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रामलीला के लिए भंसाली ने एक भिखारी से खरीदी थी शॉल, Heeramandi की मेकिंग भी है काफी दिलचस्प, कॉस्ट्यूम डिजाइनर चंद्रकांत सोनावणे ने किया खुलासा 

Heeramandi: संजय लीला भंसाली के साथ उनकी फिल्म गोलियों की रासलीला से बतौर कॉस्ट्यूम डिजाइनर जुड़े चंद्रकांत सोनवणे आज रिलीज हुई वेब सीरीज हीरामंडी द डायमंड बाजार का भी अहम हिस्सा हैं. उर्मिला कोरी से उन्होंने इस सीरीज की मेकिंग और उससे जुड़े चुनौतियों पर बात की.

Heeramandi: हिंदी सिनेमा के महान फिल्मकारों में शुमार संजय लीला भंसाली की पहली वेब सीरीज हीरामंडी द डायमंड बाजार आज से स्ट्रीम करने जा रही है. सीरीज के कॉस्ट्यूम डिजाइनर चंद्रकांत सोनावणे  इसे संजय लीला भंसाली का अब तक का सबसे बेहतरीन काम करार देते हैं , वह बताते हैं कि हीरामंडी की यह दुनिया सिर्फ भारतीय ही नहीं विदेशी फिल्मकारों को भी प्रेरित करेगी. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत 


हीरामंडी की दुनिया को परदे पर जीवंत करने में होमवर्क क्या रहा  ?

सर के साथ मैं १३ सालों से काम कर रहा हूँ.मैं उनके साथ गोलियों की रासलीला से हीरामंडी तक हर प्रोजेक्ट से जुड़ा हूँ .मैं बताना चाहूंगा कि सर के पास अपना होमवर्क होता है , लेकिन वो अपना होमवर्क शुरुआत किसी को देते नहीं है.वो सिर्फ इतना बताएंगे कि ये पाकिस्तान की एक जगह है. इस पर आप सोचकर आओ। १९४० से १९४६ के बीच का दौर रहेगा.इतना ही ब्रीफ आपको मिलता है.इस ब्रीफ पर आपको हर एंगल से सोचकर जाना पड़ता है .अगर सर ने बोला कि ये रंग क्यूं या ये सिलवेट क्यों ,तो आपको उसकी वजह पता होनी चाहिए। वहां का रहन – सहन सब कुछ.अगर नाम गरारा है तो कैसे होना चाहिए.उसका फैब्रिक वही क्यों. ये सब पहलुओं पर आपके पास पूरा विवरण होना चाहिए. ऐसा नहीं कि लाल अच्छा लग रहा था या पीला तो ले लिया. ये सब होने के बाद फिर वो अपना हुकुम का इक्का निकालेंगे और बोलेंगे . मैं ये सोच रहा हूँ.  फिर आपको एक डायरेक्शन दिखाएंगे कि इस लाइन में जाना है और फिर आपको उस हिसाब से काम को अपने मोड़ना होता है.

हीरा मंडी में आपके साथ हरप्रीत और रिंपल भी जुड़े हुए हैं, तो  कॉस्ट्यूम में क्या अलग-अलग  भागीदारी रही?
हीरा मंडी में जो पांच अभिनेत्रियां हैं और जो तीन मेल लीड है, इन आठ लोगों के कपड़े उन्होंने बनाए हैं. मैंने बैकग्राउंड के सभी आर्टिस्ट के कपड़े डिजाइन किए हैं इसके अलावा मैंने सोनाक्षी के भी कपड़े बनाए हैं. मनीषा मैम  के भी कपड़े मैंने बनाए हैं.मैंने सेट के परदे भी बनवाएं हैं. कस्टम में फुटवियर भी आता है. उस दौर के फुटवेयर्स को दिखाने लिए जयपुर और पंजाब के कई चक्कर काटने पड़े क्यूंकि वहां पर अभी भी पंजाब के लाहौर से मिलता जुलता कुछ है गुजरात के कच्छ में भी

कॉस्ट्यूम पर काम कब से शुरू हो गया था ?

