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सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट पर अपने निर्देश वापस लेने से किया इनकार, कहा – निर्दोष की हित रक्षा जरूरी

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि वह अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति कानून पर 20 मार्च के अपने फैसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर विस्तार से विचार करेगा लेकिन उसने इस निर्णय में इस विशेष कानून के तहत गिरफ्तारी और मंजूरी के मुद्दे पर दिये गये निर्देशों को स्थगित रखने से इनकार कर […]

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि वह अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति कानून पर 20 मार्च के अपने फैसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर विस्तार से विचार करेगा लेकिन उसने इस निर्णय में इस विशेष कानून के तहत गिरफ्तारी और मंजूरी के मुद्दे पर दिये गये निर्देशों को स्थगित रखने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति उदय यू ललित की पीठ ने कहा कि जो लोग आंदोलन कर रहे हैं उन्होंने शायद हमारे फैसले को ठीक से पढ़ा नहीं है और उन्हें निहित स्वार्थी लोगों ने गुमराह कर दिया होगा. शीर्ष अदालत के20 मार्च के फैसले का विरोध करने के लिये अनेक अनुसूचित जाति -अनुसूचितजनजाति संगठनों ने दो अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था और इस दौरान हुई हिंसक घटनाओं में कम से कम आठ व्यक्ति मारे गये.


निर्दोष लोगों के हितों की रक्षा की

पीठ ने कहा, ‘‘ हमने अजा/ अजजा कानून के किसी भी प्रावधान को कमजोर नहीं किया है लेकिन सिर्फ निर्दोष व्यक्तियों को गिरफ्तारी से बचाने केलिए उनके हितों की रक्षा की है.’ इसी पीठ ने 20 मार्च को फैसला सुनाया था. शीर्ष अदालत ने एक घंटे तक केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘ अजा/ अजजा कानून के प्रावधानों का इस्तेमाल निर्दोषों को आतंकित करने केलिए नहीं किया जा सकता है.’


पीठ महाराष्ट्र व अन्य पक्षकारों की याचिका पर करेगी सुनवाई

पीठ ने स्पष्ट किया कि वह 20 मार्च के फैसले पर पुनर्विचार के लिए केंद्र की याचिका पर मुख्य याचिका के महाराष्ट्र सरकार सहित मूल पक्षकारों के साथ ही सुनवाई करेगी. शीर्ष अदालत ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका दस दिन बाद सूचीबद्ध करने का आदेश देते हुए महाराष्ट्र और दूसरे पक्षकारों से कहा कि वे दो दिन के भीतर अपनी लिखित दलीलें दाखिल करें.

सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि न्यायिक समीक्षा के दायरे में आया कानून शिकायत दायर करने के साथ ही अनिवार्य रूप से गिरफ्तारी का अधिकार नहीं देता है और यह एक विस्तृत कानून है और फैसले में उसने दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदत्त प्रक्रिया के अनुरूप ही इस पर अमल करने के लिए कहा है. न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस कानून के किसी प्रावधान या नियम को नरम नहीं किया गया है और अजा/अजजा कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज होने से पहले ही कथित अत्याचार के पीड़ितों को मुआवजा दिया जा सकता है.

पीठ ने कहा कि इस कानून में उल्लेख किया गया अपराध ही न्यायालय के फैसले की विषय वस्तु है और भारतीय दंड संहिता के तहत दूसरे संज्ञेय अपराधों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से पहले जांच की आवश्यकता नहीं है. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि इस कानून के तहत दर्ज अपराधों की जांच पूरी करने के लिए उसने अधिकतम सात दिन की समय सीमा निर्धारित की है. इससे पहले, अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया था.

अटर्नीजनरल के आग्रह पर सुनवाई को अदलात हुई राजी

उच्चतम न्यायालय आज सुबह केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया था और इसके लिए दोपहर दो बजे का समय रखा था. अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कल भारत बंद के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और जान-माल के नुकसान का हवाला दिया था जिसके बाद न्यायालय सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने पुनर्विचार याचिका पर दोपहर दो बजे सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की मूल पीठ का गठन करने पर भी सहमति जतायी थी. एजी ने कहा कि यह आपात स्थिति है क्योंकि बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है और उन्होंने आज इस पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया.

उच्चतम न्यायालय की पीठ नेअटर्नी जनरल से दिन में कहा था कि वह प्रधान न्यायाधीश से उसी पीठ के गठन का अनुरोध करें जिसने एससी-एसटी मामले में फैसला सुनाया था. प्रधान न्यायाधीश ने केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के लिए उसी पीठ के गठन पर सहमति जतायी जिसने एससी-एसटी फैसला सुनाया था. एजी ने भारत बंद के दौरान हिंसा से हुए जान-माल के नुकसान का हवाला देते हुए पुनर्विचार याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया.

अनुसूचितजाति-अनुसूचित जनजातिअधिनियम के तहत शिकायत के आधार पर तुरंत गिरफ्तारी पर हाल में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है.

कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने क्या कहा था?

इस संबंध में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहाथा कि गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार व रविवार को छुट्टी थी, इसलिए सोमवार को याचिका दायर की गयी. उन्होंनेपहलेही बताया था कि अटर्नी जनरल आज सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में जल्द सुनवाई का आग्रह करेंगे. प्रसाद ने कहा है कि मोदी जी की सरकार दलित व आदिवासी भाइयों के हितों व सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलौत ने भी कहा है कि सरकार इस वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

मालूम हो कि कल अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के विभिन्न संगठनों ने भारत बंद बुलाया था. उनके इस बंद को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिला था. इस बंद के दौरान उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में हिंसा हुई. सबसे ज्यादा हिंसा मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तरप्रदेश में हुई थी.

Prabhat Khabar Digital Desk
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