Gita Updesh: श्रीमद्भगवद्गीता जीवन का वास्तविक मार्गदर्शन है. यह संघर्षों में उलझे मनुष्य को आंतरिक शांति और संतुलन की राह दिखाती है. जब जीवन द्वंद्वों से भर जाता है, तब गीता सिखाती है कि सच्चा धर्म अपने कर्तव्यों को बिना स्वार्थ के निभाना है. यह ग्रंथ बताता है कि मोह, लालच और अहंकार आत्मा की उन्नति में बाधक हैं. गीता केवल धार्मिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक मार्गदर्शन भी देती है. आधुनिक जीवन की उलझनों में यह आत्मचिंतन और ईश्वर में विश्वास की प्रेरणा देती है, जो हर युग में उतनी ही उपयोगी है. भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कई महत्वपूर्ण जीवन उपदेश दिए हैं, जिनमें से एक मुख्य संदेश यह है कि मनुष्य को कभी भी अहंकार या घमंड नहीं करना चाहिए.
- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि धन आता-जाता रहता है. ऐसे में जो चीज नश्वर है, उस पर घमंड नहीं करना चाहिए. इन चीजों पर घमंड करना मूर्खतापूर्ण व्यवहार होता है, क्योंकि धन अस्थायी है और समय के साथ खो भी सकता है.
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- श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, मनुष्य को अपनी शारीरिक और राजनीतिक शक्तियों पर घमंड नहीं करना चाहिए, क्योंकि शक्तियां स्थायी होती हैं. किसी भी दिन, उम्र या स्थिति में ये आपसे छिन सकती हैं.
- गीता उपदेश के अनुसार, मनुष्य को कभी अपने पद और प्रतिष्ठा पर अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका सृजन समाज करता है और समाज किसी भी समय इसे छीन सकता है. जिन लोगों का समाज में बहुत मान-सम्मान है, उन्हें हर काम बहुत ही सोच समझकर करना चाहिए, क्योंकि एक गलती पूरी प्रतिष्ठा को मिटा सकने की ताकत रखती है.
- श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि ज्ञान व्यक्ति को विनम्र बनाता है, जिसको वास्तव में ज्ञान होता है, वह बहुत ही विनम्र स्वभाव का होता है. ऐसे में मनुष्य को अपने ज्ञान पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए.
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