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Manwendra Tripathy: महारानी 3 फेम मानवेंद्र त्रिपाठी पर जब एक्टिंग का धुन सवार हुआ था, बेच दी थी मेडिकल की किताबें और…

Manwendra Tripathi अपनी वेबसीरीज महारानी 3 को लेकर खासा चर्चा में हैं. उनका बिहार से खास रिश्ता है.

Manwendra Tripathy: लखनऊ सेंट्रल, अर्जुन पटियाला जैसे फिल्मों का हिस्सा रहे बिहार के गोपालगंज निवासी अभिनेता मानवेंद्र त्रिपाठी बीते एक दशक से अधिक समय से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक खास पहचान बनाने में प्रयासरत हैं. पिछले दिनों आयी वेब सीरीज महारानी 3 में इंस्पेक्टर धरम सहाय की भूमिका के लिए वह चर्चाओं में भी थे. उनकी अब तक की जर्नी, संघर्ष और आनेवाले प्रोजेक्ट्स पर खास बातचीत.


महारानी 3 की रिलीज़ के बाद से संघर्ष कितना आसान हुआ है ?

आसान हुई है या नहीं ये बोलना जल्दीबाजी होगी, लेकिन हां पॉपुलर शो है. ज्यादा से ज्यादा लोग देखते हैं. ज़्यादा लोग देखते हैं ,तो एक एक्टर के तौर पर आपकी पहुंच बढ़ती है. आने वाले समय में संभवत इसका फायदा हो.

ये सीरीज किस तरह से आप तक पहुंची थी ?

इस सीरीज के सीजन 2 में डायलेक्ट और एक्टिंग कोच के तौर पर एक्टर्स को ट्रेनिंग देने के लिए मुझे बुलाया गया था. उस वर्कशॉप में अगर कोई एक्टर नहीं आ पाता था, तो निर्देशक सुभाष कपूर मुझे ही वो डायलॉग पढ़ने को बोल देते थे ताकि सामने वाले एक्टर्स को रिहर्सल के लिए क्लू मिल जाए. उसी समय सुभाष कपूर ने महारानी 2 के लिए मुझे एक रोल भी ऑफर किया , लेकिन मैं वह कर नहीं पाया क्योंकि मेरा एक्सीडेंट हो गया था. वो भी पुलिस वाले का ही किरदार था ,जो दुलारी यादव को पकड़ने जाता है. तीसरा सीजन आया तो फिर मुझे अप्रोच किया गया कि आपके लिए एक किरदार है. आप ऑडिशन भेज दीजिये. मैंने भेज दिया और वो उनको अच्छा लगा और रख लिया. वैसे इस सीजन भी मैं डायलेक्ट कोच के तौर पर भी जुड़ा हुआ था.

चूंकि आप सीजन 2 से जुड़े थे इसलिए सीजन 3 की शूटिंग में आसानी रही?

