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Dhadak 2 Movie:सिद्धांत चतुर्वेदी ने माना धड़क 2 कैरियर की सबसे मुश्किल फिल्म 

एक्टर सिद्धांत चतुर्वेदी ने इस इंटरव्यू में बताया है कि धड़क 2 की शूटिंग के दौरान वह एक बार फूट फूट कर रोए भी थे.

dhadak 2 movie :धड़क 2 सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी हैं. अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी इस फिल्म में नीलेश अहिरवार की भूमिका से समाज में फैले जातिगत भेदभाव की कहानी को सामने लाया है. सिद्धांत इस फिल्म और अपने किरदार को अब तक का सबसे चुनौतीपूर्ण भूमिका करार देते हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश 

धड़क से धड़क 2 कितनी एक सी और अलग है ?

मैं इसे आध्यात्मिक सीक्वल कहता हूं, कहीं न कहीं सार वही है,लेकिन दुनिया अलग है और किरदार भी. वह रंगों से भरी फिल्म थी. यह अधिक गंभीर और गहन है, इसका लहजा पूरी तरह से अलग है.हम चाहते थे कि यह पहले वाले से बेहतर हो और इसका प्रभाव दोगुना हो। मुझे लगता है कि इस फिल्म में वह है। मुझे विश्वास है कि जब आप फिल्म देखेंगे तो आप निश्चित रूप से प्रतिक्रिया देंगे और आपकी धड़कनें बढ़ जाएंगी.

नीलेश के किरदार में जाने का आपका क्या होमवर्क था ?

मैं किरदार के लिए निर्देशक के विज़न के साथ चलता हूं, लेकिन परफॉर्म करते समय अपने अनुभवों का भी इस्तेमाल करता हूं. मैं स्क्रिप्ट कई बार पढ़ता हूं और किरदार को अच्छी तरह समझने की कोशिश करता हूं। मैं यह समझने के लिए तैयार रहता हूँ कि निर्देशक क्या चाहते हैं और हम खूब चर्चा करते हैं. मेरा होमवर्क सिर्फ़ मेरी रिहर्सल के साथ खत्म नहीं होता. मैं अपने निर्देशक के प्रति पूरी तरह समर्पित हूं. यह सिर्फ़ इसी फ़िल्म के साथ नहीं है, बल्कि मैंने अपनी पहली फ़िल्म गली बॉय या गहराइयां से ही यह तरीका अपनाया है। मैं अपनी सारी झिझक घर पर छोड़ देता हूं  और भूल जाता हूं कि मैं कौन हूं. जब मैं सेट पर होता हूं , तो सिर्फ़ किरदार पर ध्यान देता हूं । मैं यह नहीं सोचता कि कौन इस पर टिप्पणी करेगा.

आपने बताया यह इंटेंस फिल्म है शूटिंग में भी क्या इमोशनल हुए ? 

हां ,इस फिल्म की शूटिंग भी बहुत इमोशनल कर जाती थी।  एक बार तो वह इस कदर हम इमोशनल हो गए थे कि  रियल में भी रोने लगे थे. मुझे याद है एक सीन है.कॉलेज में मेरे पिता और मेरा। विपिन सर फिल्म में मेरे पिता का किरदार निभा रहे हैं, हम एक-दूसरे के गले लगे और पैक अप की घोषणा होने पर भी रोए थे । उस सीन ने  हमें बहुत प्रभावित किया। फिल्म देखकर आप समझ जाओगे। मुझे किरदार के बारे में जो पसंद आया, वह था उसकी आत्म शक्ति थी उसके  सहनशीलता का स्तर शानदार था। मुझे लगता है कि उन दिनों लोगों की सहनशीलता का स्तर बेहतर था.

आप खुद एक पंडित परिवार से हैं, आपने अपने होम टाउन बलिया में जातिगत भेदभाव अपने घर में देखा है क्या ?

मेरे दादाजी बलिया में पंडित थे. जब मैं बड़ा हो रहा था, तो मेरे पिता ने मुझे एक कहानी सुनाई थी. हमारे परिवार में मूंछें तब तक नहीं कटतीं थी,जब तक पिता का देहांत न हो जाए, लेकिन  मेरे पिता ने सिर्फ़ स्टाइल के लिए ऐसा किया था. पूरा समुदाय उनसे सवाल करने लगा क्योंकि उनके पिता ज़िंदा थे. मेरे दादाजी ने सभी को बताया कि चूँकि वे मुंबई जा रहे हैं, इसलिए उन्होंने ऐसा किया.

मुझे इससे कोई दिक्कत नहीं है, फिर आप सबको इससे परेशानी क्यों हो रही है?

वे बहुत खुले विचारों वाले थे, उन्होंने कभी भेदभाव में विश्वास नहीं किया और न ही जहाँ हम रहते थे, वहाँ उन्होंने ऐसा होने दिया. मैंने कभी कोई जातिगत भेदभाव नहीं देखा. मैं अब भी वहाँ अपने दोस्तों से मिलने जाता हूँ और मेरे पिता भी.