 भंसाली सर के काम करने का तरीका अलग होता है पहले  सेट बनेगा, फिर सर सेट देखेंगे.  सेट में सर कुछ बदलाव करेंगे.उसके बाद हमारा काम शुरू होगा.सर सेट देखने के बाद कपड़ों का फैब्रिक तय करते हैं. वो फैब्रिक को सेट पर लगाकर देखेंगे, फिर किसी की बॉडी पर और फिर तय करेंगे कौन सा रंग होगा.सकल बन गाने में सभी लोगों ने पीले रंग के ड्रेसेज पहने हुए है.उस गाने के बैकग्राउंड डांसर्स पर सर ने बहुत मेहनत  करवाया था. उन्होंने साफ़ कहा था कि हर एक डांसर के कपड़ों का घेरा एक ही होना चाहिए .अगर डांस करते हुए घूमें तो एक सा फॉल  सभी कपड़ों का आना चाहिए.सारे पीले रंग हो ,लेकिन शेड्स और डिज़ाइन  एक दूसरे से अलग हो. कोई प्रिंटेड हो कोई सीक्वेंस है.आमतौर पर क्या होता है कि जब आप डांसर के कपड़े बनाते हैं, एक बना लो 100 उसी हिसाब से बना लो.भंसाली कर के साथ ऐसा नहीं है यहां पर एक बैकग्राउंड डांसर का कपड़ा दूसरे से बिल्कुल अलग होना चाहिए.जहां तक मेरे काम की शुरुआत की बात है तो मैं इस पर तीन साल से काम  कर रहा हूँ. मैंने १० हज़ार से ज़्यादा ड्रेसेज बनायीं है.मेरी टीम में १० अस्सिटेंट , छह इंटर्न और १०० ड्रेसमैन थे. 


आपके लिए सबसे मुश्किल किस  सीक्वेंस की कॉस्ट्यूम डिजाइनिंग करना था?
रिचा चड्ढा का जो फ्यूनरल वाला सीन है, वह सीन बहुत ही मुश्किल क्योंकि बहुत ही इंटेंस था.रात का समय है ,सीन में 500 औरतें चाहिए थी ब्लैक कपड़े पहने हुए, जब वह ब्लैक मांगते हैं तो ब्लैक के जितने भी शेड्स होते हैं, मैं वह सब लेकर जाता हूं. उसके साथ ब्लू और ग्रीन के भी सारे शेड्स ले जाने पड़ते हैं. मैरून  भी क्योंकि वह कब क्या चुन लें किसी को पता नहीं.उस सीन के लिए उन्होंने जो कलर चुनें। मैं 8 दिन तक उसकी सैंपलिंग ही कर रहा था कि कलर कैसे आएगा. आठ दिन पूरे गए थे तब जाकर कपड़ों पर उनके पसंद का सारा कलर आ पाया था.कलर का शेड्स कई बार कपडे पर आना आसान नहीं होता है. उस सीन के लिए बहुत मेहनत लगी थी ,जब उन्होंने सेट के साथ कपडे को  लगाकर हमको दिखाया तब हमको अपनी मेहनत और उनके विजन के बारे में समझ आया कि सर किस  बारीकी में जाकर सोचते हैं.

भंसाली सर को किसी खास फैब्रिक या डिजाइन से लगाव है?
सर को हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट चीजें बहुत पसंद है. मशीन वर्क या पॉलिएस्टर की कपडे वाली चीज बिल्कुल पसंद नहीं है. साड़ी जो हम हाथ से बुनाई करते हैं और जो मशीन से दोनों में से उनके प्राथमिकता हमेशा ही हाथ से बनी साड़ी की ही होती है. उनके कॉस्ट्यूम में नेचुरल फैब्रिक और  नेचुरल डाई का वह  इस्तेमाल करना पसंद करते हैं.बताना चाहूंगा रामलीला के वक्त जब गुजरात में वह  घूम रहे थे,तो सड़क के किनारे एक भिखारी बैठा हुआ था. वह भिखारी एक कपड़े की शाल पर बैठा हुआ था. सर को वह कपड़ा बहुत पसंद आ गया और हमने वह कपड़ा भिखारी से खरीद लिया था.वह शॉल फिल्म में हमने सुप्रिया पाठक के किरदार को पहनाया था.वह शॉल संजय सर के पसंदीदा कॉस्ट्यूम में से है. 