हां कह सकती हैं. पहले से जानते हैं तो शूटिंग से पहले ये जेहन में चलता है कि कुछ गलती ना हो. थोड़ी गड़बड़ भी हो जायेगी तो मैं दोबारा रिटेक लेने को कह दूंगा. मुझसे परिचित हैं, तो परेशानी नहीं होगी कि अरे कितना टाइम ये ले रहा है. वैसे जब आप मेंटली सहज हो जाते हैं, तो गड़बड़ी होती भी नहीं है. मेरे साथ महारानी 3 की शूटिंग में वही हुआ.
गोपालगंज से अभिनय की जर्नी कैसी शुरू हुई ? गोपालगंज बिहार का एक छोटा सा शहर है. यूपी बॉर्डर के पास है. वहां एक गांव है बौरा, हम वहीं से हैं. बचपन में मैं अरुणाचल प्रदेश पढ़ने चला गया. मेरे बड़े पापा वहीं रहते थे. प्राइमरी एजुकेशन वही हुई. उसके बाद गोपालगंज आकर 10 वीं किया. उसके बाद पटना जाकर मेडिकल की तैयारी में जुट गया. मैंने जब पहली बार मेडिकल का एग्जाम दिया तो मेरा वेटिंग लिस्ट 85 था,लगा कि एक साल और तैयारी करूँगा तो एमबीबीएस कर लूंगा. उसी दौरान मेरा एक मेडिकल के दोस्त को बहुत स्ट्रेस फील हो रहा था. उसने बोला चलो स्ट्रेस दूर करते हैं नाटक देखकर. उसके साथ मैं भी चला गया. मुझे वो जादुई दुनिया लगी.लगा ये अच्छा है करना चाहिए. मैंने थिएटर ज्वाइन ही कर लिया और जो दोस्त था. वो घर गया, तो कभी वापस ही नहीं आया. थिएटर ज्वाइन करने के बाद मैं पढाई भूल गया. मैंने अप्रैल में मेडिकल ज्वाइन किया था. सितम्बर में मैंने सारी मेडिकल की किताबें मैंने पटना के गांधी मैदान में बेच दी. उन किताबों के मुझे चार हज़ार रुपये मिले थे. उस दौरान हिंदी दिवस की वजह से कई प्रकाशन हिंदी किताबें बेच रहे थे. मैंने कई सारी हिंदी की कहानियों और कविताओं की किताबें खरीद ली. मैंने इस दौरान पटना यूनिवर्सिटी में हिंदी ऑनर्स में दाखिला ले लिया था.तब तक घर में किसी को भी पता नहीं था कि मैंने मेडिकल छोड़ दिया. उस दौरान साहित्य का पन्ना अखबारों में आता था , जिसमें नाटक का भी जिक्र होता था. उसमें मेरा नाम था और तस्वीर. जिसके देखकर मेरे माता – पिता को मालूम पड़ा. मेरे पिता ने इसके बाद लगभग सात से आठ सालों तक मुझसे ना के बराबर बात की थी. मैं अपने खानदान में पढ़ने – लिखने में बहुत अच्छा था , तो पिता को उम्मीद थी कि ये इंजीनियर , डॉक्टर या आईएएस बनेगा. मेरे पिता आखिर तक मुझे बोलते रहे कि आईएएस की तयारी कर लें. थिएटर में नाटक करने के अलावा अखबारों के लिए कहानियां और आलेख लिखता था. प्रभात खबर के लिए भी लिखा है. जैसे तैसे खर्च निकल जाता था.

मुंबई आना कब तय किया ?

मुंबई आने का मेरा प्लान नहीं था. मेरा प्लान था कि मैं एनएसडी जाऊंगा. 2007 में वहां मैं गया. मुझे वहां स्कालरशिप मिली थी तो कोई दिक्कत नहीं हुई. तीन साल वहां पढ़ाई करने के बाद मैं वापस थिएटर ही आना चाहता था. मेरा फिल्मों में एक्टिंग को लेकर कोई रुझान नहीं था.एनएसडी के बाद मैं पूरी तरह से थिएटर करने लगा. कोटा , लखनऊ, ढाका से बीजिंग तक , लेकिन उससे मेरी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी. थिएटर में पैसे नहीं थे. तीन चार हज़ार में महीने का खर्च निकालना मुश्किल था. उसके बाद मैंने सोचा मुंबई जाता हूं , जितना मैं डेढ़ महीने में इतनी लंबी यात्राएं करके कमाता हूं. वहां एक दिन में मिल जाते हैं. मैं 2011 के आखिर में पहली बार मुंबई आया था. चार -पांच महीने रहा होऊंगा तो इस शहर की भागदौड़ और भीड़ से मैं डर गया. मुझे पता नहीं था कि कहां ऑडिशन होता है. कैसे क्या होता है. मैंने सोचा मुझसे नहीं होगा. मैं थिएटर ही करूं वही ठीक है. किस्मत से मुझे उसी दौरान मुंबई से एक फिल्म का ऑफर आ गया लेकिन उसी वक़्त मेरे दादाजी गिर गए और वे बिस्तर पर आ गए. उनके लिए करने वाला कोई नहीं था. मिडिल क्लास वाले थे तो नर्स भी नहीं रख सकते थे , तो मैं ही था. मैं वहां 40 दिन था. चालीस दिन के बाद उनकी मौत हो गयी. उसके बाद मैं मुंबई आ गया

मुंबई में दूसरी पारी की शुरुआत कैसी रही थी ?


