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सोशल मीडिया ने आंदोलन का किया काम खराब, किसान नेताआें में पड़ी फूट, नेतृत्वहीन आंदोलन जारी…

मंदसौर: सोशल मीडिया कर्इ बार सामाजिक आंदोलनों आैर बदलाव के लिए वरदान साबित होता है, तो कर्इ बार लोगों का काम भी खराब कर देता है. मध्य प्रदेश में एक जून से कर्ज माफी को लेकर किसानों की आेर से शुरू किये गये आंदोलन काम सोशल मीडिया के कारण ही खराब हो गया माना जा […]

मंदसौर: सोशल मीडिया कर्इ बार सामाजिक आंदोलनों आैर बदलाव के लिए वरदान साबित होता है, तो कर्इ बार लोगों का काम भी खराब कर देता है. मध्य प्रदेश में एक जून से कर्ज माफी को लेकर किसानों की आेर से शुरू किये गये आंदोलन काम सोशल मीडिया के कारण ही खराब हो गया माना जा रहा है. किसान संगठन के नेताआें का कहना है कि उन्होंने सोशल मीडिया को अहम प्लेटफाॅर्म बनाकर आंदोलन की शुरुआत की थी. इसीलिए उनका काम खराब हो गया आैर बिना मांग के ही किसान संगठनों को आंदोलन वाापस लेने की घोषणा भी करना पड़ा. वहीं, कर्इ किसान संगठन अब भी मैदान में डटे हुए हैं. हालांकि, यह बात दीगर है कि एक किसान संगठन की आेर से आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा के बाद से किसान नेताआें में ही आपसी फूट पैदा हो गयी है.

इस खबर को भी पढ़ेंः किसान आंदोलन : मध्यप्रदेश में बंद के दौरान लूटपाट, आगजनी, तोड़फोड़ एवं पथराव, पुलिस ने किया लाठीचार्ज

मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार सोशल मीडिया के जरिये एक जून से शुरू हुआ किसानों का आंदोलन इसी माध्यम के कारण नेतृत्वहीन भी हो गया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे भारतीय किसान संघ (बीकेएस) समेत दो किसान संगठनों के छह दिन पहले आंदोलन वापस लेने की घोषणा के बावजूद सूबे में किसानों का विरोध प्रदर्शन अब तक जारी हैं. प्रदेश के किसान संगठन, आम किसान यूनियन के अध्यक्ष केदार सिरोही ने बताया कि सूबे में किसानों का आंदोलन सोशल मीडिया पर प्रसारित संदेशों के जरिये एक जून से शुरू हुआ था. यह राज्य के इतिहास में पहली बार हुआ है, जब किसान सोशल मीडिया के जरिये लामबंद होकर अपनी उपज का सही मूल्य दिये जाने, कर्ज माफी और अन्य मांगों को मनवाने के लिए खेत खलिहान छोड़कर सडकों पर उतरे.

पूरी तरह नहीं रोक पाये दूध, अनाज आैर सब्जियों की आपूर्ति

उन्होंने कहा कि हमने किसानों से अपील की थी कि वे सोशल मीडिया को अपना प्लेटफॉर्म बनाकर सरकार के साथ दुनिया भर के असंख्य लोगों तक अपनी बात पहुंचाएं. वे एक हाथ से ट्रैक्टर का स्टियरिंग पकड़ें और दूसरे हाथ में मोबाइल फोन थाम कर अपनी समस्याओं को लेकर ट्वीट करें. सिरोही ने बताया कि किसानों ने शुरुआत में अपने आंदोलन के तहत एक से 10 जून तक शहरी क्षेत्रों को अनाज, दूध और फल सब्जियों की आपूर्ति रोकने की घोषणा की थी, लेकिन मंदसौर जिले में पुलिस कार्रवाई से अलग-अलग घटनाओं में कम से कम छह किसानों की मौत को लेकर पैदा आक्रोश के कारण फिलहाल यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यह आंदोलन कब तक खत्म होगा.

बिना नेतृत्व के अलग-अलग हिस्सों में अब भी जारी है आंदोलन

किसानों की मांगों को लेकर उज्जैन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात के बाद मिले आश्वासन के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े बीकेएस और एक अन्य संगठन, किसान सेना ने चार जून की रात आंदोलन वापस लेने की घोषणा की थी, लेकिन किसान संगठनों में फूट पड़ जाने के कारण इस घोषणा का आंशिक असर हुआ और सूबे के अलग-अलग हिस्सों में किसान अब तक आंदोलन पर कायम हैं. सिरोही ने कहा कि किसान आंदोलन का कोई नेता नहीं है. सैकड़ों गांवों के हजारों अनजान किसान ही इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं.

सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से वायलर किये गये भड़काऊ पोस्ट

पुलिस अधिकारियों के मोटे अनुमान के मुताबिक, किसान आंदोलन के तहत प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों में करीब 80 प्रतिशत युवक शामिल हैं. आम जनमानस में किसानों की इसी घिसीपिटी छवि से एकदम उलट जींस और टी शर्ट पहनने वाले नौजवानों के ये समूह आधिनुक मोबाइल फोनों से लैस हैं और अपने प्रदर्शनों के दौरान सेल्फी लेते, फोटो खींचते और वीडियो बनाते देखे जा सकते हैं. बहरहाल, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि किसान आंदोलन में शामिल कुछ असामाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया का आपराधिक दुरुपयोग करते हुए भड़काऊ पोस्ट वायरल किये, जिससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी.

प्रशासन को लगाना पड़ा इंटरनेट सेवाआें पर रोक

किसानों के आंदोलन के दौरान अलग-अलग हिंसक वारदातों के फोटो, वीडियो और टैक्स्ट संदेश सोशल मीडिया पर इस कदर वायरल हुए कि विरोध प्रदर्शनों की आग तेजी से फैल गयी. नतीजतन, प्रदेश सरकार ने पांच जून से मंदसौर, उज्जैन, रतलाम, नीमच और धार जिलों में आगामी आदेश तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी है. यह अस्थायी रोक अब तक कायम है. प्रदेश के पुलिस महानिरीक्षक (कानून एवं व्यवस्था) मकरंद दउस्कर ने कहा कि किसान आंदोलन के शुरुआती दिनों में सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट, अफवाहों और अपुष्ट सूचनाओं की बाढ़ आ गयी. यह सामग्री हिंसा की आग को हवा दे सकती थी. नतीजतन कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए हमने संबंधित जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर अस्थायी रोक लगा दी है.

हालात पर की जायेगी समीक्षा

उन्होंने कहा कि हम संबंधित जिलों के प्रशासन से चर्चा कर हालात की समीक्षा करेंगे। उसके बाद ही इन स्थानों में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने पर उचित फैसला किया जाएगा।” दउस्कर ने बताया कि किसान आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाए गए भडकाउ संदेशों की जांच की जा रही है और इस सिलसिले में संबद्ध धाराओं के तहत आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे.

Prabhat Khabar Digital Desk
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