Neem Karoli Baba: नीम करौली बाबा, जिन्हें करुणा और भक्ति के प्रतीक के रूप में जाना जाता है, ने जीवनभर सादगी, सेवा और निस्वार्थ प्रेम का संदेश दिया. उन्होंने एक बार कहा था –
“A saint never accepts money” यानी एक संत कभी धन स्वीकार नहीं करता.
-नीम करौली बाबा
यह वाक्य न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह संत जीवन की मूल भावना को भी दर्शाता है.
Teachings of Neem Karoli Baba: संत वही जो न ले धन

Meaning of Saintly Life: क्यों संत कभी धन स्वीकार नहीं करता
संतों का जीवन त्याग, सेवा और आत्मा की शुद्धता पर आधारित होता है. जब कोई व्यक्ति संत बनता है, तो वह संसारिक मोह, लोभ और धन जैसी वस्तुओं से ऊपर उठ चुका होता है. धन को स्वीकार करना, उनके त्याग के मार्ग के विपरीत है. नीम करौली बाबा भी यही कहते थे कि अगर कोई संत धन लेने लगे, तो वह अपने मार्ग से भटक सकता है और लोगों की श्रद्धा को ठेस पहुंच सकती है.
त्याग और सेवा का प्रतीक है सच्चा संत
धन लेने से संत का उद्देश्य बदल सकता है – वह सेवा की जगह स्वार्थ की ओर आकर्षित हो सकता है. संत का कार्य केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना होता है, न कि धन-संग्रह करना. जब संत धन से दूर रहता है, तभी वह निष्पक्ष और निर्लोभी रहकर सभी के लिए समान रहता है.
Neem Karoli Baba Thoughts: धन नहीं, भक्ति चाहिए संत को- नीम करौली बाबा

संत को क्या स्वीकार करना चाहिए
संतों को धन नहीं, बल्कि प्रेम, श्रद्धा, सेवा और भक्ति स्वीकार करनी चाहिए. भक्त जब सच्चे मन से सेवा करता है, भोजन अर्पित करता है, या अपने अच्छे कर्मों से संत की कृपा प्राप्त करता है, तभी संत का जीवन सार्थक होता है.
नीम करौली बाबा भी लोगों को सेवा का महत्व समझाते थे. वे कहते थे – “सेवा ही सच्चा धर्म है.” वे कभी किसी से पैसे नहीं मांगते थे, परंतु उनकी सेवा में जुटे लोग स्वेच्छा से परमार्थ करते थे, वह भी बिना किसी उम्मीद के.
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