जिस फिल्म के लिए मुझे बुलाया गया था. 80 प्रतिशत शूट होने के बाद फिल्म बंद हो गयी. उसके बाद मुझे फिल्म बुधिया सिंह में एक छोटा सा रोल मिला. रोल की खास बात थी कि मुझे मनोज बाजपेयी के किरदार को गोली मारना था. मुझे लगा चलो कम से कम लोगों को ये बताऊंगा कि जो लड़का मनोज बाजपेयी को गोली मारता है. वो मैं हूं, लेकिन फिल्म आयी,तो वो भाग एडिट हो गया. थोड़े दिन के बाद मुझे फिल्म लखनऊ सेंट्रल मिली. अर्जुन पटियाला का भी हिस्सा बना. उसके बाद एपिक के शो राजा रसोई से जुड़ा. उस शो की आवाज़ मैं था. वो मेरे मुंबई के खर्च को चलाने के साथ – साथ काफी पॉपुलर भी हुआ. उसके बाद राजा रसोई और अन्य में रणबीर बरार के साथ किया. उसमें मेरे कॉमिक किरदार के लिए मुझे कई टेलीविज़न अवार्ड्स में नॉमिनेशन भी मिला था. ऐसे ही धीरे – धीरे सफर चलता रहा. रहने – खाने की दिक्कत भी साथ – साथ चलती थी. सवाल कई सालों तक बना रहा कि अगले महीने का किराया हो पायेगा या नहीं. मुझे लगता है कि मुंबई में संघर्ष का यही प्रोसेस था.

क्या संघर्ष के इन सालों में लगा नहीं कि अभिनय छोड़ दूं ?

लोग जब अपने आस पास के लोगों को कामयाब होते देखते हैं तो उनको अपनी असफलता और परेशान करने लगती है।लेकिन मुझे ऐसे वाक़ये साहस देते हैं।जब मैं पंकज त्रिपाठी जी को देखता हूँ या पंचायत फेम दुर्गेश को देखता हूँ तो मैं उनकी क़ामयाबी को मोटिवेशन की तरह लेता हूँ कि यह सब लोग कर सकते हैं तो मैं भी कर सकता हूं। मेरा खुद पर भरोसा हमेशा से था।सन 2000 से नाटक कर रहा हूं।कई बार अपने परफॉर्मेंस पर मैंने लोगों खड़े होकर तालियां बजाते देखा है।पैसा कामना मेरा कभी मकसद नहीं था। चाहत हूँ कि कुछ ऐसा कर जाऊं कि लोगों को याद रह जाऊं।मैंने एम ए किया था। पीएचडी का इंट्रेन्स एग्जाम निकाला था। आराम से प्रोफेसर बन सकता था। कइयों ने कहा कर लो।मैंने उनको बोला कि मैंने पीछे जाने के सारे पुल गिरा दिए। मैं पीछे नहीं लौट सकता। अब जो आएगा वह आगे ही आएगा। किताबें और मेरे भाइयों ने इस दौरान मुझे बहुत मोटिवेट किया। वैसे धीरे – धीरे चीज़ें अच्छी हो रही हैं। लगातार काम अब मिल रहा है, तो रहने खाने की दिक्कत अब खत्म हो गयी है।


आपके आनेवाले प्रोजेक्ट्स

कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी में एक किरदार है. फिर आयी हसीन दिलरुबा में पत्रकार का किरदार है. आठ दस दिन का शूट किया है, फिल्म आने के बाद मालूम होगा कि किरदार किस तरह से शेप हुआ है. एक वेब सीरीज हंसा आएगी. उसमे अच्छा किरदार है. झारखण्ड की एक लड़की की कहानी पर बनी फिल्म मुनुरेन का भी हिस्सा हूं.

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Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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