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Rajshri Deshpande :अभिनेत्री राजश्री देशपांडे ने किया खुलासा कि वह भी छेड़छाड़ का हुईं हैं शिकार

राजश्री देशपांडे ने इस इंटरव्यू में बताया कि लघु फिल्म गुदगुदी दर्शकों को इतना प्रभावित करें कि वह सोचें कि दुनिया किस दिशा में जा रही है. महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है और हमारे समाज में मानवता का मूल्य क्या है.

rajshri deshpande: ट्रायल बाय फायर ,सेक्रेड गेम्स और एंग्री इंडियन गॉडेस जैसे बेहतरीन प्रोजेक्ट्स के लिए अभिनेत्री राजश्री देशपांडे जानी जाती हैं.इनदिनों वह लघु फिल्म गुदगुदी को लेकर सुर्ख़ियों में है.राजश्री बताती हैं कि मुझे काम करने का बहुत शौक है. खासकर अच्छे निर्देशक को और अच्छी कहानियों के साथ. जब भी मुझे यह मौका मिलता है. फिर चाहे वह 1 मिनट की फिल्म हो या 5 घंटे की वेब सीरीज.मुझे फर्क नहीं पड़ता है और यह लघु फिल्म महिला सुरक्षा पर है, जो मौजूदा दौर की सबसे बड़ी जरुरत है.उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

लघु फिल्म गुदगुदी की कहानी क्या है ?
हमारी फिल्म एक दंगे के दौरान एक मां और उसकी बेटी के बचने की कहानी है. यह एक संघर्षपूर्ण स्थिति थी जहां इन दोनों महिलाओं के लिए सुन्न रहना ही जीवित रहने का एकमात्र तरीका था. हालाँकि जब हम कहते हैं कि गुदगुदी का मतलब गुदगुदी करना है, तो हम अक्सर इसके साथ हँसी की गुदगुदी जोड़ते हैं.इस फिल्म के साथ हम आपके दिमाग को गुदगुदाने और आपकी आँखें खोलने की कोशिश कर रहे हैं, एक असाधारण परिस्थिति में एक महिला के साथ क्या होता है. यह फिल्म इसी को दिखाती है.यह औरत के नजरिए से कई कहानी गई है. ह्यूमैनिटी के नाम पर यह सबसे बड़ा कलंक है कि औरतें सुरक्षित नहीं हैं.यह फिल्म इस मुद्दे को सामने लाती है.

यह फिल्म गुजरात दंगों में औरतों के साथ हुए शोषण को सामने लाती है ?
यह फिल्म गुजरात दंगों के बैकड्रॉप पर है,लेकिन अगर आप गौर करेंगी तो पाएंगी कि कोई भी मुसीबत हो.फिर चाहे वह भूकंप हो, दंगे हो या फिर कुछ और.उन सभी में सबसे बुरी तरह से औरतों को ही हैंडल किया जाता है. आज ऐसा दिन आ गया है कि आप महिला सुरक्षा को लेकर प्रोटेस्ट करने गए हैं और वहां भी आप मोलेस्टेशन से नहीं बच पाती हैं.मोलेस्टेशन का दर्द तो हर महिला ने अपनी जिंदगी में सहा ही होगा.मैं खुद जब टीनएज में ट्रेन या बस में कई बार मोलेस्ट हुईं हूं.गंदे – गंदे कमेंट्स को भी झेला है.मुझे लगता है की हम औरतों को चुप नहीं बैठना है, बल्कि लड़ते रहना होगा तो ही हालात बदलेंगे.मैं महाराष्ट्र के अपने गांव में एक एनजीओ से भी जुड़ी हूं.पॉक्सो के केस भी सामने आते हैं.एक बार १३ साल की बच्ची के साथ रेप हुआ था. कई बार मुझसे कहा जाता है कि पुलिस स्टेशन मत जाओ.कोई सुनेगा नहीं. कुछ नहीं होगा,लेकिन मैं जाती हूं. हमें यह बात समझनी होगी और एकजुट होकर काम करना होगा.चुप बैठने से हालात और बदतर हो जाएंगे.