आपके परिवार नहीं लेकिन आसपास कभी कुछ देखा है ? 

पहले मैं इस बात को नोटिस नहीं करता था,लेकिन इस फिल्म को करने के बाद मैंने नोटिस किया कि अगर आप लंच या डिनर कर रहे होते हैं, तो छोटी जाति के लोग आते हैं लेकिन आपके साथ बैठकर आपकी थाली में नहीं खा सकते हैं।पहले इस बात पर ध्यान नहीं जाता था.

आपने कभी किसी तरह का भेद भाव महसूस किया है ?

इंडस्ट्री में आने के बाद शुरुआत में एक दो बार  महसूस हुआ है. जब मैं कुछ अमीर लोगों के इटालियन मार्बल वाले घर पर जाता था और उनके दरवाजे के बाहर अपने जूते रख देता था। मुझे लगता था कि मेरे जूते इतने साफ़ नहीं हैं कि उनके घर के अंदर जा सके. शुरुआत में कई बार अपने कपड़ों से भी महसूस हुआ है कि यह दूसरों के मुकाबले ज्यादा अच्छे नहीं थे. 

इस फिल्म की कहानी का अहम हिस्सा कॉलेज है, कॉलेज कैंपस में अभिनय का अनुभव कैसा रहा ?

 मैं हमेशा से एक कॉलेज वाली फिल्म करना चाहता था,क्योंकि रियल लाइफ में मैं अपनी कॉलेज लाइफ को कभी एन्जॉय नहीं कर पाया था. मैं ग्रेजुएशन कर रहा था और साथ ही चार्टर्ड अकाउंटेंसी की तैयारी भी कर रहा था. सुबह से क्लासेस करता था, उसके बाद बी.कॉम की क्लास अटेंड करता और शाम को जब टाइम मिलता तो खुद को रिफ्रेश करने के लिए थिएटर चला जाता। मैं कॉलेज फेस्टिवल्स को भी एन्जॉय नहीं कर पाता था. मेरा रूटीन कुछ ऐसा था.वैसे मैं कॉमर्स में था और खूबसूरत लड़कियाँ आर्ट्स कॉलेज में थी.। उस वक़्त इतना अच्छा दिखता  भी नहीं था कि लड़कियां नोटिस कर लें तो मैंने सिर्फ कॉलेज में पढाई की है. 

तो कॉलेज में रोज डे , प्रपोज डे और वैलेंटाइन डे सेलिब्रेट नहीं किया ?

नहीं, जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि  रोमांस के लिए समय ही नहीं था, लेकिन इस साल मेरे पास रिलीज़ के लिए रोमांटिक फिल्मों की एक लम्बी लिस्ट है. धड़क 2, फिर संजय लीला भंसाली निर्मित रवि उदयवार निर्देशित फिल्म, जिसमें मृणाल कुलकर्णी मेरे साथ हैं. मैं विकास बहल निर्देशित फिल्म भी कर रहा हूँ, जिसमें वामिका गब्बी और जया बच्चन मेरे साथ हैं. सभी अलग -अलग तरह की लव स्टोरीज है.

आपके आदर्श कौन रहे हैं ?

मेरे पिताजी मेरी प्रेरणा रहे हैं. वे बलिया से मुंबई काम करने आए थे. उन्होंने मेरे सपनों को पूरा करने में मेरा साथ दिया. आज उन्हें मुझ पर गर्व है. उनकी उम्र बढ़ रही है और मैं वह सबकुछ उन्हें दे देना चाहता हूं, जो वह ख्वाहिश रखते हैं. 

क्या गिफ्ट देना पसंद करते हैं ?

जो कुछ भी वह चाहते हैं.  वैसे हम मिडिल क्लास परिवार से हैं तो अभी भी बहुत महंगी चीजें खरीदना वे लोग पसंद नहीं करते हैं.  एक बार अपनी मां को मैंने एक गुच्ची पर्स उपहार में दिया था और जब उन्होंने उसकी कीमत पूछी तो उन्होंने मुझे उसे वापस करने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि यह कीमत के हिसाब से बहुत छोटा है।इतने में तो वह ढेर सारे पर्स ले आएंगी.

इनदिनों भाषा का विवाद हर तरफ है आपकी इसमें निजी राय क्या है ?

हमारा देश ही एकमात्र ऐसी जगह है. जहां हर दस किलोमीटर पर पानी और भाषा बदल जाती है.इस फ़िल्म में भोपाली भी है. एक अभिनेता होने के नाते, मुझे लगता है कि हमें हर क्षेत्र की भाषाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश करनी चाहिए. मैं सभी भाषाओं का सम्मान करता हूँ. भोजपुरी मेरी मातृभाषा है और मुंबई आने पर मैंने हिंदी सीखी. बाद में मैंने मराठी और अपने दोस्तों से गुजराती, पंजाबी और हरियाणवी भी सीखी.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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