भंसाली सर अपनी  फिल्मों के कॉस्ट्यूम टीवी वालों को भी नहीं देते नहीं है, इसके पीछे की उनकी सोच क्या है?
सर अपने फिल्मों की हर चीज से बहुत ही अटैच रहते हैं. कई बार अच्छे पैसों के भी ऑफरआते हैं , लेकिन सर  कह देते हैं कि यह मेरे बच्चे हैं और मेरे साथ ही रहे तो अच्छा है.वैसे वह अपनी चीजों का इस्तेमाल फिर से अपनी नई फिल्मों में करते हैं. गोलियों की रासलीला में इस्तेमाल हुए कई कॉस्ट्यूम का इस्तेमाल बाजीराव मस्तानी में हुआ है. हीरा मंडी में बाजीराव मस्तानी के कुछ शॉल जिन्हें दीपिका और रणवीर सिंह ने पहना था इस्तेमाल हुआ है.पद्मावत में शाहिद के पगड़ी के कपड़ों का इस्तेमाल हीरा मंडी में भी हुआ है. उनके कॉस्ट्यूम और  सेट से कोई चीजों उन्हें बहुत ज्यादा पसंद आती है तो वह उसे अपने ऑफिस में रख लेते हैं और फिर अपनी आनेवाली फिल्मों में उनका इस्तेमाल करते हैं. वह अपने हर सेट को घर की तरह सजाते हैं ,जहाँ कैमरा नहीं पहुँचता है. वह वहां भी  हर एक कॉर्नर पूरी तरह से डिजाइन करके रखते हैं. सर अक्सर सेट पर समय बिताते हैं. कई बार शूटिंग खत्म हो जाती है, लेकिन वह फिर भी अकेले एक से 2 घंटे रुक जाते हैं. इसके अलावा जब भी कोई सेट टूटने वाला है ,तो सर बहुत ज्यादा इमोशनल हो जाते हैं और वहां वह अकेले में कई घंटे वहां रहते हैं.पूरी  बारीकी के साथ वह फिर से हर चीज़ को देखते हैं , जैसे उन्हें फाइनल गुडबाय कहना होता है.

 आपका बैकग्राउंड क्या रहा है और  किस तरह से फैशन डिजाइनर बनने का ख्याल आया ?

मैं बहुत ही मिडिल क्लास फैमिली से हूं. महाराष्ट्र के जालना जिला में मेरा छोटा सा गांव है.मेरे पिता आज भी खेती करते हैं. मैं जब नौवीं  क्लास में था, तब मैंने भानु अथिया जी का एक इंटरव्यू पढ़ा था. इस वक्त मुझे मालूम पड़ा था कि  फिल्मों में कॉस्टयूम डिजाइनिंग करके भी कुछ होता है. उसके बाद से ही मैं लोगों को बोलने लगा कि मुझे फैशन डिजाइनर बना है.मैं जिस गांव से हूं, वहां पर फैशन डिजाइनिंग का कॉन्सेप्ट आज भी लोगों के बीच पॉपुलर नहीं है. मेरे फिल्मों में आने के बाद से भले ही कुछ लोग जानने लगे हैं. लेकिन मेरे वक्त ऐसा कोई कैरियर है. किसी को पता नहीं था. गर्मियों की छुट्टी में मैं एक जगह पर पैसों के लिए  काम करने जाता था .वहां का जो मालिक था, उन्होंने बताया कि उनकी बेटी भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने वाली है. उनसे मैंने पूरी जानकारी ली और पुणे के एक कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज आने के बाद लगा कि यह दुनिया तो मेरे लिए नहीं है क्योंकि मैं गांव से आता था और मेरे कपड़े उस दुनिया से मैच नहीं करते थे. कई लोगों ने सलाह दी कि तू  इसके लायक है नहीं है.मेरी अंग्रेजी भी अच्छी नहीं थी ,लेकिन मैं वहां की टीचर्स का शुक्रिया अदा करूंगा उन्होंने मुझे बहुत सपोर्ट किया. उन्होंने कहा कि जो भी तुम्हारे सवाल रहेंगे तुम हिंदी में भी पूछ सकते हो.उनकी मदद से और अपनी मेहनत से मैं अच्छा करने लगा.

पहला मौका कब मिला था?
मैं कॉलेज में था. मेरी एक ईरान की क्लासमेट थी.उस वक्त वह एक इंडो ईरानी फिल्म दीवाने इश्क से जुड़ी थी. कॉलेज में मेरा प्रोजेक्ट, मेरा डिजाइन, मेरा सबमिशन बहुत अच्छा था.जिस वजह से उस लड़की  मुझसे मदद मांगी थी. मैंने कहा क्यों नहीं. मुझे फैशन डिजाइनिंग करना था लेकिन उसके बाद क्या कैसे होगा. मुझे यह पता नहीं था. ऐसे में फिल्मों में जाना मेरे लिए बहुत बड़ा मौका था. उसने कहा कि पैसे नहीं मिलेंगे सिर्फ खाने को मिलेगा. मैंने बिना सोचे हां कह दिया. शिमला  में फिल्म की शूटिंग हुई थी. वहां से आने के  तीसरे दिन ही मुझे एक मराठी फिल्म मिल गई.काम से काम मिलता चला गया.मैंने पुणे में दो सालों तक मराठी फिल्मों के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइनर का काम किया..