आपके अनुसार इस लघु फिल्म की यूएसपी क्या है?
यूएसपी इसकी कहानी और यथार्थवाद है, जिसे हम संवेदनशील तरीके से फिल्म में दिखा रही है,निर्देशक अभिरुप बासु के विजन और प्रस्तुति की तारीफ़ करनी होगी.

आपकी यह लघु फिल्म ओडेन्स सहित कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जा रही है, क्या अवार्ड जीतने की भी उम्मीद है ?
मेरे दो पसंदीदा गाने हैं – रहे ना रहे हम, महका करेंगे और मेरी आवाज ही पहचान है, तो यही बात है, लोगों को मेरा काम याद रखना चाहिए, मैं स्क्रीन पर जो किरदार निभाती हूं वह याद रखना चाहिए, चाहे उन्हें राजश्री याद हो या नहीं, उन्हें मेरा काम, मेरी फिल्में, मेरे प्रयास याद रहेंगे.यह मेरे लिए सबसे बड़ी मान्यता है. अवार्ड्स के बारे में सोचती नहीं हूं.

आपने ज्यादातर समय गंभीर किरदार निभाए हैं, क्या आप उस छवि को तोड़ना चाहेंगी?
अगर कोई है जो मुझे कॉमेडी या रोमांटिक फिल्म ऑफर करना चाहता है, तो मैं इसके लिए तैयार हूं.निजी जिंदगी में मैं बहुत ही खुशमिजाज इंसान हूं. मैं ही पार्टी की शुरुआत करती हूं , जोर से हंसने वाली और सभी का मनोरंजन करने वाली हूं. मेरी माँ कहती रहती हैं कि घर में तुम इतनी मज़ाकिया हो, फिर भी हर समय इतने गंभीर किरदार क्यों निभाती हो .अब तक मुझे इसी तरह की भूमिका की पेशकश की गई है, लेकिन मैं इस छवि को तोड़ना चाहती हूं और नई चीजें आजमाना चाहती हूं. वैसे हमारी इंडस्ट्री में लोग जल्दी से आपको एक खांचे में डाल देते हैं. इस तरह के किरदार कर रही है तो यही करेगी.

फायर में अपने किरदार के लिए आपने अवार्ड भी अपने नाम किए हैं, कितने चैलेंजिंग किरदार आपको ऑफर हो रहे हैं?
मैं कहूंगी कि अभी भी गहराई में औरतों के लिए सशक्त किरदार बहुत कम लिखे जाते हैं और फिर उन्हें पहले स्टार्स को ऑफर कर दिया जाता है. एकदम बाद में हम तक यह पहुंचता है. हमारे यहां बहुत अच्छे-अच्छे एक्ट्रेसेज है. लेखकों को ऐसे किरदार ज्यादा से ज्यादा लिखनी चाहिए और निर्माता को उन्हें प्रोड्यूस करना चाहिए,तो ही सभी को बराबर का मौका मिलेगा.

ओटीटी ने क्या संघर्ष को कम नहीं किया है?
शुरुआत में ओटीटी ने बहुत अच्छा काम किया है. मैं फ्यूचर को लेकर भी बहुत ही उम्मीदें रखती हूं. इस बात को कहने के साथ मैं यह भी कहूंगी कि मौजूदा दौर में व्यूरशिप और स्टार सिस्टम ओटीटी में भी हावी हो रहा है. जो हम जैसे कलाकारों के लिए थोड़ा मुश्किल हो जाता है ,क्योंकि हम क्राफ्ट के अलावा बाकी चीजों में ध्यान नहीं देते हैं. वैसे कुछ निर्देशक होते हैं, जिन्हे स्टार्स और फॉलोअर्स से मतलब नहीं है. उन्होंने जो किरदार लिखा है. वह पर्दे पर कौन सबसे सही ढंग से निभा सकता है. उनके लिए यह बात सबसे ज्यादा मायने रखती है,लेकिन यह संख्या कुछ ही है.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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