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वजन घटाने वाला इंजेक्शन असल जिंदगी में फीका, शोध में आयी चौंकाने वाली वजह

Weight Loss: अमेरिका में हुए एक नए अध्ययन के अनुसार, मोटापा घटाने के लिए इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन (जैसे वेगोवी और ओजेंपिक, जिनमें सेमाग्लूटाइड या टिर्जेपेटाइड जैसे घटक होते हैं) वास्तविक जीवन में क्लीनिकल परीक्षण जितने प्रभावी नहीं हैं. इसका क्या मुख्य कारण है यह लेख उसी पर है.

Weight Loss: मोटापा घटाने का दावा करने वाले इंजेक्शन वास्तविक जीवन में क्लीनिकल परीक्षण जितने कारगर साबित नहीं होते, क्योंकि मरीज या तो इन्हें लेना बंद कर देते हैं या फिर इनकी खुराक कम कर देते हैं. अमेरिका में हुए एक नये अध्ययन में यह बात सामने आई है. डॉक्टर टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को वेगोवी और ओजेंपिक सहित अन्य इंजेक्शन सुझाते हैं, जिनमें पाए वाले सेमाग्लूटाइड या टिर्जेपेटाइड जैसे घटक वजन घटाने के साथ-साथ ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित करने में मददगार हैं.

क्लीनिकल परीक्षण जितना वजन नहीं घटा पाते मरीज

‘ओबेसिटी जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वास्तविक जीवन में वजन घटाने और ब्लड शुगर नियंत्रित करने में मोटापा-रोधी इंजेक्शन का असर आंका. मुख्य शोधकर्ता और अमेरिका स्थित क्लीवलैंड क्लीनिक से जुड़े डॉ. हैमलेट गैसोयन ने कहा, “हमारा अध्ययन दिखाता है कि मोटापे पर काबू पाने के लिए सेमाग्लूटाइड या टिर्जेपेटाइड का सहारा लेने वाले मरीज वास्तविक जीवन में क्लीनिकल परीक्षण जितना वजन नहीं घटा पाते हैं.”

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क्या है बड़ी वजह

डॉ. हैमलेट गैसोयन ने कहा, “हमारे डेटा के मुताबिक, मरीजों का वास्तविक जीवन में मोटापा-रोधी इंजेक्शन का इस्तेमाल कुछ समय बाद बंद कर देना या फिर उनकी खुराक कम कर देना इसकी मुख्य वजह है.” अध्ययन में 7,881 वयस्क मरीज शामिल हुए, जिनका औसत ‘बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई)’ 39 से ऊपर से था यानी वे “मोटापे के गंभीर स्वरूप” का सामना कर रहे थे.

2021 से 2023 के बीच लेना शुरू किया था इंजेक्शन

बीएमआई के तहत व्यक्ति की लंबाई और वजन के अनुपात के आधार पर शरीर में वसा की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है. प्रतिभागियों में से 1,320 अध्ययन की शुरुआत के दौरान ‘प्री-डायबिटीज स्टेज’ में थे, जिसका मतलब यह है कि उनके टाइप-2 डायबिटीज की चपेट में आने का खतरा ज्यादा था. सभी प्रतिभागियों ने 2021 से 2023 के बीच सेमाग्लूटाइड या टिर्जेपेटाइड से लैस मोटापा-रोधी इंजेक्शन लेना शुरू किया था.

तीन महीने के भीतर इंजेक्शन बंद करने वाले पर क्या प्रभाव हुआ

शोधकर्ताओं ने इंजेक्शन लेने के एक साल बाद प्रतिभागियों के वजन और ब्लड शुगर के स्तर पर उसके प्रभाव का पता लगाया. उन्होंने पाया कि जिन प्रतिभागियों ने तीन महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद कर दिया, उनका वजन 3.6 फीसदी कम हुआ. वहीं, तीन से 12 महीने के बीच इंजेक्शन लेना बंद करने वाले प्रतिभागियों के वजन में औसतन 6.8 फीसदी की कमी आई.

एक साल तक इंजेक्शन लेने वाले लोगों का वजन 8.7 फीसदी तक कम

शोधकर्ताओं ने बताया, “एक साल तक इंजेक्शन लेने वाले प्रतिभागी औसतन 8.7 फीसदी वजन घटाने में सफल रहे. जल्द इंजेक्शन छोड़ने (तीन महीने के भीतर), देर से बंद करने (तीन से 12 महीने के भीतर) और एक साल के बाद भी इसे जारी रखने वाले प्रतिभागियों के वजन में क्रमश: औसतन 3.6 फीसदी, 6.8 फीसदी और 11.9 फीसदी की कमी दर्ज की गई.”

क्या कहा गया है अध्ययन में

अध्ययन में यह भी पाया गया कि जिन मरीजों को वजन और ब्लड शुगर का स्तर नियंत्रित रखने के लिए सेमाग्लूटाइड या टिर्जेपेटाइड की अधिक खुराक सुझाई गई थी, उनके वजन में क्रमश: औसतन 13.7 प्रतिशत और 18 फीसदी की कमी आई. ‘प्री-डायबिटीज स्टेज’ वाले प्रतिभागियों की बात करें, तो जिन्होंने तीन महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद कर दिया, उनमें से 33 प्रतिशत में ब्लड शुगर का स्तर सामान्य बना रहा. वहीं, तीन से 12 महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद करने वालों में यह आंकड़ा 41 फीसदी और इंजेक्शन जारी रखने वालों के मामले में 67.9 प्रतिशत था.

ये थी इंजेक्शन बंद करने की वजह

अध्ययन से यह भी पता चला कि इसमें शामिल 20 फीसदी से अधिक प्रतिभागियों ने तीन महीने के भीतर इंजेक्शन लेना बंद कर दिया, जबकि 32 प्रतिशत ने तीन से 12 महीने के अंदर ऐसा किया. शोधकर्ताओं के मुताबिक, इंजेक्शन की कीमत, बीमा संबंधी कारण, दुष्प्रभाव और बाजार में (इंजेक्शन की) कमी जैसे कारक इन्हें लेना बंद करने की मुख्य वजहों में शामिल हैं.

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Sameer Oraon
Sameer Oraon
A digital media journalist having 3 year experience in desk

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