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मौत ने दिखाया रास्ता. खोज लिया ‘साइलेंट किलर कैंसर’ का पता लगाने का आसान उपाय…

पेंक्रिएटिक कैंसर यानी ‘साइलेंट किलर‘. अपने चाचा की इस कैंसर से हुई मौत ने 16 साल के वैज्ञानिक और शोधकर्ता एंड्रेका को इस कदर प्रभावित किया कि उसने इसका सस्ता इलाज ढूंढ निकाला. पेंक्रिएटिक कैंसर से होने वाली मृत्यु दर भी अधिक है, क्योंकि शुरुआती स्तर पर इसकी पहचान करने में मुश्किलें आती हैं. लक्षणों […]

पेंक्रिएटिक कैंसर यानी साइलेंट किलर. अपने चाचा की इस कैंसर से हुई मौत ने 16 साल के वैज्ञानिक और शोधकर्ता एंड्रेका को इस कदर प्रभावित किया कि उसने इसका सस्ता इलाज ढूंढ निकाला.

पेंक्रिएटिक कैंसर से होने वाली मृत्यु दर भी अधिक है, क्योंकि शुरुआती स्तर पर इसकी पहचान करने में मुश्किलें आती हैं.

लक्षणों के आधार पर पेंक्रिएटिक (अग्नाशय) कैंसर की शुरुआती पहचान मुश्किल है, और बाद के लक्षण लगभग हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं.

अमरीका के युवा वैज्ञानिक जैक एंड्रेका ने शुरुआती स्तर पर अग्नाशय के कैंसर का पता लगाने का सस्ता और आसान तरीका ढूँढा.

जैक कहते हैं, "कैंसर के 85% मामलों का इलाज़ संभव है, बशर्ते सही समय पर इनका पता चल जाए."

जैक कहते हैं, "जब मैंने अपनी प्रयोगशाला में प्रयोग शुरू किए थे, तो लगभग पूरी मेडिकल बिरादरी मेरे ख़िलाफ़ हो गई थी. वो कहते थे कि ये बेकार की बात है और 16 साल के स्कूली लड़के का प्रयोग कभी सफल नहीं होगा."

लेकिन जैक इससे मायूस नहीं हुए और अपनी कोशिशें जारी रखीं. फिर उन्होंने एक ब्लड टेस्ट खोज निकाला जिसके ज़रिए ख़ून के नमूने को एक ख़ास तरह के पेपर पर, एक ख़ास तरह की प्रोटीन में बदलाव के लिए टेस्ट किया जाता है.

वह कहते हैं, "मेरे टेस्ट से अभी तक के नतीजे लगभग 100% सही मिले हैं. ये मौजूदा टेस्ट के मुक़ाबले 168 गुना तेज़ है और 26 हज़ार गुना सस्ता है. बस टेस्ट से पहले मरीज को पांच मिनट तक दौड़ना पड़ता है."

यही नहीं, मौजूदा टेस्ट के मुक़ाबले यह 400 गुना संवेदनशील भी है. जहाँ अब तक होता आ रहा टेस्ट 800 डॉलर में होता है और इसमें 30% ग़लती की गुंजाइश रहती है, वहीं जैक का टेस्ट की कीमत मात्र तीन सेंट हैं.

एंड्रेका को ये कामयाबी आसानी से नहीं मिली. अपने विचार परखने के लिए उन्हें एक लैब की ज़रूरत थी. उन्होंने बजट, सामग्री की सूची, टाइमलाइन और प्रक्रिया का प्रोजेक्ट बनाकर 200 शोधकर्ताओं को भेजा.

199 शोधकर्ताओं ने इस प्रोजेक्ट को ख़ारिज़ कर दिया, लेकिन जॉन हॉपकिंस स्कूल ऑफ मेडिसिन के एक डायरेक्टर ने इसके लिए हामी भर दी.

एंड्रेका ने यहां अपने प्रयोग शुरू किए. उन्होंने छोटी सी डिप-स्टिक, फिल्टर पेपर और बिजली के प्रतिरोध को मापने वाले एक उपकरण से एक डिवाइस तैयार किया जिससे ये टेस्ट कर पाना संभव हुआ. अब उन्होंने इस डिवाइस का अंतरराष्ट्रीय पेटेंट भी हासिल कर लिया है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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