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Heeramandi: संजय लीला भंसाली की क्रिएटिविटी का एक और ग्रांड प्रेजेंटेशन है हीरामंडी

Heeramandi: निर्देशक संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में महिला पात्रों को बहुत सशक्त ढंग से पेश करते हैं. इस सीरीज का तो आधार ही महिला पात्र हैं, जिसे स्क्रीन पर उम्दा अदाकारों ने और खास बनाया है.

Heeramandi: निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली बीते 14 सालों से हीरामंडी की दुनिया को परदे पर साकार करने का सपना देख रहे थे. आखिरकार वेब सीरीज के फॉर्मेट में वह इस मायावी दुनिया को सामने ले आये हैं. आलिशान सेट, खूबसूरत लिबास, उम्दा अभिनेत्रियां, जबरदस्त संवाद, कहानी के साथ बखूबी न्याय करता गीत-संगीत सबकुछ भंसाली की फिल्मों जैसा ही है, लेकिन भव्यता और उससे जुड़ी चमक-दमक स्क्रीनप्ले की खामियों को छिपा नहीं पाई है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि कहानी बहुत ज्यादा खिंच गई हैं और सीरीज की रफ़्तार भी धीमी रह गई है. इन खामियों के बावजूद सीरीज मनोरंजक है, लेकिन मास्टरपीस बनते-बनते रह गई.

जंगे-आजादी में तवायफों के गुमनाम योगदान का दास्तान

आठ एपिसोड में कही गई सीरीज की कहानी की बात करें, तो आजादी के पहले का बैकड्रॉप है. हीरामंडी की तवायफें, जिन्हें लाहौर की रानियां कहा जाता है. उनके हुस्न और हुनर के सामने नवाब भी सिर झुकाते रह हैं. उसी हीरामंडी में मल्लिकाजान ( मनीषा कोइराला) का राज चलता है, लेकिन एक दिन अचानक हीरामंडी में मल्लिकाजान की पुरानी दुश्मन की बेटी फरीदन ( सोनाक्षी सिन्हा) आ पहुंचती है और वह मल्लिकाजान के लिए चुनौती साबित होती है. हीरामंडी पर वह अपना राज चाहती हैं. मल्लिकाजान से क्या फ़रीदन हीरामंडी की रानी का ख़िताब ले पाएंगी. सीरीज की कहानी शुरुआत इससे होती है. कहानी सिर्फ़ इतने भर नहीं है, बल्कि हीरामंडी के बाहर पूरे शहर में भी उथल- पुथल है, क्योंकि ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ भी आज़ादी की लड़ाई अपने चरम पर है, जो कि इस कहानी का अहम प्लॉट आगे जाकर है. इसमें हीरामंडी की तवायफ़ें भी शामिल हो जाती है. यह सब कैसे होता है, इसके लिए आपको सीरीज देखनी पड़ेगी. सीरीज के आखिर में सीक्वल की गुंजाईश को भी छोड़ा गया है.

सीरीज की खूबियां और खामियां

सीरीज की कहानी को आठ एपिसोड में बयां किया गया है. हर एपिसोड को लगभग 45 मिनट से एक घंटे तक की अवधि में कहा गया है. कहानी की शुरुआत में किरदारों के इंट्रोडक्शन वाला सीन थोड़ा कंफ्यूजिंग है, लेकिन एक बार किरदार समझ आने के बाद आप कहानी और किरदार से जुड़ जाते हैं. पहले दो एपिसोड में कहानी एंगेजिंग है, लेकिन आनेवाले पांच एपिसोड तक कहानी खिंच गयी है. छठे एपिसोड के बाद कहानी एक अलग मोड़ ले लेती है कि देश की आजादी में हीरामंडी की तवायफों की कितनी अहम भूमिका थी. उसके बाद कहानी रोचक हुई है. हर महिला किरदार में कुछ ना कुछ है, जो कहानी को आगे बढ़ाने में मदद करता है.

