था.  मैंने सिनेमैटिक लिबर्टी लेते हुए पूरी विश्वसनीयता के साथ हमारे इतिहास के सबसे ड्रामेटिक अध्याय को सामने लाया है. किसी नेता की छवि को सुधारना नहीं चाहता हूं. उनके किसी फैसले को सही नहीं बता रहा हूं, लेकिन किन हालात में उन्हें लिया गया था, मैंने उसे दिखाने की कोशिश की है. जहां तक असहमति की बात है, यह हमारे उन्हीं नेताओं के द्वारा दिया गया संविधान का हमें अधिकार देता है, तो आप खुशी से नाराजगी या असहमति दर्शा सकते हैं.


Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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