संजय संजय लीला भंसाली के प्रोडक्शन हाउस से किस तरह से जुड़ना हुआ था?
पुणे में मराठी फिल्मों में काम कर रहा था. उसी वक़्त मेरी एक सीनियर क्लासमेट ने मुझे बताया कि मैक्सिमा बसु करके एक फैशन डिजाइनर है, जो संजय लीला भंसाली की फिल्म गोलियों की रासलीला में काम कर रही है. उसे असिस्टेंट की जरूरत है.मैंने बोला भंसाली सर का प्रोजेक्ट है इसके लिए मैं सब कुछ छोड़ कर आ सकता हूं और मैं पुणे से मुंबई पहुंच गया, लेकिन पहले ही दिन बोल दिया गया था कि तुम इस काम के लिए अच्छे नहीं हो. एक दिन में आप कैसे किसी को जज कर सकते हो. केडिया , कच्छी  , मिरर वर्क  यह सब नाम मेरे लिए नया था , क्योंकि मैंने इस पर कभी काम नहीं किया था. आप अचानक से बोल दो कि मुझे कच्छी वर्क दे दो, तो मैं कहां  दे पाऊंगा. आपको बताना पड़ेगा कि ये कच्छी  वर्क है. उन्होंने कहा कि तुम्हें बताने का मेरे पास समय नहीं है और मैं तुम्हें कहीं और भेज भी नहीं सकती हूँ क्योंकि मुंबई में काम करने के तुम लायक नहीं हो। मैंने उन्हें कहा कि मैं मुझे 8 दिन दे दीजिए अगर 8 दिन के बाद भी आपको लगता है कि मैं इस काम के लिए नहीं हूं,तो मैं चला जाऊंगा. वैसे उन्होंने पहले से तय कर दिया था कि मुझे निकालना है क्योंकि कोई मुझसे बात नहीं करता था कोई कुछ काम नहीं देता था. मैं बस इधर-उधर घूमता रहता था. मैंने क्या किया कि जो टुकड़े पड़े रहते थे उनको मिलकर मैं टेलर से ब्लाउज बनवाने लगा. मुझे अभी भी याद है संजय सर को रिचा चड्ढा जी के किरदार के लिए  ब्लाउज का डिजाइन देखना था.डिजाइनर बाहर में कहीं वह ब्लाउज लेने गयी थी. उन्हें देर हो गयी थी। सेट पर वह  जैसे ही पहुंची उन्होंने मुझे देखते ही अपना सारा गुस्सा मुझ पर उतार दिया. तुम अपने आप को क्या समझते हो. निकल जाओ यहां से  और मेरे हाथ से  ब्लाउज लेकर सबके सामने उन्होंने फेंक दिया. इतने में सर आ गए और  डिजाइनर ने जो बाहर से ब्लाउज  लाया था. उसे सर को दिया सर ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं चाहिए था. यह बोलते बोलते उनकी नजर नीचे फेंके हुए मेरे द्वारा बनाए गए  ब्लाउज पर गई और उन्होंने कहा कि बेबी  मुझे ऐसे ही ब्लाउज चाहिए,जो मैं दीपिका को दे सकता हूं.मेरे डिजाइन किए हुए ब्लाउज का सिलेक्शन हो जाने के बाद वह आप चाह कर भी मुझे निकल नहीं सकती  थे. उसे एक फैक्टर की वजह से मैं रह गया और 2 महीने के अंदर में रामलीला का इंडिपेंडेंट  कॉस्टयूम डिजाइनर बन गया था.मैं जहां से आया हूं वहां से आकर मैं गिव अप नहीं कर सकता हूं. मेरा परिवार किसान का परिवार है.हमारे परिवार की आमदनी का एकमात्र जरिया ,मेरी पढाई के लिए मेरे पिता को आधी जमीं बेचनी पड़ी थी. फैशन डिजाइनर कोर्स का नाम उन्होंने सुना नहीं था, तो मैं हार नहीं मान सकता था. मैंने अपने पिता की वह जमीन फिर से खरीदकर उन्हें दे दी है.  उनके लिए घर भी गांव में बनवा दिया. —

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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