संवाद काफी दमदार

मनीषा और सोनाक्षी के बीच टकराव वाले दृश्य अच्छे हैं. गीत-संगीत की बात करें, तो कसमें खाइयां और आजादी गीत अच्छे हैं. बाकी के गीत जुबान पर भले ही नहीं चढ़ते हैं, लेकिन वह इस सीरीज के विषय के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. सीरीज का बैकग्राउंड म्यूजिक जरूर शानदार है. सीरीज के संवाद किरदारों और उनकी सोच को बखूबी सामने लाते हैं. मर्द वो होता है कि औरत पर नजर भी इज्जत से उठाये, तूने तो हाथ उठा डाला. बगावत की इस आग से हाथ जलेंगे या हवेलियां, जिनकी दुआ कुबूल नहीं होती है, उनकी बद्दुआ जरूर कुबूल होती है. हम तमाशा देखते नहीं दिखाते हैं. समाज औरतों को जायदाद में हिस्सा नहीं देता है, तो तारीख में क्या देगा जैसे संवाद खास है.

भव्यता का दूसरा नाम है संजय लीला भंसाली

संजय लीला भंसाली का दूसरा नाम भव्यता है और उनकी हर फिल्म की तरह उनकी इस वेब सीरीज के हर फ्रेम में भी वह मौजूद है, जिसे दशकों तक याद रखा जाएगा. भंसाली के विजन और उनकी पूरी टीम की मेहनत बधाई के पात्र हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले की खामियों को छिपा नहीं पायी है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. कहानी बहुत ज्यादा खिंच गयी हैं और सीरीज की रफ़्तार भी स्लो है. हीरामंडी की सभी तवायफों का अचानक से आजादी की लड़ाई से जुड़ जाना अखरता है. उसे थोड़े और प्रभावी ढंग से दिखाने की जरूरत थी.

अभिनेत्रियों ने दिखाया अभिनय में दमखम

निर्देशक संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में महिला पात्रों को बहुत सशक्त ढंग से पेश करते हैं. इस सीरीज का तो आधार ही महिला पात्र हैं, जिसे स्क्रीन पर उम्दा अदाकारों ने और खास बनाया है. मनीषा कोइराला इस सीरीज में मल्लिकाजान की भूमिका में दिखी हैं. अभिनय में भी वह मल्लिका ही साबित हुई हैं. मल्लिकाजान के किरदार की अकड़, नफरत, चालाकी, बेबसी हर पहलू उन्होंने हर फ्रेम में जिया है.

सोनाक्षी सिन्हा का पावरफुल अदा

सोनाक्षी सिन्हा ने भी फरीदन की भूमिका में पावरफुल परफॉरमेंस दी है, तो अदिति राव हैदरी और संजीदा शेख भी अपने अभिनय से कमाल कर गई हैं. रिचा चड्ढा का किरदार छोटा है, लेकिन वह अपने किरदार से जुड़े दर्द को कुछ सीन्स में ही प्रभावी ढंग से निभा गई हैं. उनके किरदार को थोड़ा और स्क्रीन स्पेस देने की जरूरत थी. शरमिन को सीरीज में काफी अहम किरदार की जिम्मेदारी मिली है, लेकिन वह जिम्मेदारी के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर पाई है. फरदीन, अध्ययन और शेखर सुमन के लिए सीरीज में करने को कुछ खास नहीं था. पुरुष किरदारों में ताहा शाह अपनी भूमिका में जरूर जमे हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपनी-अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.

वेब सीरीज: हीरामंडी द डायमंड बाजार
निर्माता और निर्देशक: संजय लीला भंसाली
कलाकार: मनीषा कोइराला, सोनाक्षी सिन्हा, रिचा चड्ढा,शमीम शरमिन सहगल,अदिति राव हैदरी,संजीदा शेख, फरदीन खान, अध्ययन सुमन, शेखर सुमन, प्रतिभा रांटा, ताहा शाह
प्लेटफार्म: नेटफ्लिक्स
रेटिंग: थ्री स्टार

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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